अब बहू ने ना कहना सीख लिया है – मधु वशिष्ठ :

 Moral Stories in Hindi

तुम्हारी सारी तैयारी पूरी हो गई ना? दवाइयां रख लेना। कमरों के ताले लगाकर बैग बाहर निकाल कर रख दो। मनोज अभी आता ही होगा, हमको यात्रा वाली बस तक छोड़ आएगा।  चाबी उसको दे देना। रात को तो वह घर पर रुकेगा ही ना? वर्मा जी ने शीला जी से पूछा? नहीं शीला जी ने कहा, अब उसे चाबी देने की जरूरत नहीं है, बहू ने अब ना कहना सीख लिया है। मनोज के आने से उसे बहुत परेशानी होती है। वर्मा जी हैरान थे, माधवी बहू ने कुछ कब कहा? उन्हें फिर कुछ बात याद आई और मन ही मन मुस्करा उठे। 

    जी हां, श्याम लाल वर्मा जी म्युनिसिपैलिटी के रिटायर्ड अफसर। सेवानिवृत होने से पहले उनको बड़ा सरकारी मकान मिला हुआ था और उन्होंने सेवानिवृत होने से पहले ही अपने  तीनों बच्चों का विवाह कर दिया था। उनकी दोनों बेटियां इसी शहर में ही थी। मनोज के विवाह तक भी वह सरकारी मकान में ही थे। मनोज की नौकरी भी इसी शहर में ही थी।   अब सेवानिवृत होने के उपरांत वर्मा जी

ने दिल्ली की सोसाइटी में ही दो फ्लैट खरीद लिए थे। परंतु वह दोनों फ्लैट साथ-साथ नहीं थे वर्मा जी का एक फ्लैट तो पहले टावर में ही था और दूसरा फ्लैट चार टावर छोड़कर पांचवें टावर में था। वर्मा जी ने सामने वाला फ्लैट तो अपने पास रख लिया और दूसरा फ्लैट अपने बेटे मनोज और बहू माधवी को रहने के लिए दे दिया था। उनके भी दो बच्चे थे। मनोज और माधवी अलग होने के बावजूद भी वर्मा

जी और शीला जी का बहुत ख्याल रखते थे। उनके पोते पोती तो नीचे ही गार्डन में खेलते थे। शीला जी की दोस्ती मंदिर की कीर्तन मंडली की महिलाओं से हो गई थी परंतु उन्हें यह जरूर लगता था कि वर्मा जी ने एक मकान ही ले लिया होता और पहले की तरह ही बेटा बहु साथ रह रहे होते तो ज्यादा अच्छा होता। अब मनोज माधवी के कहे पर ही चलता है। वर्मा जी और शीला जी सोसाइटी से मंदिर दर्शन

वृंदावन धाम यात्रा इत्यादि जाने वाली अधिकतर बसों में यात्रा करते ही रहते थे। शीला जी जाते हुए मनोज को चाबी देकर यही कहती थी कि रात को तुम मेरे घर में सोने के लिए आ जाना। मनोज के इस तरह अकेले वहां पर जाने से माधवी को सुबह सवेरे बहुत परेशानी होती थी। दोनों बच्चों को स्कूल

के लिए तैयार करना, नाश्ता बनाना, इन सब में मनोज उसकी सहायता करा करता था, उसे  जल्दी उठने की आदत थी तो वह अधिकतर दूध,चाय बनाकर ही बच्चों को उठा देता था। रात क्योंकि बच्चों की ड्रेस वगैरह सब कुछ वहां  नहीं होते थे इसलिए सब ही वहां रहने के लिए नहीं जा सकते थे। हालांकि माधवी यही कहती थी कि यहां पर सिक्योरिटी गार्ड हैं तुम सवेरे बच्चों को जब स्कूल बस में छोड़ने जाओ तब घर पर देखते हुए आ जाया करो परंतु मनोज माधवी की नहीं सुनता था और वहीं रूकता था।

  पिछली बार जब शीला जी और वर्मा जी तीन दिन की यात्रा पर गए तो उस समय बच्चों की भी छुट्टी थी। अबकी बार माधवी ने मनोज से कहा बच्चों के साथ अब हम सब तीनों दिन वहां ही रहेंगे। झाड़ू पोछा लगाने वाली तो दोनों घरों की शांताबाई ही थी। माधवी अपने घर में सफाई करवाती थी और

शीला जी वाले फ्लैट में  ही वह आराम से खाना पीना बनाती रही। शीला जी के घर बहुत सा खाने का सामान जो रखा था टिंकू और पिंकी भी मजे से वह खाते रहे। हमेशा शीला जी जिस दिन लौट कर

आती थी, क्योंकि वह थकी हुई होती थी इसीलिए माधवी अपने घर से खाना बना कर इन लोगों के लिए टिफिन में लाती थी परंतु अब के माधवी ने फ्रिज में रखी हुई दही और लस्सी के पैकेट से शीला जी के आने वाले दिन बढ़िया कड़ी बनाई और उनके फ्रिज में रखी हुई सब्जियां भी बनाईं। 

      जब शीला जी घर वापस आई तो वह अपने घर का यह रूप देखकर बेहद परेशान हो गई। उनके घर में कोई फैलाने वाले बच्चे तो थे नहीं इसलिए उन्हें बच्चों के साथ फैला घर देखने की आदत ही ना रही। जब बच्चों की गेंद बेड के और डाइनिंग टेबल के नीचे गिर गई थी और उन्होंने बेड और डाइनिंग टेबल सरकाई थी तो शीला जी को तो यह लगने लगा कि पलंग के नीचे रखा गया उनका ट्रंक भी बहू ने सरकाया है और ऊपर टांड पर भी चढ़कर इसने मेरे सामान को देखा है। 

      इतवार को दोपहर 2:00 बजे शीला जी और बाबूजी के आने के बाद  माधवी ने सब के लिए गरम-गरम फुलके, कड़ी, भिंडी इत्यादि दी। माधवी जी ने आते ही अपना फ्रिज खोल कर देखा और सब जगह देखने के बाद उन्होंने कुछ कहा तो नहीं हालांकि यह पहली बार थी कि आने के बाद उन्होंने यह भी नहीं कहा कि मैं बहुत थकी हुई हूं ,आते ही खाना खाने के बाद वह खेलते हुए बच्चों को

धमकाती हुई बोली अपनी लूडो और कैरम  की गोटियों  को  इकट्ठा करो और यहां से साफ करो। थोड़ी देर में बच्चों ने भी जब घर जाने को कहा तो शीला जी ने खुशी-खुशी सबको घर जाने की भी इजाजत दे दी। अबकी बार माधवी ही अपने डिनर के लिए टिफिन तैयार करके शीला जी के फ्लैट से

अपने फ्लैट में ले जा रही थी। पाठकगण यह शायद उनके पिछले व्यवहार का ही असर था कि अब की बार शीला जी मनोज को घर की चाबी देना चाहती थी और ना ही उसे रात में सोने के लिए

आमंत्रित करना चाहती थी, इसके विपरीत वर्मा जी को कह रही थी कि बहू ने ना कहना सीख लिया है और वह मनोज को यहां पर सोने के लिए नहीं आने देना चाहती क्योंकि उसे परेशानी होती है। 

वर्मा जी समझ रहे थे और इसीलिए मन ही मन मुस्कुरा भी रहे थे

कि परेशानी बहू को नहीं होती अपितु माधवी ने जो पिछली बार वहां की बजाय बच्चों के साथ यहां रहकर जो दिखाया था इससे परेशानी शीला जी को हुई है। 

      पाठकगण आपका इस विषय में क्या ख्याल है? यह ना बहू ने कहना सीखा है या कि सासू मां ने? कमेंट्स में जरूर बताइए?

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद हरियाणा।

बहू ने ना कहना सीख लिया है प्रतियोगिता के अंतर्गत

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