शिरीष तुम्हारे मौजे यही पर रखे हैं और तुमने मुझे पुरे घर में घुमा दिया, एक मौजें भी तुमसे संभाल कर नहीं रखे जाते हैं, आजकल तुम भुलक्कड़ हो गई हो, शिरीष ने तंज कसा और तैयार होने लगा।
ये सुनकर स्वाति को बड़ा बुरा लगा, उम्र तो ज्यादा नहीं थी, पचास की पार होने वाली थी, अब बच्चे भी बड़े हो गए थे, सब की अपनी दिनचर्या थी, अपनी व्यस्तता थी, स्वाति को लगता था कि एक वो ही घर में फालतू बैठी रहती है, वैसे कहने को वो पूरा घर संभालती है, लेकिन घर के कामों को आजकल कहां आंका जाता है, घर के कामों को कोई गिनता ही नहीं है, हांलांकि अगर गृहणी बीमार हो जाए तो एक दिन में सबको दादी-नानी याद आ जाती है, क्योंकि मेड सिर्फ घर के काम करके जाती है, घर संभालना तो गृहणी को ही पड़ता है, सबके काम करते-करते अगर कुछ चीजें भुल जाएं तो इस तरह तंज कसना तो ठीक नहीं है।
शिरीष तो स्वाति से उम्र में बड़े है, और वो तो जब से शादी हुई तब से कभी कार की चाबी, तो कभी मोबाइल, कभी वॉलेट, कभी कोई जरूरी फाइल भुल ही जाते थे, मैंने तो उन्हें तब भी ताना नहीं कसा और आज उनके सामने ही उनके मौजें रखे थे, मैंने उन्हें आज भी तंज नहीं कसा।
फिर सब लोग गृहणी को ही तंज क्यों कसते रहते हैं, सबका काम करते-करते वो खुद अपने को भुल जाती है, अपने शौक करियर तक कुर्बान कर देती है, तब तो कोई याद नहीं दिलाता कि तुम अपने शौक भुल गई हो, तुम अपना करियर भुल गई हो, काश!! उसके लिए भी कोई ताना देता तो फिर से वो उन्हीं चीजो के पीछे दौड़ती जो चीजें उसने शादी और बच्चे होने के बाद जानबूझकर भुला दी।
स्वाति अपनी सोच में डूबी थी तभी सासू मां चिल्लाती है, ‘आज फिर से दूध उबाल दिया, सारा दूध बह गया, जाने कौनसी दुनिया में रहती है, बहू तो बड़ी भुलक्कड़ हो गई है, ये सुनते ही स्वाति का सारा दर्द आंखों के किनारे आकर बैठ गया, वो मन ही मन सिसकने लगी, ये दर्द ऐसा है जिसे वो रोज सहती है, लेकिन कह नहीं पाती है, ये अनकहा दर्द कोई समझ नहीं पाता है।
दूध चढ़ाकर आई थी, तभी शिरीष ने मौजें ढूंढने में उलझा दिया, दूध गैस पर है, सासू मां को पता था, वो भी रसोई से बाहर गैस बंद करके जा सकती थी, और मौजे शिरीष के सामने रखे थे, वो भी ले सकते थे।
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स्वाति फिर अपने विचारों में उलझ गई, ये रोज-रोज का दर्द उसके जीवन में आम बन गया था, अपनो के द्वारा दिया गया जानबूझकर या अनजाने में दिया गया दर्द उसके चेहरे पर नजर आने लगा था।
वो अपने मन में चल रही उलझन में उलझी थी कि तभी टीना के चिल्लाने की आवाज आई, टीना उसकी बीस साल की बेटी है, यूं तो उम्र से बहुत बड़ी बनती है, और यूं वो अपना कुछ भी काम नहीं करती है।
मम्मी, आपने मेरा व्हाइट टॉप नहीं धोया? आज मुझे कॉलेज पहनकर जाना था , आप भी बड़ी भुलक्कड़ हो गई हो, अब मै क्या पहनूंगी? और ये कहकर टीना गुस्सा हो गई।
स्वाति को भी कुछ नहीं सुझ रहा था, सबके एक से बढ़कर एक सवाल जो उस पर दागे जा रहे थे, इन सब बातों से वो बड़ी परेशान रहने लगी थी, एक तो मेनोपॉज की उम्र हो गई थी, वो भी चिड़चिड़ेपन का शिकार थी, उस पर घर में उसे समझने वाला कोई नहीं था, उसकी सास, पति और यहां तक की बेटी भी उसके दर्द को समझती नहीं थी, और सबसे बड़े बेटे से तो उम्मीद ही रखना बेकार था।
मेनोपॉज की पीड़ा से गुजर रही स्वाति कभी भी उदास हो जाती थी, उसे कई बार रात को नींद नहीं आती थी, शायद इसी वजह से वो बहुत से काम भुलने लगी थी, सास को लगता था कि वो सालों-साल पहले वाली बहू की तरह भाग-भाग कर काम करती रहें, पति उसमें पहले सी पत्नी ढूंढता था, जो समय के साथ बदल गई है, बच्चों के लिए उसकी जरूरत मात्र उनके काम तक ही थी, उसके अलावा बच्चे कभी दो घड़ी पास आकर नहीं बैठते थे।
ये सब सोचकर स्वाति बीमार रहने लगी, उसका चेहरा उतर गया, वो घर में कम बोलने लगी, जो जैसी शिकायत करता उसे सह लेती, पर खुद कुछ नहीं बोलती, समय चल रहा था, तभी एक दिन उसकी सहपाठी का फोन आया कि वो इसी शहर में आई हुई है, शहर में डॉक्टर्स का सेमीनार था, तो वो कार्यक्रम पूरा करके शाम को मिलने आयेगी।
नलिनी का फोन आते ही स्वाति चहक पड़ी, बचपन से लेकर दसवीं तक दोनों साथ में पढ़ती थी, बाद में नलिनी को डॉक्टर बनना था तो उसने स्कूल बदल लिया, लेकिन वो तब भी स्वाति से संपर्क में रहती थी, दोनों की मित्रता निभ रही थी, काफी सालों तक दोनों साथ थी, फिर स्वाति की शादी हो गई और नलिनी कुछ सालों के लिए विदेश चली गई थी।
शाम को दोनों सहेलियां अच्छे से गले मिली, तू तो विदेश में थी, यहां अचानक कैसे? स्वाति ने पूछा।
अब यही भारत में रहने को आ गई हूं, अपने देश अपने लोगों से ज्यादा दूर नहीं रहा जाता है, पर तू मुझे बहुत उदास लग रही है, तेरे चेहरे पर एक तनाव सा दिख रहा है, नलिनी ने उससे कहा।
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हां, आजकल तबीयत ठीक नहीं रहती है, पता नहीं क्या हो गया है, अब ये दर्द सहा नहीं जाता है, कहते हुए स्वाति के चेहरे पर अनकहा दर्द उभर आया था।
अरे!! एक तो मै तेरी सहेली, ऊपर से डॉक्टर मुझसे तो
कुछ छिपा नहीं है, तेरी उम्र में यही सब होता है, अच्छा सब छोड़ पहले खाना खा लेते हैं, मुझे तेरे पूरे परिवार से भी मिलना है।
रात को सब लोग बैठे थे, नलिनी ने अचानक कहा, स्वाति इतनी परेशान हैं, आप सबको इसे सहयोग करना चाहिए, मेनोपॉज के इस दौर में पत्नी को पति का मानसिक और भावनात्मक साथ चाहिए होता है, एक मां को चाहिए होता है कि उसके बच्चे उसे अब
बच्चे की तरह समझे और प्यार से व्यवहार करें।
आंटी जी, आप तो खुद इस दौर से गुजर चुकी है, उस समय आपको जानकारी नहीं थी, पर अब तो आपको अपनी बहू का साथ देना चाहिए, ताकि उसे ज्यादा तनाव महसूस ना हो, वो कोई काम भुल जाती है तो उसे ताना ना दिया जाएं, पहले स्वाति सब सह लेती थी, पर अब वो भावनात्मक रूप से कमजोर हो गई है, और हर छोटी बात दिल पर लेकर रोने लगती है।
आप सब उसके जीवन के और शरीर के विशेष बदलाव में उसका साथ देंगे तो स्वाति बहुत जल्दी ठीक हो जायेगी।
नलिनी की बातें सबने सुनी और समझी, धीरे-धीरे उन्होंने अपने अंदर बदलाव किया और स्वाति के मेनोपॉज में उसका पूरा ध्यान रखा और सहयोग किया।
वो अनकहा दर्द जो घर में किसी ने नहीं समझा, नलिनी ने समझा और उसे उससे निकलने का सकारात्मक रास्ता भी बताया।
पाठकों, स्त्री जीवन का हर दौर विशेष होता है, वो बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था तक सबका ख्याल रखती है, उसके बाद भी रखती है, लेकिन मेनोपॉज के दौर में उसे सबके सहयोग की जरूरत होती है, उस समय स्त्री शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक तौर पर कमजोर हो जाती है, यही समय होता है कि परिवार वाले मिलके उसका तनाव दूर करें, उसका अनकहा दर्द समझकर उसे दूर करने का प्रयास करें।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक रचना
#अनकहा दर्द