रानी स्तब्ध रह गई थी , सामने फिर वही दृश्य उभरने लगे थे बरसों पहले के, शरीर जैसे निष्प्राण हो गया था ।
उसकी देवरानी शीला की हृदय विदारक चीत्कारे दिल दहला रही थीं ।रानी जैसे जड बनी , पत्थर के बुत सी बैठी थी ।
गौना हो कर चार दिन पहले ही तो आई थी शीला ।हाथों में मेहंदी, पैरो में महावर , भर भर चूड़ियाँ हाथों में, कितनी खूबसूरत थी शीला।
पता नही क्या झगड़ा हुआ पति का घरवालों से कि उसने जहर खा कर प्राण दे दिये।
ठीक ऐसे ही इतनी ही उमर मे रानी का पति भी बिजली के करंट से झुलस कर प्राण त्याग चुका था , ऐसे ही रोती बिलखती
रानी को उसके मायके वाले ले गये थे अपने साथ ।
महीने भर बाद ही उसके जेठ हरीश जो दारोगा थे आकर उसे ले गये, समझा कर कि ” चिन्ता न करें हमारे घर की इज्जत है यह , इसे कष्ट न होने देंगे। “
फिर उसे लेकर ससुराल नही पहुँचे , जाने कहाँ कहाँ ले गये ,,,,,,,।”आखिर मे जहाँ उनकी पोस्टिंग थी किसी दूसरे शहर में अपने साथ रखा।
घर मे माँ, बीबी बच्चे थे वहाँ भी लाते थे उसको ,इतना दबदबा,रौब था ,दारोगा थे, किस की हिम्मत थी उनके जीते जी विरोध करने की ।
और रानी छोटी सी उम्र में खामोशी से देखती रही अपनी जिंदगी को तार तार बिखरते हुए।
फिर वो चले गये दुनिया छोड़ कर, कितनी दुर्गति होने लगी घर में उसकी, दो समय रोटी मिलती थी पुरे घर का काम करने के बाद , वो भी कितनी गालियों के साथ ।चुप रह कर करती रही सहन।चुप्पी ही तो नियति थी उसकी।
बहुत वर्ष बाद विदेश से लौटी थी कुछ समय पहले बडी बहन सीमा।
सुनते ही चली आईं ।
उन्होंने आकर सँभाला शीला को , अपने कलेजे से लगा लिया ।
सान्त्वना के शब्द कहाँ थे ?बस आँसुओ का सैलाब था।
बिना माँ बाप की लडकी थी शीला ।जैसे तैसे चाची ने शादी कर के बोझ उतारा था ।इतने बडे हादसे मे आईं तक नहीं थी।
सीमा के कलेजे से लगे बिलख रही थी
,’हमारा क्या होगा जीजी , कोई नहीं है हमारा ।” कलेजे में तीर जैसे चुभ रहे थे उसके हृदय विदारक शब्द ।
तभी बडे भाई का बेटा आकर बोला ,” चिन्ता मत करो बुआ , उनका कोई नहीं तो क्या हम तो है । हम पूरा खयाल रखेंगे ।”
देख रही थी सीमा किस तरह शीला को दिलासा दे रहा है बडे भाई का बेटा , उसकी आँखों मे सीमा को उसके पिता की कुदृष्टि दिखाई दे रही थी।
बड़े कठोर स्वर में बोली ,” नहीं, रानी भाभी जैसी हालत मै नहीं होने दूँगी इसकी ।एक जिंदगी तुम्हारे पिता ने बर्बाद की उसकी चुप्पी का लाभ उठा कर ।तुमको इसकी जिंदगी बर्बाद नही करने दूँगी ।मै इसे ले जा रही हूँ, अपने साथ ।इसका दूसरा ब्याह करवा दूँगी ।मै रानी को भी ले जा रही हूँ,
बहुत सह लिये जुल्म उस निरपाधिनी ने , कोई उसका कसूर बतायेगा मुझे? अब और नही ।”
रानी की निष्प्राण देह मे हलचल हुई, खुश्क आँखों में जैसे
गीलापन महसूस हुआ हो , जैसे अवरुद्ध कण्ठ में कोई स्वर लहरी गुंजित हुई हो , जैसे सीना चीरकर कोई नासूर बह चला हो।
सुधा शर्मा
मौलिक स्वरचित