” प्रणाम मौसी जी,कैसी है आप और मौसम कैसा है ? “
” अरे वाह..!! आज तो मेरे भाग खुल गए भई, बड़े दिनों बाद इस बुढ़ी मौसी को कैसे याद किया ? मौसम का तो क्या कहने कभी ठंड तो कभी गर्म जैसा अपना मिजाज .!!”
” मौसी जी, अगर आप को कोई आपत्ती नही हो तो आप हमारे साथ आकर रह सकतीं हैं। सर्दियों में इस उम्र में ठंड भी ज्यादा लगती हैं ।”
” लगता है ये भांजा नही पर हमारे बेटे कह रहे हैं पर बेटा, तुम भी कान खोलकर सुन लो और तुम्हारे भाईयों को भी समझा देना कि मरते दम तक अब मैं किसी के यहां दर दर नहीं भटकूगीं। बेटा, अब सर्दियों में ठंड से नहीं पर अपनेपन और प्यार से कंपकपी सी लगती है ।”
” पर मौसी जी, आप अस्सी साल के है और इस उम्र में इतनी ज़िद करना क्या अच्छा लगता है ?”
” एक साल पहले तुम लोगों को मेरी उम्र नज़र नहीं आ रही थी जो अब नज़र आ रही है ? अच्छा हुआ जो मुझे अकेला छोड़ दिया मैं आत्मनिर्भर तो बन गई,अब मुझे किसी पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है। खुद ही लाइट बिल,गैस बिल और प्रोपर्टी टैक्स भरती हूॅं बिना किसी का सहारा लिए। अब तो अकेले आने जाने की आदत सी हो गई, खुद गिर कर खुद संभल भी जाती हूॅं।
यह एक साल में मेरा दिल और दिमाग इतना आत्मनिर्भर बन गया है कि खुद ही खुद को संभालते रहते हैं और खुद ही एक दूसरे को समझाते है। एक बात अच्छी है कि तुम्हारे मौसाजी की पेंशन भी अच्छी आती है इसलिए इस बात में भी मुझे किसी के सामने हाथ जोड़ने की नौबत नहीं आ रही है और घर तो मेरा ही है पहले से इसलिए अब कहूॅ तो सच में मैं इस उम्र में आत्मनिर्भर हुई भले चाहे कैसे भी हो।
शायद मेरे संस्कारों में कुछ कमी सी रह गई थी जो इस कंपकंपाती ठंड में भी अपनों की गर्माहट के बजाय मुझे इस अकेलेपन की ठंड महसूस कर रही हूॅं। अच्छा तुम्हारी मॉं यानिकि मेरी बहन को भी अभी से आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करना, ईश्वर ना करें उसे मेरे जैसे दिन देखने ना पड़े और वो खुशी खुशी आप लोगों के साथ रहें। मुझे पता है मेरी बहन संस्कार देने के मामलों में शायद मेरे से एक कदम आगे ही है इसलिए उसे मेरी जैसी नौबत कभी नहीं आएगी और वैसे भी मेरी बहन को मेरी जिंदगी से जरुर सीख मिल गई होगी और हॉं मेरी बहन को मेरी याद देकर स्नेह देना और तुम्हारे बच्चो और पत्नी को भी हमारी तरफ से प्यार देना ।” कहते हुए देवकी जी ने फोन रख दिया।
स्वरचित और मौलिक रचना ©®
धन्यवाद,
भाविनी केतन उपाध्याय