Moral Stories in Hindi : “कहां की तैयारी हो रही है?” ज्योति को को बैग में कपड़े डालते हुए देखकर उसके पति देवेंद्र ने पूछा।
ज्योति ने उनकी तरफ देखते हुए कहा-“मैं घर छोड़कर जा रही हूं। चाहती तो आपके बिना बताए रात के अंधेरे में भी जा सकती थी लेकिन मैंने बता कर जाना ही उचित समझा।”
देवेंद्र ने बड़े घमंड और तल्खी से पूछा-“इस बुढ़ापे में कहां जाओगी, सोचा है कभी दुनिया कैसी है।”
ज्योति सोच रही थी कि कैसा इंसान है यह नहीं पूछ रहा कि घर छोड़कर क्यों जा रही हो, यह पूछ रहा है कि कहां जा रही हो?”
ज्योति ने उनके प्रश्न के उत्तर में कहा-“हां इस बुढ़ापे में भी कोई ना कोई सहारा तो मिल ही जाएगा। दुनिया कैसी है यह भी मुझे पता है।”
देवेंद्र ने कहा-“यह मत भूलो कि तुम भिखारियों जैसे घर से मेरे जैसे अमीर आदमी के साथ ब्याही गई थी। क्या नहीं दिया मैंने तुम्हें। अच्छा खाना पीना, घूमना फिरना, पार्टियों में जाना, बढ़िया-बढ़िया कपड़े और गहने। एक औरत को और क्या चाहिए। मैं तो तुम्हारे लिए”भाग्य विधाता” बनकर आया था। तुम्हारे मायके में था ही क्या? भिखारियों की तरह तो रहते थे। जब भी तुम्हारे मायके जाता था फटा हुआ दूध ही खिलाते थे और कहते थे पनीर की सब्जी बनाई है। लानत है तुम्हारे मायके वालों पर एक दिन भी, नॉनवेज नहीं खिलाया।
ज्योति अब और सुन ना सकी और उसकी आंखें अपमान के कारण बरस पड़ी।
आज उसने सोच लिया था कि जब घर छोड़कर जाना ही है तो इस आदमी की इतनी बातें मैं क्यों सुनकर जाऊं।आज तो बोलने का मौका है। उसने कहा-“एक औरत को इतनी सारी चीजों की कोई जरूरत नहीं होती है। उसे अपने लिए सम्मान चाहिए और अपने मायके वालों के लिए भी आदर भाव चाहिए। अपने हर समय मेरे परिवार वालों को भिखारी ही कह कर पुकारा। वे लोग अपनी तरफ से आपका पूरा आदर सम्मान करने की कोशिश करते थे।
लेकिन आप कभी खुश नहीं होते थे। गरीब होना कोई पाप नहीं है। लेकिन आप गरीब को गरीब नहीं भिखारी कहते हैं और अपने आप को हमारा भाग्य विधाता। क्या आपने कभी एक दिन भी सोचा कि ऐसा भी हो सकता है कि मेरे ही भाग्य के कारण आपको सब कुछ प्राप्त हुआ हो या फिर हमारे बच्चों के भाग्य से सब कुछ मिला हो। जब से हमारी शादी हुई है तब से लेकर बच्चों की शादी होने तक, मैं यही सुनती आ रही हूं कि मैं तुम्हारा भाग्य विधाता हूं।
जबकि आप सिर्फ एक पति हो। बाकी जो कुछ भी हमारे जीवन में है वह ईश्वर की बदौलत है ईश्वर का आशीर्वाद है। हो सकता है आपके इसी घमंड के कारण आपको शायद ईश्वर ने कोई सुख ना भी दिया हो, जबकि वह देना चाहता हो। इतने सालों से मैं सब कुछ सहन करती रही यही सोचकर कि एक न एक दिन आपको अपनी गलती का एहसास हो जाएगा और आप मेरे मायके वालों का आदर सम्मान करने लगोगे। लेकिन आज तक ऐसा नहीं हुआ और अब होगा भी नहीं।
लेकिन साथ-साथ अब मेरी बर्दाश्त करने की सीमा भी समाप्त हो चुकी है। मेरी जिम्मेदारियां भी समाप्त हो चुकी हैं। अब आप खुद अपने भाग्य विधाता बनकर अकेले ही रहिए। आपके पास बहुत पैसा है ना इसीलिए आप दो-चार नौकर रखकर सारे काम करवा लीजिएगा। मैं कहां जाऊंगी इस बात की चिंता छोड़कर चैन की बंसी बजाइये।बस, आपके ताने अब और नहीं। वैसे मेरी एक सहेली जिसके पति गुजर चुके हैं वह अकेली रहती है मैं उसके साथ रह सकती हूं। और अगर ऐसा नहीं हुआ तो इस दुनिया में वृद्ध आश्रमों की कमी नहीं है। “
ऐसा कहकर ज्योति ने बैग उठाया और दरवाजे की तरफ बढ़ गई लेकिन तब भी देवेंद्र ने अपने अभिमान के कारण उसे रोकना जरूरी नहीं समझा।
और तुनक कर बोला-“हां, जा जा, घर से बाहर निकलते ही दुनिया की असलियत सामने आएगी तब अपने आप भागी भागी वापस आएगी। मैं रह लूंगा अकेला। अपने लिए सब कुछ करने वाले को भाग्य विधाता ही कहते हैं और मैं तेरा तेरा और तेरे बच्चों का भाग्य विधाता हूं इसमें कोई शक नहीं। बड़ी आई है मुझे छोड़ कर जाने वाली।”
घमंड इंसान से जो न करवाए सो कम।
Moral Stories in Hindi : अब तक आपने पढ़ा कि ज्योति अपने बैग उठाकर घर छोड़कर जाने लगती है और उसका पति देवेंद्र जो स्वयं को भाग्य विधाता समझता है वह उसे अपने घमंड के कारण रोकता भी नहीं है।
अब आगे
ज्योति अपने दोनों बैग लेकर निकल गई। घर से निकलते ही उसे पड़ोस में रहने वाली ममता सामने से आती दिखी। ज्योति चुपचाप निकल जाना चाहती थी, पर ममता के होते ऐसा संभव न था क्योंकि वह प्रश्न चिन्ह सहित जन्म ली हुई औरत थी, प्रश्नों की ऐसी झड़ी लगाती थी कि सामने वाला परेशान हो जाए।
ममता-“अरे ज्योति बहन जी, दो-दो बैग लेकर कहां जा रही हो, अकेली दिख रही हो भाई साहब साथ नहीं जा रहे क्या?”
ज्योति के मुंह से निकला-“सहेली की बेटी की शादी में जा रही हूं, ये जाना नहीं चाहते।”
ममता-“वैसे तो पड़ोसी होने के नाते हम भी भाई साहब का ख्याल रख सकते हैं नाश्ता वगैरह भी खिला सकते हैं, पर भाई साहब तो कभी सीधे मुंह बात ही नहीं करते हुं।”ऐसा कहकर ममता अपने घर में घुस गई।
ज्योति ने सोचा अच्छा हुआ जल्दी पीछा छूटा। उसने सड़क पर जाकर ऑटो किया और अपनी बेस्ट फ्रेंड मीरा के घर आ गई। मेरा उसे देखकर बहुत ही खुश हो गई,थोड़ी देर बाद मीरा की बेटी अनु भी अचानक अपनी ससुराल से आ गई। उसकी ससुराल इसी शहर में थी लेकिन काफी दूर थी। रास्ते में लगभग एक तरफ से 2 घंटे लग जाते थे। अनु भी ज्योति आंटी को देखकर हैरान थी।
शाम को ज्योति ने अचानक मीरा और अनु की कुछ बातचीत सुनी। अनु-“मम्मी मैं तो आज आपको लेने आई थी, कुछ दिन हमारे साथ रह लेती तो अच्छा था। और यहां तो आंटी को देखकर मैं हैरान रह गई। वह यहां कैसे?”
मीरा-“हां अनु, उनके सामने मेरे तुम्हारे यहां चलने की बात मत कहना। मैं उसे एक दो बार कह चुकी थी कि कभी मेरे साथ रहने के लिए आओ। अब वह इतने मन से रहने आई है तो अच्छा ही है। मैं फिर कभी तेरे साथ चलूंगी। अगर उसे पता चलेगा तो वह वापस जाने की बात करेगी।”
अनु-“हां मम्मी ठीक है।”
ज्योति ने मीरा को अपने घर छोड़ने वाली बात बताई नहीं थी इसीलिए मीरा को लगा की ज्योति फुर्सत निकाल कर उसके साथ रहने आई है। ज्योति ने सोच लिया था कि इन्हीं दिनों के बीच में अपना इंतजाम किसी वृद्ध आश्रम में कर लूंगी ताकि मीरा अपनी बेटी के पास जा सके। ज्योति ने अपने विदेश में रह रहे दोनों बच्चों को भी कुछ नहीं बताया था क्योंकि वह उन्हें परेशान करना नहीं चाहती थी हालांकि उसे पता था कि इस बात से दोनों बच्चे बहुत नाराज होंगे। दोनों बच्चे बेटा आकाश और बेटी कनिका मां पर जान छिड़कते थे।
और उधर देवेंद्र बाबू के हाल सुनिए। सुबह मेड आई”साहब, भाभी जी कहां है?”
देवेंद्र-“भाभी जी,भाभी जी क्या बोल रही है क्या मैं तेरा भाई लगता हूं और तुझे क्या करना है जाकर अपना काम कर।”
दो-तीन दिन ऐसे ही बीत गए। चौथे दिन मेड ने फिर पूछा-“साहब, बीबी जी से मुझे कुछ बात करनी है, कब आएंगी?”
देवेंद्र-“मुझे नहीं पता, तुझे क्या कहना है बोल।”
मेड-“मुझे थोड़े पैसे एडवांस चाहिए। गांव में सास बीमार है मुझे जाना पड़ेगा।”
देवेंद्र-“जो तेरे पैसे बनते हैं ले जा, एडवांस नहीं मिलेगा।”
मेड-“साहब, बीबी जी तो कभी मना नहीं करती , ऐसे में तो मैं आपके यहां काम नहीं कर पाऊंगी।”
देवेंद्र-“नहीं कर पाएगी तो मत कर, धमकी क्यों दे रही है।”
अगले दिन से मेड ने काम करना छोड़ दिया और पूरी बात पड़ोस में रहने वाली ममता देवी को बता दी। अब ममता को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है।
देवेंद्र बाबू ने 10- 12 दिन तक नॉनवेज और कई तरह का अपना मनपसंद खाना खाकर मौज कर ली। घर में ना कोई रोकने वाला ना कोई टोकने वाला। जब मर्जी आओ जब मर्जी जाओ।
10 -12 दिन के बाद बाहर खाना खाकर थक गए और पेट भी गड़बड़ हो गया। डॉक्टर को दिखाने गए तो उसने फूड प्वाइजन बढ़कर अस्पताल में एडमिट कर दिया। तीन-चार दिन तक एडमिट रहे और फिर जब घर आए तो साधारण खिचड़ी के लिए भी तरस गए। तब उन्हें याद आ रहा था कि बीमार होने पर ज्योति उनकी कितनी सेवा करती थी और हर चीज का ध्यान रखती थी। एक बार तो खुद भी उसे बुखार आ गया था तब बुखार में भी मेरी सेवा में ही लगी हुई थी।
घर में हर चीज का बुरा हाल हो चुका था। गंदा घर, पहले कपड़े, धूल मिट्टी। पर घमंड में अभी भी कोई कमी नहीं थी। अकेले में बडबडाते-समझ रही थी मैं कुछ नहीं कर सकता। मैले कपड़े ड्राई क्लीन को दे आऊंगा। घर की सफाई के लिए अपने दोस्त सदानंद को नौकर ढूंढने को बोल दिया है। एक-दो दिन में नौकर मिल जाएगा। नाश्ता खाना सफाई वगैरा देख लेगा। पैसे से क्या नहीं हो सकता।
अगले दिन एक 18 -19 साल का लड़का आया, उसका नाम था अजीत। देवेंद्र बाबू ने बिना किसी जांच पड़ताल के उसे काम पर रख लिया। उसने घर की सफाई, कपड़े धोना खाना बनाना सारे काम बखूबी संभाल लिए। देवेंद्र बाबू की बढ़िया कटने लगी। बड़े ही खुश थे कोई दिक्कत नहीं थी।
उधर ज्योति ने एक वृद्ध आश्रम में अपना रहने का इंतजाम कर लिया। जब वह वृद्ध आश्रम जाने लगी तब उसकी सहेली मीरा को पूरी बात का पता लगा उसने ज्योति से बहुत कहा कि वह उसके साथ ही रहे, पर ज्योति नहीं मानी।
उधर अजीत पर देवेंद्र बाबू को पूरा भरोसा था। अगले दिन दोपहर के 2:00 बजे तक देवेंद्र बाबू सोते रह गए। उनकी आंखे बड़ी मुश्किल से खुली तो उन्होंने देखा कि उनके चारों तरफ लोग खड़े हैं। उन्होंने उठने की कोशिश की, लेकिन उन्हें तेज चक्कर आया और वह उठ नहीं पाए। उन्होंने लेटे लेटे देखा कि उनका बेटा आकाश खड़ा है। वे सोचने लगे कि यह विदेश से कब आया तभी उनके सिर में दर्द की तेज लहर उठी। उन्होंने सिर पर हाथ लगाया तो सिर पर पट्टी बंधी हुई थी। वह कुछ भी बोल नहीं पाए और चुपचाप लेटे रहे।
तभी आकाश की आवाज आई-“पापा, पापा आप ठीक हैं, मम्मी कहां है, मैंने फोन किया ,वह फोन भी उठा नहीं रही। मैंने तो सरप्राइज देने के चक्कर में अपने आने के बारे में किसी को बताया नहीं था। यहां आया हूं तो सब कुछ गड़बड़ दिख रहा है।”
तभी पड़ोसन ममता बोल उठी-“बेटा आकाश, कुछ दिन पहले मैं तेरी मम्मी को बैग उठा कर जाते देखा था। कह रही थी सहेली की बेटी की शादी है। तब से आज तक दिखी नहीं है।”
इधर आकाश ने अपने मामा को फोन पर पूरी बात बता दी थी। मामा मामी के साथ घर पर आ गए थे और मामी ने घर की देखभाल शुरू कर दी थी।
आकाश ने फिर कहा-“कुछ तो बताइए पापा।”
देवेंद्र ने बस इतना ही बताया कि ज्योति किसी सहेली के यहां जाने को कह रही थी, जिसका पति गुजर गया है।
तब आकाश को याद आया की मम्मी ने कुछ समय पहले अपनी बेस्ट फ्रेंड मीरा के पति के गुजर जाने की बात उसे बताई थी। आकाश ने अपनी बहन कनिका को फोन करके मीरा आंटी के बारे में पूछा। इत्तेफाक से कनिका के पास उनका नंबर था।
आकाश ने मीरा आंटी से फोन पर अपनी मां के बारे में सब कुछ पूछा और वृद्ध आश्रम पहुंच गया। ज्योति उसे ऐसे अचानक देखकर हैरान रह गई। आकाश ने उसे देवेंद्र के बारे में सब कुछ बताया तो वह सुनकर बहुत बेचैन हो उठी। उसने भी आकाश को घर छोड़ने का कारण बताया। आकाश ने उसे घर चलने को कहा लेकिन वह घर नहीं आना चाहती थी।
आकाश लौट कर आ गया। दो-तीन दिन बाद देवेंद्र जी की हालत में थोड़ा सुधार आया। तब आकाश ने उन्हें बताया कि”जब मैं सरप्राइज देने के लिए यहां पहुंचा तब पूरा घर बिखरा हुआ था ऐसा लग रहा था किसी ने बहुत अच्छी तरह एक-एक चीज निकल कर चोरी की है और आप बुरी तरह घायल थे। मैंने डॉक्टर को बुलाया और इतने में सारे पड़ोसी भी एकत्र हो गए।”
देवेंद्र-“मैंने अजीत नाम के लड़के को कम पर रखा था, वह दिखाई नहीं दे रहा है लगता है यह सब उसी ने किया है।”
आकाश-“कौन अजीत, जब मैं यहां आया तो यहां कोई नहीं था। पापा आपने बिना जांच पड़ताल के उसे कैसे रख लिया। डॉक्टर ने यह भी बताया है कि आपके खाने में उसने नींद की कुछ गोलियां मिला दी थी और उसे जब लगा कि आप कहीं होश में ना आ जाओ तो उसने आपको सिर पर चोट भी दी। आपको मरा हुआ समझकर घर के कीमती सामान चुराकर वह भाग गया। खैर, भाग कर कहां जाएगा। आप उसका पूरा हुलिया पुलिस को बता दीजिएगा।”
देवेंद्र-“आकाश बेटा, मैं बहुत शर्मिंदा हूं। तुम्हारी मां कहां है बेटा। मैं उससे माफी मांगना चाहता हूं और मैं उसे वापस आने को कहूंगा। मैं उसे हमेशा कहता था कि मैं तेरा भाग्य विधाता हूं जबकि मैं उसके बिना एक महीना भी रह नहीं पाया। मैं क्या बनूंगा किसी का भाग्य विधाता।”
आकाश, अपने पिता को कार में ज्योति के पास वृद्ध आश्रम ले गया। देवेंद्र ने सच्चे भाव से ज्योति के सामने हाथ जोड़ दिए, उनकी आंखों में आंसू थे। उनके मुंह से सिर्फ इतना ही निकल सका”घर नहीं चलेगी”
ज्योति उनके भावों को अच्छी तरह पढ़ सकती थी, आखिर पूरा जीवन उन्हीं के साथ तो बिताया था। वह गाड़ी में उनके साथ बैठ गई और घर जाकर ईश्वर को, सच्चे भाग्य विधाता को माथा टेक कर बहुत-बहुत धन्यवाद किया।
(आशा है कहानी का दूसरा और अंतिम भाग मेरे आदरणीय पाठकों को पसंद आया होगा स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली)
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली
बहुत अच्छी और यथार्थपरक कहानी… मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं के आज के घटते दौर में ऐसी कहानियों की बहुत आवश्यकता है… कुचले जा रहे आत्मसम्मान को बचाने की कोशिश इसके पहले भी होना चाहिये थी… बच्चों की शादी तक चुप रहना यानी सारी जिंदगी घुट-घुट कर निकाल देना उसके घमंड को प्रोत्साहन देना ही हुआ…