अब दरवाज़ा खुला मिलेगा ननद रानी – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

अरे नित्या बेटा तू कब आई और दरवाज़े के बाहर क्या कर रही है?” सुगंधा चाची ने नित्या को घर के बाहर खड़ी देख पूछा

“ वो चाची दो दिन कॉलेज की छुट्टियाँ थी तो सोचा भैया भाभी और बच्चों से मिल आऊँ …. कब से कॉल बेल बजा रही हूँ कोई खोल ही नहीं रहा।” पीठ पर बैग लटकाएँ थकी हारी सी नित्या ने कहा

“ ओहहह तुमने फ़ोन कर आने की सूचना नहीं दी थी क्या…रितेश लोग तो सुबह सुबह कहीं निकल गए है… निशिता कह तो रही थी इस छुट्टी कहीं घुमने जाना है ।” सुगंधा चाची ने नित्या से हमदर्दी जताते हुए कहा

“ ओहहह हाँ मैं सरप्राइज़ देने के चक्कर में फ़ोन ही नहीं की।” नित्या झूठ बोल गई क्योंकि उसने दो दिन पहले ही भाभी को फ़ोन कर आने की खबर दे दी थी

“चल आई है तो मेरे घर ही ठहर जा …. वो घर भी तेरा ही है।” सुगंधा चाची अपनापन जताते हुए बोली

 एक अच्छी पड़ोसी होने के सारे गुण सुगंधा चाची में नित्या तब से देखती आ रही थी जब से रितेश की पोस्टिंग यहाँ हुई थी और नित्या अपनी कॉलेज की पढ़ाई हॉस्टल में रह कर कर रही थी कभी कभी भाई भाभी से मिलने आ जाती थी ।

“ नहीं चाची मैं हॉस्टल ही चली जाती हूँ अब कभी आना हुआ तो फ़ोन कर बता कर आऊँगी ।” कहकर नित्या वापस चली गई

दूसरे दिन जब रितेश आया तो उसके कार के हॉर्न की आवाज़ सुन सुगंधा चाची आकर बोली,“ कल नित्या आई थी पर घर बंद देख चली गई बोल रही थी सरप्राइज़ देना था इसलिए फ़ोन नहीं की।”

“ ओहहह हमें पता होता तो उसको भी लेकर जाते ये मेरी छुटकी भी ना सरप्राइज़ देने में रह गई….चलो मैं उससे बात कर लेता हूँ ।” सुगंधा चाची से कह कर रितेश घर के अंदर आ गया

“ नित्या तू घर आई थी… पहले बताया क्यों नहीं…तुम्हें भी साथ लेकर चलते ।“ रितेश ने नित्या को फ़ोन कर कहा

“ कोई बात नहीं भैया ।” कह कर नित्या ने ज़्यादा बात ना कर फोन रख दिया

अब नित्या यहाँ आती ही नहीं थी ये सब देख रितेश ने एक दिन निशिता से कहा,“ आज कुछ अच्छा सा बना दो… सोच रहा हूँ रविवार है नित्या से मिल आता हूँ ।”

“ क्या मुसीबत है … एक ही शहर में रहने के… अब महारानी जी के लिए कुछ स्पेशल बना कर दूँ …. जाना है जाओ … बाहर से ले जाना कुछ मुझसे नहीं होता मेहनत ।” निशिता ने दो टूक शब्दों में कह दिया

 “ निशिता…. ये क्या बोल रही हो….मैं तो चाहता था मेरी बहन हॉस्टल छोड़कर मेरे पास घर में रहे पर वो राजी ना हुई…मम्मी पापा ने भी कह दिया बेटा… कॉलेज के हॉस्टल में रहेगी तो पढ़ाई पर ध्यान ज़्यादा देंगी घर में रहेगी तो मस्ती करेंगी…फिर कभी कभी आने का वादा कर वो हॉस्टल में रहने चली गई… कही उस दिन जो नित्या आई थी तुम्हें पता तो नहीं था ना…

तभी मुझसे ज़िद्द कर सुबह सुबह निकलने कह रही थी….नित्या कभी बिना बताए कोई काम नहीं करती और पगली भाई से ज़्यादा भाभी पर भरोसा कर फोन उसे कर देती…. ठीक है मत बनाओ कुछ पर आज ये भी पता चल जाएगा नित्या उस दिन फ़ोन कर के आई और सरप्राइज़ देने।” कहते हुए रितेश

निशिता पल भर को घबरा गई पर चुप रहना मुनासिब समझी

रितेश बहन से मिलने गया …. उसे देखते नित्या गले मिल भावुक हो गई

“कैसी है मेरी छुटकी और उस दिन तू सरप्राइज़ देने कैसे आ गई… तू तो बिना बताए कही जाती नहीं है ।” रितेश ने बहन से पूछा

“ भैया सच में भाभी ने आपको नहीं बताया था मैं आने वाली… हो सकता है भूल गई होंगी … नहीं तो आप लोग बाहर क्यों जाते ?” नित्या ने कहा

“ ना छुटकी मुझे कुछ नहीं बताया…हो सकता है भूल गई होंगी पर तू मुझे भी तो फ़ोन कर सकती थी ना ?” रितेश ने पूछा

“ कर सकती थी भैया पर माँ हमेशा कहती हैं तेरा ख़्याल घर में रहकर भाभी ही रखेंगी इसलिए हो सके तो बात उससे ज़्यादा किया कर ताकि उसे भी अपनापन लगे।” नित्या ने कहा

 “ सुन लिया तुमने… मेरी बहन क्या कह रही है ।” जेब से फोन निकाल कर निशिता को कह फ़ोन रख दिया जिसने सच जानने की कोशिश मे उसे फ़ोन पहले से लगा दिया था

“ भैया ये सब क्या था ?” नित्या आश्चर्यचकित हो पूछी

“ कुछ नहीं छुटकी चल आज भाई बहन कैंटीन में कुछ अच्छा सा लंच करते हैं ।” कह रितेश नित्या को कैंटीन ले गया खा पीकर देर तक बातें कर रितेश बहन से गले मिल घर आ गया

” निशिता वो मेरी अपनी छोटी बहन है… उस दिन जो तुमने उसके साथ जानबूझकर किया ये तो उसे और मुझे दोनों को समझ आ गया पर जान सकता हूँ ऐसा क्यों किया तुमने?” रितेश ग़ुस्से में पूछा

“ हाँ हाँ जानबूझकर किया मैं नहीं चाहती वो हमारे घर आए… जब वो आती है आप और बच्चे बस उसमें ही लगे रहते…मैं बस रसोई में सबकी फ़रमाइशें पूरी करने में रह जाती ।” तुनकते हुए निशिता ने कहा

“ बस एक दो दिन के लिए आती हैं वो… उसमें भी…मैं तो देखता हूँ वो तुम्हारी मदद भी करती…. बच्चों के होमवर्क भी करवा देती , मेरे सिर की मालिश कर देती हैं …उस ननद के आने से इतनी परेशानी….. कल को तुम्हारी बहन आएगी तो मैं भी घर नहीं आऊँगा….क्या पता मेरा रहना भी तुम्हें अच्छा ना लगे कहोगी तो बच्चों को भी ले जाऊँगा

अकेले दोनों बहने मस्ती करना… कभी नित्या में भी अपनी बहन को देख लेती तो इस तरह की हरकत कभी ना करती।”ग़ुस्से में रितेश आग बबूला हो बोल गया

 निशिता सिर झुकाए सुन रही थी….रितेश ने अक्षरशः सब सच कहा था फिर भी उसे ननद घर आती अच्छी नहीं लगती थी शायद इसलिए कि वो बहन नहीं ननद थी जबकि नित्या तो हर तरीक़े से भाभी की साइड लेती … उसे कोई तकलीफ़ ना हो इसका ध्यान रखती… दो दिन में वो घर में रौनक़ कर जाती बच्चे भी बुआ को मिल खुश हो जाते हैं ।

“ सॉरी रितेश अब से ऐसा नहीं होगा…. मैं समझ गई तुम कहना क्या चाहते हो… अब से नित्या के आने पर उसमें ननद नहीं अपनी छोटी बहन को देखूँगी प्लीज़ मुझे माफ कर दो… मैं नित्या से भी माफ़ी माँग लूँगी और उसे इस छुट्टी घर आने भी कहूँगी ।” निशिता ने कहा

“ अच्छा है वक़्त रहते सँभल जाओ नहीं तो जैसे मेरी बहन के आने की बात जान घर से निकल गई तुम्हारी बहन के आने पर …।” रितेश कहते कहते चुप हो गया

निशिता नित्या को फ़ोन कर माफ़ी माँगते हुए बोली ,” अब से इस घर में एक भाभी और बहन दोनों तुम्हें मिलेगी नित्या … जब आओगी ज़रूर दरवाज़ा खुला रहेगा ।”

दोस्तों बहुत बार कुछ रिश्ते सिर्फ़ इसलिए नापसंद होते क्योंकि उनका संबंध ससुराल वालों से होता है वो कितना भी अच्छा करें कभी सुहाती नहीं है… अपने सोच के दायरे को विस्तृत कर प्रेम और स्नेह से दिल खोलकर स्वागत कीजिए… ये भी उतना ही सच है जब कोई ससुराल पक्ष का आकर बस हुक्म जमाता रहता है तो स्वाभाविक रूप से बुरा लगता है… ऐसे रिश्ते नहीं निभ पाते…शायद इस सोच को अपनत्व से ही बदला जा सकता है…दूसरे घर की लड़की के दिल में इतना प्यार भरो की वो आपको भी बदले में प्यार दे… तिरस्कार नहीं ।

 

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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