अब मैं नहीं हूॅ॑, ‘फाॅर ग्रांटेड’! – प्रियंका सक्सेना  : Moral stories in hindi

काव्या ने ड्राइंग रूम के बगल में ऊपर जाती सीढ़ियों पर लगी पेंटिंग्स देखकर पूछा,”वाह मोनिका कितनी खूबसूरत पेंटिंग्स हैं, तुमने पेंटिंग सीखी है क्या?”

जब तक मोनिका कुछ बताती काव्या तो पेंटिंग्स के पास पहुंच चुकी थी। 

मोनिका ने सिर्फ सिर हिला कर मना किया कि उसने पेंटिंग्स नहीं बनाईं हैं और सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने के लिए कहा।

काव्या सीढ़ियां चढ़ने से पहले रुककर पेंटिंग्स को बारीकी से निहार कर भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगी।

“मोनिका, बहुत ही सुंदर संजीव पेंटिंग्स हैं ऐसा लग रहा है मानो संजीव हैं। ये वाली देखो हिरण कितने प्यार से सामने। घास के मैदान को निहार रहा है और हां, अरे! उसे क्या पता घास की ऊंची ऊंची बाड़ से एक बाघ उस पर घात लगाए बैठा है। हिरण बेचारे को क्या पता उसकी मौत सिर पर मंडरा रही है। हाय! मेरा दिल तो हिरण के लिए जोर-जोर से धड़क रहा है।‌ आर्टिस्ट ने कितनी विचारणीय तस्वीर बनाई है जो हमें सोचने पर मजबूर कर रही है। ये वाली देखो माॅ॑ की गोद में बच्चा सो रहा है, माॅ॑ के पास होने की भावना बच्चे के मुख पर झलक रही है। माॅ॑ भी शायद काम करके थक गई है तो उसके चेहरे पर थकान झलक रही है पर बच्चे को कैसे प्यार से सुलाते हुए थाम रखा है। चित्र की एक एक बारीकी आर्टिस्ट ने उकेरी है। और ये वाली…”

अरे! बस बस ऐसी भी कोई खास नहीं हैं ये पेंटिंग्स। अब चलो ना ऊपर मेरे रूम में…” मोनिका शायद काव्या की बातों से उकता चुकी थी।

“बताओ ना मोनिका पेंटिंग्स किसने बनाई हैं?”

मोनिका बोली,”अरे ये पेंटिंग्स तो मम्मी ने बनाई थीं, उन्होंने अपने काॅलेज के दिनों में सीखा था। तुम कहां ये ओल्ड फैशन पेंटिंग्स को देखने में टाइम वेस्ट कर रही हों? मेरे रूम में चलते हैं, कुछ डिज़ाइनर आउटफिट खरीदें हैं चलकर देखो। फिर प्रोजेक्ट वर्क करेंगे।”

काव्या जैसे ही पीछे मुड़ी तो उसने देखा मोनिका की मम्मी, मीरा आंटी खड़ी थी। मीरा, मोनिका और काव्या के लिए स्ट्राबेरी शेक और सैंडविच लेकर आई थी।

मोनिका की बातें सुनकर उसकी ऑ॑खों पनीली सी हो आईं, खारे पानी को नेत्रों में छुपाते हुए मीरा ने कहा, “मोनिका बेटा, तुम्हारी दोस्त पहली बार घर आई है, कुछ खा पी लो फिर काम करना‌।”

उनकी ऑ॑खों का नम होना काव्या से ना छिप सका।

इतने में ही मोनिका बोली,

“मम्मी, जो भी बनाया है वो रूम में ले आना, हमें बहुत काम है।” मोनिका काव्या का हाथ पकड़कर जाने लगी

तभी काव्या ने मोनिका से कहा,”एक मिनट रुको मोनिका। मुझे आंटी को नमस्ते तो कर लेने दो।”

फिर काव्या पलटकर मीरा के पास आई और उससे बोली, “नमस्ते आंटी! आपने बहुत अच्छी पेंटिंग्स बनाईं हैं। आप अपनी पेंटिंग्स की एक्जीबिशन लगाइए, देखना सभी लोग आपकी कला की सराहना करेंगे।”

“बेटा, ये तो शादी से पहले का शौक था जो बाद में धूमिल होता चला गया। शादी के बाद से तो ब्रश हाथ में उठाया नहीं है। यह सभी पेंटिंग्स  पुरानी पड़ चुकी हैं। इन्हें भला कौन देखता है? ये तो ऐसे ही सीढ़ियों पर लगा दी थीं और अब तो मुझे लगता नहीं है कि मैं पेंटिंग बना भी पाऊंगी बरस हो गए   बनाए हुए …” निराश‌ स्वर में मीरा बोली

“आंटी, आप अभी भी वैसे ही बढ़िया पेंटिंग्स बना सकती हैं, कला सीखकर भूली नहीं जाती है, पुनः अभ्यास से जीवित हो जाती है। आप पेंटिंग क्लासेज़ भी ले सकती हैं और बच्चों को पेंटिंग बनाना सिखा भी सकती हैं।”काव्या ने मीरा की पेंटिंग्स को मुग्ध भाव से निहारते हुए कहा

इसके साथ  ही मीरा के हाथ से ट्रे लेकर मोनिका से बोली,”अब चलो मोनिका।”

मोनिका बोली,”मम्मी पहुंचा देंगी।”

“चलो भी, इतनी सी बात के लिए आंटी को परेशान क्यों करना? आंटी को भी स्पेस दो मोनिका। साथ ही उनकी और उनकी  कला की वैल्यू करना सीखो। जैसे आंटी हमेशा तुम्हें एप्रिशिएट यानि प्रोत्साहित करती हैं वैसे ही उनकी कला यानि पेंटिंग्स को तुम एप्रिशिएट तो कर ही सकती हों।”

फिर मीरा की ओर मुड़कर बोली, “थैंक्यू आंटी, शेक और सैंडविच के लिए!”

मीरा ने मन में सोचा,”इतने बरस से मेरी स्थिति घर की मुर्गी दाल बराबर थी। आज मोनिका की सहेली ने मेरे अंदर लुप्तप्राय हो गए आत्मविश्वास को जगा दिया है, अब मैं अपने लिए समय निकाल कर अपनी कला को निखार कर पेंटिंग्स की प्रदर्शनी भी लगाऊंगी और पेंटिंग क्लासेज़ भी खोलूंगी। अपनी अहमियत मुझे बरसों बाद समझ में आई है। अब मैं नहीं हूॅ॑,’फाॅर ग्रांटेड’!”

ऐसा सोचकर मीरा पेंटिग बनाने के लिए आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट बनाने लगी।

आज मीरा ने अपने खोए हुए आत्मविश्वास को पुनः पा लिया, अपने अंदर के कुछ न होने या कुछ न कर सकने के भय को जीत लिया है, मीरा ने! अहमियत स्वयं को दी जाए तभी सभी को वैल्यू पता चलती है, ये बात काव्या ने बहुत सरल‌ सीधे शब्दों में समझा दी।

इति।।

लेखिका की कलम से

दोस्तों, आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी, बताइएगा जरूर। मुझे आशा है हममें से कई गृहणियां इसमें अपने को ढूंढ कर स्वयं के भय को जीत कर अपने खोए आत्मविश्वास को पाने की कोशिश अवश्य करेंगी और इस प्रकार अपनी अहमियत को समझेंगी और दूसरों को अपनी अहमियत समझा भी देंगी। दिल से लिखी है कहानी  मैंने यदि आपके दिलों के तार को झंकृत कर दिया है तो कृपया लाइक और शेयर करें। आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।

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धन्यवाद।

प्रियंका सक्सेना

( मौलिक व स्वरचित)

#अहमियत

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