अब मुझे अपने बेटे बहू की कीमत पता चली है। – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi

मम्मी आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं, और हमारी तरफ से ये प्यारा सा उपहार, रोली ने आपके लिए अपने हाथों से जन्मदिन का केक बनाया है, जतिन ने अपनी मम्मी रंजना जी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया।

केक देखकर रंजना जी के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया, उन्होंने उड़ती नजरों से केक को देखा और फोन में व्यस्त हो गई, तभी छोटे बेटे हितेन का फोन आया, मम्मी आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं, मैंने आपके लिए केक भिजवाया है, तभी दरवाजे की घंटी बजती है,सामने बड़ा सा केक लिए लडका खड़ा था, केक देखते ही रंजना जी का चेहरा दमकने लगा, और वो खुशी से झूमने लगी।

हां, एक तुझे ही तो पता है कि मुझे क्या पसंद है, उन्होंने हितेन को बहुत आशीर्वाद दिया, हितेन ने जिद करके वीडियो कॉल पर केक कटवाया, रोली के हाथों से बना केक एक तरफ रखा ही रहा।

ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ है, पर अब रोली को भी आदत हो गई थी,उसकी सास रंजना जी हमेशा ऐसा ही व्यवहार करती थी, हितेन के उपहारों से खुश होकर उसके द्वारा दिये गये तोहफों की उपेक्षा कर देती थी।

रंजना जी के दो बेटे हैं, जतिन और हितेन, दोनों बेटों की हैसियत में दिन-रात का अंतर था। छोटा बेटा आई टी इंजीनियर था, उसका अच्छा खासा पैकेज था, वो मम्मी पर दिल खोलकर खर्च करता था, वही बड़ा बेटा सामान्य पढ़ा-लिखा एक सेठ की दुकान पर काम करता था।

जतिन शुरू से ही पढ़ाई में होशियार नहीं था, कैसे भी करके उसने बीए कर लिया था और दुकान पर काम पर लग गया था, लेकिन छोटा बेटा हितेन पढ़ाई में होशियार और मेधावी छात्र रहा था, वो खेलकूद में भी अव्वल था, उसने कितनी ही प्रतियोगिता जीत रखी थी, और वो बोलने में भी तेज था, दिमाग में भी चालाकी भरी हुई थी।

अपनी बात मनवाने में वो शातिर था, रंजना जी के सामने वो अपनी मनमानी करता था, वहीं जतिन शुरू से सीधा रहा था, वो ज्यादा ऊंची आवाज में भी बात नहीं करता था, जैसा रंजना जी कह देती वैसा ही कर लेता था, कभी किसी बात पर सवाल पूछना या मना करना उसने सीखा ही नहीं था। हितेन एक तो छोटा था और उस पर वो कमाता भी बहुत था, इसलिए रंजना जी का चहेता बेटा था।

जतिन की शादी रोली से हुई थी, रोली भी सामान्य पढ़ी-लिखी पर बड़ी संस्कारी थी, वो रंजना जी की मन से सेवा करती थी पर रंजना जी को फिर भी हमेशा शिक़ायत ही रहती थी, वो रोली को तानें दिया करती थी और उसके किसी काम से कभी खुश नहीं होती थी।

हितेन की शादी माला से हुई थी, माला अहंकारी और पढ़ी-लिखी लड़की थी, उसे पति की कमाई का और अपने पिता के पैसों का बड़ा अभिमान था, वो बात-बात पर रोली का उपहास उड़ाया करती थी, अपने महंगें तोहफों की कीमत बताकर अपनी जेठानी को नीचे दिखाया करती थी।

जब माला शादी होकर आई थी तो वो रोली की हर बात पर नजर रखा करती थी, क्या भाभी चाय में दूध कम क्यों डालती हो? हमारे मायके में तो दूध में ही चाय बनती है।

कभी कहती कि आप फल देने में कंजूसी क्यों करती हो, हमारे मायके में तो फलो की पेटियां आया करती है, रंजना जी अपनी छोटी बहू की हर बात का समर्थन किया करती थी, और रोली को वैसा ही करने को कहती जैसा कि माला कहती थी। रोली चुप हो जाती थी क्योंकि उसे अपने घर का खर्च चलाना था, क्योंकि हितेन तो बाहर नौकरी करता था, वो घर देखकर माला को अपने पास बुलाने की व्यवस्था कर रहा था और इतने दिनों माला को वही पर रहना था।

माला हर चीज में नुक्स निकालती थी,पर एक पैसा हितेन और माला घर खर्च में नहीं देते थे, इसलिए रोली अपने पति की कमाई के हिसाब से घर में खाने पीने की व्यवस्था करती थी।

अपने पति के देहांत के बाद घर रंजना जी के नाम पर हो गया था, अब वो उसकी मालकिन थी तो रोली और जतिन को बार-बार यही जताती थी कि किराये का मकान लेकर रहोगे तो पैसे की कीमत पता चलेगी, तुम लोगों के किराये के बहुत पैसे बचते हैं इसलिए उन्हीं पैसों से मुझे अच्छा खिलाया करो, ज्यादा कंजूसी मत किया करो।

रोली कड़वा घूंट पीकर रह जाती थी, आखिर उसके पति की कमाई रंजना जी से छुपी हुई नहीं थी।

रंजना जी हर मामले में अपने छोटे  बेटे का पक्ष लिया करती थी, ये बात अलग है कि उनका बेटा हितेन उन्हें कभी अपने पास आने को नहीं कहता था, हितेन और माला दूसरे शहर में रहने लगे थे, जो दीपावली और अन्य त्योहारों पर आया करते थे।

दीपावली पर हितेन और माला आते तो थे पर माला घर का एक काम ना करती और हितेन बाजार का एक काम ना करता, दोनों जने रंजना जी के लिए बस अच्छे और महंगे तोहफे ले आते, वो महंगें उपहारों की कीमत देखकर ही खुश हो जाया करती थी, कभी साड़ी तो कभी शॉल, कभी पर्स तो कभी चादर, हर आने-जाने वाले से हितेन के दिये  उपहारों की तारीफ करती थी, और बहू माला का गुणगान करती थी,रोली और जतिन तो कभी कुछ नहीं देते हैं, हल्की साड़ी देकर टाल दिया करते हैं, मेरे छोटे बेटे बहू ही मेरा ख्याल रखते हैं, सभी रिश्तेदारों और पड़ोसियों से गुणगान करती रहती थी।

दीपावली के दिन उन्होंने माला को अपने खानदानी जेवर पहनने को दिए थे, जिसे पाकर माला बहुत खुश हो रही थी, उसने अपनी जेठानी रोली को कहा , देखो मम्मी जी मुझे कितना प्यार करती है, आपको तो आज तक कुछ भी नहीं दिया है।

 भाभी आप जो सेवा करती है उसका कोई मोल नहीं है, इस दुनिया में बस पैसों का मोल है, पैसों के बल पर किसी को भी अपना बनाया जा सकता है, माला अकसर जो भी कपड़े पहनती या सामान खरीदती थी, उसकी कीमत रंजना जी और रोली को बढ़ा-चढ़ाकर बताया करती थी।

ये सुनकर रोली भी कहती हैं, माला तुम्हें गलतफहमी है, पैसों के बल पर नहीं बल्कि प्यार और सेवा से किसी का भी दिल जीता जा सकता है, ये उपहार इंसान को खुश नहीं रखते, सभी को अपनों का साथ और अपनापन चाहिए ।

एक दिन रंजना जी बाथरूम में नहाते वक्त फिसल गई, उनको रीढ़ की हड्डी में काफी चोट आई थी,एकदम से वो बिस्तर पर आ गई। ये देखकर रोली बहुत दुखी हुई, उसकी चलती फिरती सास बिस्तर पर आ गई , अपनी मम्मी को बिस्तर पर देखकर हितेन ने ऑफिस के काम का बहाना बनाया और जाने की तैयारी करने लगा।

तभी रंजना जी ने उसे टोका, ‘तू तो रविवार को जाने वाला था, आज तो शुक्रवार ही हुआ है, दो दिन और रूक जा।’

मम्मी, ‘मै रूक जाता पर अचानक ऑफिस से फोन आ गया है, और मुझे जाना पड़ेग।’  ये झूठ बोलकर हितेन माला को लेकर निकल गया।

अगले दिन डॉक्टर ने हिदायत दी कि इन्हें बिस्तर से उठने भी नहीं देना है, इनके सारे काम बिस्तर पर ही होंने चाहिए, अब इस उम्र में हड्डी ठीक होने में समय लगता है, इसीलिए जरा सी भी लापरवाही ना बरतें।

ठीक है, डॉक्टर साहब आप जैसा कहेंगे हम वैसा ही करेंगे, बस किसी भी तरह से मम्मी ठीक हो जायें, आप समय पर इनका इलाज करने आते रहिएगा, और ये रही आपकी फीस ये कहकर जतिन ने फीस हाथ में रख दी।

रंजना जी सब सुन रही थी, उन्हें बहुत दर्द हो रहा था, रात भर वो बिस्तर पर कराहती रहती थी।

एक दिन रोली और जतिन ने अपना बिस्तर रंजना जी के ही कमरे में लगा लिया, ये देखकर उन्होंने कहा कि बेटा तू यहां कैसे सो सकता है?

मम्मी जी, रात को आपको किसी चीज की जरूरत होगी तो हम बंद कमरे में आपकी आवाज सुन नहीं पायेंगे, इसलिए हम यही पर सोयेंगे, जब मां बच्चे को बीमारी में अकेला नहीं छोड़ती है तो हम बच्चे आपको बीमारी में अकेला कैसे छोड़ दें ?

 अपनी बहू रोली के मुंह से ये सुनकर रंजना जी शर्मिंदा हो गई। उन्हें अपने द्वारा किया गया गलत व्यवहार याद आने लगा, आज रोली और जतिन उनकी कितनी सेवा कर रहे हैं, जतिन कैसे भी करके उनका इलाज करवा रहा है, हितेन तो बस फोन पर समाचार ले लेता था, पहले तो शनिवार और रविवार को भी उनसे मिलने आ जाया करता था, पर अब तो ऑफिस के काम का बहाना देकर कन्नी काटने लगा था।

आज रोली और जतिन की सेवा से रंजना जी धीरे-धीरे अच्छी हो रही थी।

उन्होंने एक दिन हितेन को फोन लगाकर कहा कि, बेटा मै तुम लोगों के पास आकर रहना चाहती हूं, तू मुझसे मिलने आया भी नहीं, जैसे ही तेरे ऑफिस का काम खत्म हो जायेगा तू मुझे लेने आ जाना, अब मैं वही पर रहना चाहती हूं, शहर में मेरा इलाज अच्छे से हो जायेगा, और तू और माला तो मुझको कितना प्यार करते हो।

हां, मम्मी क्यों नहीं? पर अभी मुझे ऑफिस के काम से टूर पर जाना है, तो वहां से आते ही मै आ जाऊंगा, ये कहकर हितेन ने फोन रख दिया।

तभी माला कहती हैं, अच्छा हुआ जो आपने मना कर दिया, उपहार देना आसान है, पर बिस्तर पर उनकी सेवा करना कितना मुश्किल है। ये उपहार तो मुझे मायके से मिलते हैं, जो पसंद नहीं आते हैं, मै वो आपकी मम्मी को दे आती थी, वरना इतने कीमती उपहार लेने की उनकी हैसियत ही नहीं है। 

तुम्हें जाना हो तो जाओ, मै तुम्हारी मम्मी से मिलने नहीं जाऊंगी, वैसे भी वो सब कुछ बेड पर ही करती है, पता नहीं भैया -भाभी कैसे उस बदबूदार कमरे में सो जाते हैं।

हितेन भी कुछ नहीं बोला और लैपटॉप पर अपने काम पर लग गया, थोड़ी देर बाद उसके दिमाग में ख्याल आया कि मम्मी को कोई उपहार भेज देता हूं, मम्मी खुश हो जायेगी, वो ऑन लाइन तोहफा भिजवा देता है।

इधर रंजना जी की तबीयत में सुधार होने लगता है, पर वो पूरी तरह से ठीक नहीं होती है, अभी भी बिस्तर पर लेटी रहती थी। रोली खुद उनकी सेवा करती थी।

रंजना जी को समय से नहलाती थी, उनके कपड़े बदलती थी, सिर के बालों की मालिश करके चोटी बनाती थी, उन्हें रामायण और गीता के पाठ पढ़कर सुनाती थी, समय पर चाय नाश्ता खाना और दवाई भी देती थी, दिनभर उन्हीं के साथ में रहती थी।

 रंजना जी को भी अब महसूस होने लगा था कि छोटा बेटा और बहू तो बस सुख के साथी है, जो कीमती उपहार देकर उनके मन में लालच पैदा करते थे, वो भी उनके झांसे में आकर अपने ही बड़े बेटे बहू को गलत ठहराने लगी थी,  माता-पिता को तो बच्चों का साथ चाहिए, अपनापन चाहिए, दुख की घड़ी में बच्चे साथ दे और सेवा करें, यही तो सच्चा और असली सुख है। 

आज हितेन के दिये हुए कीमती उपहार रखे हुए हैं, किसी भी काम के नहीं हैं, पर रोली और जतिन के सेवा भाव के कारण  ही वो जिंदगी जी पा रही है।

रंजना जी अपने किये गये बर्ताव पर बहुत ही शर्मिंदा थी, उन्होंने फोन करके हितेन और माला को बुलाया,मुझे तुम लोगों से उपहार नहीं चाहिए, ये तुम अपने साथ ही वापस ले जाना, मुझे अब बच्चों की असली कीमत पता चल गई है।

जायदाद के बंटवारे के नाम से दोनों दूसरे दिन ही सुबह आ गये। रंजना जी समझ गई थी कि दोनों के मन में पैसों का भारी लालच है, तभी तो जो बेटे बहू एक बार भी तबीयत पूछने नहीं आयें, वो ही बेटे बहू जायदाद के लालच में खींचे चले आयें, और अपना हक भी जताने लगे।

रंजना जी ने रोली और जतिन को भी बुलाया और कहा कि मै अपनी जायदाद का बंटवारा करना चाह रही थी, तुम दोनों इधर आकर बैठो।

मम्मी जी, आप जैसा उचित समझो कर दो, मुझे आपके लिए खाना बनाना है, दवाई लेते ही आपको तुरंत खाना खाना होता है, और रोली रसोई में चली जाती है।

मम्मी, जैसी आपकी मर्जी बाबूजी का कमाया हुआ पैसा है, और ये कहकर जतिन भी दुकान पर चला जाता है।

तब रंजना जी दोनों को फटकारतीं है।

तुम दोनों ने देखा तुम्हारे जेठ-जेठानी के मन में पैसों का बिल्कुल भी लालच नहीं है, उन्हें तो बस मेरी सेवा ही करनी है। 

मम्मी, मै आपके लिए  कीमती साड़ी उपहार में लाई हूं, माला ने देते हुए कहा।

माला, अब मुझे समझ में आ गया है, ये उपहार मुझे खुशी नहीं दे सकते हैं,जब मुझे अपने बेटे और बहू से सेवा और पैसे की उम्मीद थी तब तो तुमने मना कर दिया, तुम दो दिन भी ना मुझे रख सकी और ना ही मेरी सेवा की, अब इस जायदाद पर तुम दोनों का तो कोई हक ही नहीं बनता है, जब मुझे तुम लोगों की जरूरत थी तब तो तुम आये नहीं और जायदाद के नाम पर एक फोन करते ही आ गये हो।

मै अपनी समस्त दौलत, घर , मकान बडे़ बेटे जतिन और रोली  के नाम कर रही हूं।

ये खानदानी जेवर भी नहीं बंटेंगे, उसे ही ये खानदानी जेवर पहनने का हक है, जिसने अपने कर्तव्य का निबाह किया हो।

पहले मै लालची थी, पर अब मेरी आंखें खुल गईं हैं, बड़ो को बच्चे से आदर, सम्मान,और प्यार ही चाहिए, बाकी जिंदगी गुजर जाती है। 

उन्होंने जतिन और रोली को बुलाया, बहुत सारा आशीर्वाद दिया, और हितेन और माला को घर से जाने को कहा, जिस दिन तुम दोनों दिल से मेरा सम्मान करने लग जाओगे, उस दिन घर जरूर आना, मै खुद तुम्हें प्यार दूंगी, लेकिन अगर तुम्हारे मन में ये आया कि हम कीमती उपहार देकर मम्मी का प्यार खरीद लेंगे, उस दिन मेरे घर के और दिल के दरवाजे तुम्हारे लिए बंद हो जायेंगे, आज मुझे दुख में अपने बेटे-बहू की कीमत पता चली है।

माला और हितेन मुंह लटकाकर चले जाते हैं।

पाठकों , अधिकतर यही होता है कि पैसे वाले बेटे की मां बहुत परवाह करती है और कम पैसे वाले की उपेक्षा करती है, सेवा से भी दिल जीता जा सकता है, उसके लिए पैसों की, उपहारों की कोई जरूरत नहीं है।

हर मां को चाहिए कि वो बच्चों को बराबर का प्यार दें, पैसों के अनुसार भेदभाव ना करें, बेटे-बहू के प्यार की कीमत है,  उपहारों की नहीं।

धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना सर्वाधिकार सुरक्षित 

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