अब और अन्याय बर्दाश्त  नहीं  – मीनाक्षी सिंह

राजेश जी कृषि विभाग में बाबू के पद पर कार्यरत थे ! घर में पत्नी ,छह  बेटियां  और एक बेटा था ! बेटा विजय सबसे छोटा था ! बेटे की चाह में पांच बेटियां हो गयी ! वो जमाना भी ऐसा था,अगर बेटा एकलौता हो तो वंश  बढ़ाने के  लिए उसके एक बेटे का होना तो बहुत ज़रूरी होता था  ,भले ही खाने के और उन्हे पालने के  लाले क्यूँ ना पड़ जायें ! ऐसी धारणा हुआ करती थी लोगों की ! खैर राजेश जी कभी अपनी बेटियों को बोझ नहीं समझते थे ! शहर में नौकरी होने की वजह से पत्नी ,बच्चों सहित  आगरा शहर में किराये पर रहने लगे  ! कुछ समय पश्चात गांव के कुछ खेत बेचकर आगरा में सौ वर्ग गज जमीन लेकर अपना छोटा सा मकान बनवा लिया राजेश जी ने ! सभी बेटियां पढ़ने में बहुत होशियार थी !

राजेश जी शाम को नौकरी से पैदल  ही थके हारे घर आते थे ये सोचकर कि आने जाने के तीस रूपये बच गए तो बच्चों के खाने के लिए कुछ लेता चलूँगा ! पसीने से तर बतर घर आते तो अपना थैला खूंटी पर टांग देते ,और चर्र-  चर्र आवाज करने वाली कुरसी पर बैठ जाते ! एक बेटी तुरंत पानी लाकर देती ,दूसरी शिकंजी लाती ,कोई हाथ वाला  पंखा हांकती ! राजेश जी कितना भी मना करते पर बेटियां नहीं मानती ,हठ  करके कहती – हमारे पापा हमारे लिए इतनी मेहनत करते हैँ ,क्या हम पापा को हवा भी नहीं कर सकते ! राजेश जी मुस्कुरा भर देते ! छोटी सी उम्र में राजेश जी के बच्चें बहुत ही परिपक्व हो गए थे ! कभी आपस में नहीं झगड़ते ! ना किसी चीज की ज़िद करते ! कोई इतवार राजेश जी का खाली नहीं जाता जब वो अपनी बेटियों को पेपर दिलाने ना ले जाते हो ! एक दिन भी छुट्टी में आराम  नहीं करते ! 

इस कहानी को भी पढ़ें:

हमसफ़र… तुम देना साथ मेरा… – रीतु गुप्ता  : Moral Stories in Hindi




ऐसे ही एक शाम राजेश जी  थके हारे आये ! और सीधा चारपाई पर जाकर लेट गए ! बच्चें और पत्नी सुमित्रा जी एकदम से घबरा गए कि ज़रूर आज कुछ हुआ हैँ ! सभी लोग राजेश जी की चारपाई के पास आकर बैठ गए ! अभी भी राजेश जी सोच में और चिंता में ड़ूबे हुए थे ! तभी अचानक सुमित्रा जी ने उनका हाथ अपने हाथ में रखकर पूँछा – ए जी ,आज कुछ हुआ हैँ क्या ,आप ऐसे चिंता में क्यूँ लग रहे हो ! सभी बच्चें एक साथ बोले ,पापा बताओ ना ,क्या बात हैँ ! तभी तीसरे नंबर की बेटी शुम्मी राजेश जी के पैर  में चोट का निशान देखकर चीखी  ! अरे मम्मी ,ये देखो मम्मी पापा के तो चोट लगी हैँ ,सब उन्हे ध्यान से देखने लगे  ,जगह जगह शरीर पर  चोट के निशान थे ! सुमित्रा जी रोती हुई जल्दी से चोट साफ करके उस पर मरहम लगाती हैँ !

का हो ,अब भी नहीं बताओगे हमें ,तुम्हे  मेरी और बच्चों की कसम ! हमारा दिल बैठा जा रहा हैँ ! क्या हुआ हैँ ????

राजेश जी अपने माथे पर हाथ रखते हुए बोले  – बच्चों तुम लोग अंदर जाओ ,मम्मी से कुछ बात करनी हैँ !! सुमित्रा ,पता नहीं क्या पाप किया हैँ मैने ! इतनी ईमानदारी से नौकरी करता हूँ फिर भी कुछ लोग हाथ धोकर पीछे पड़े हैँ ! अभी दो महीने पहले हमारे कार्यालय में एक मुझसे सीनियर बाबू आया हैँ अशोक ! शुरू में कुछ दिन तो सब ठीक था ,पर कुछ दिनों बाद मुझ पर दबाव बनाने लगा कि अगर मैने उसके गलत काम में उसका साथ नहीं दिया तो मुझे नौकरी से निकलवा देगा ! वो दो नंबर का काम करता हैँ ,सारा कार्यालय का माल ब्लैक में बेच देता हैँ ! मेरे हस्ताक्षर के बिना कोई सामान बाहर नहीं जा सकता ! मुझ पर दबाव बनाता हैँ कि तुम्हे भी मालामाल कर दूँगा ,बस तुम आँख मूंदकर माल पास करते जाओ ! तुम ही बताओ बीस साल से इतनी ईमानदारी से काम किया ,अब सरकार को कैसे धोखा दे सकता हूँ ,जिसके सहारे मेरा घर चल रहा हैँ ! पिता जी ने मरते बख्त कसम दी थी – रज्जू ,दो रोटी कम खा लेना पर बेईमानी का  एक पैसा मत लेना ! मेरा ईमान मुझे ऐसा करने की इजाजत नहीं दे रहा था इसलिये मैने एक पत्र विभाग को भेज दिया ज़िसमें इस अशोक का सारा काला चिठ्ठा लिख दिया !

इस कहानी को भी पढ़ें:

हमसफ़र – साधना वैष्णव : Moral Stories in Hindi




सुमित्रा जी -जे तो तुमने सही किया ,अब तो कुछ नहीं कहता वो  मुंहा  !

सुमित्रा आज कल सब पैसे और पहुँच पर चलता हैँ !   इस अशोक की पहुँच बहुत दूर तक हैँ ,बच गया ! अब तो मुझे और परेशान करता हैँ ! एक बार मुझे कार्यालय में ही बंद कर दिया वो भी तब जब अगले चार दिनों तक छुट्टी थी ! वो तो बंशी वाले की कृपा रही ! दिनेश जी अपना खाने का थैला भूल गए थे सो  ताला खुलवाकर लेने आये तो मैं बाहर आ गया नहीं तो आज ज़िंदा ना होता ! सब तरीके अपना रहा हैँ मुझे परेशान करने के ! आज तो इसने सारी हदें पार कर दी ! जब मैं ऑफिस से निकला तो एक 24-25 साल की लड़की को मेरे पीछे लगा दिया ,वो रास्ते भर मुझे पकड़ती रही ,और जब मैं जल्दी से  अपना भारी  थैला लेकर आगे बढ़ने लगा तो अपने कपड़े फाड़कर भीड़ जमा कर ली और चिल्लाने लगी कि मैने उसकी इज्जत लूटी हैँ ,सभी लोग मुझे चप्पल जूतों से मारने लगे वो तो पता नहीं कहाँ से हमारे पास के बिभाग के दीनानाथ जी आ गए ,उन्होने समझाया कि वो मुझे जानते हैँ ,मैं ऐसा आदमी नहीं हूँ ! इतनी बेइज्जती के बाद मन तो हुआ सुमित्रा की वहीं किसी गाड़ी के नीचे आ जाऊँ और अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूँ ! बस बच्चों का और तुम्हारा चेहरा बार बार सामने आने लगा कि मेरे बाद तुम लोगों का क्या होगा ! इतने अपमान के बाद भी आ गया ! मैं हार गया सुमित्रा ! कल क्या मुंह लेकर जाऊँगा काम पर ! सब मुझ पर आरोप लगायेंगे ! सरकारी नौकरी ना होती तो कब की छोड़ देता !  ईश्वर ने अच्छी सजा दी हैँ मुझे ईमानदारी की ! राजेश जी  फफ़ककर रोने लगे !

तुम कल ऑफिस जाओगे ! तुम्हारे साथ हुए अन्याय को बर्दाशत नहीं करूँगी मैं !अब देखो तुम मेरा रुप ! औरत सिर्फ घर की लक्ष्मी ही नहीं हैँ ,दुर्गा काली ,भवानी भी हैँ ! समय पड़ने पर हर रुप दिखा सकती हैँ !

अगले दिन अशोक जैसे ही ऑफिस से छुट्टी  के  टाइम निकला ! सुमित्रा जी बनठन कर अशोक की गाड़ी के सामने आयी और मुस्कुरा कर अदायें बिखेरती हुई बोली – मुझे रामबाग छोड़ देंगे क्या ???? अकेली हूँ ,लेट हो रही हूँ ! अंधेरा भी हो गया हैँ ,प्लीज !!

अशोक तो वैसे भी एक नंबर का चरित्रहीन आदमी ! तुरंत गाड़ी का दरवाजा खोलकर अंदर आने के लिए बोला !

सुमित्रा जी थोड़ा असहज होती हुई बोली – मैं पींछे ही बैठ जाती हूँ !

अशोक – अरे आगे ही आ जाईये ,बात करते हुए सफर अच्छा कटेगा !

इस कहानी को भी पढ़ें:

जीवनसाथी साथ निभाना – ऋतु गुप्ता  : Moral Stories in Hindi




सुमित्रा जी चुपके से अपने आंसू पोंछते हुए आगे बैठ गयी ! बैठते ही अशोक उनके गालों पर हाथ फेरने लगा और अश्लील बातें करने लगा !

सुमित्रा जी पहले  ही पुलिस को फ़ोन कर  चुकी थी  और गाड़ी का नंबर बता चुकी तो!   पुलिस ने गाड़ी रोकी और अशोक को गिरफतार कर लिया !

सुमित्रा जी ने अपना बयान दिया ! इस आदमी ने मुझे जबरदस्ती अपनी गाड़ी में बैठाया ! मेरे साथ बत्तीमिजी की ! वहाँ काफी भीड़ जमा हो गयी ! कई औरतें भीड़ में से निकलकर सामने आयी और बोली – अच्छा हुआ ये आदमी पकड़ा गया ! रोज सब औरतों से बत्तीमीजी  करता हैँ ! यहाँ तक की एक उस झुग्गी बस्ती की औरत की इज्जत पर भी हाथ डाला ! वो बेचारी गरीब थी ,कुछ नहीं कर पायी !

अशोक के सारे गलत काम पकड़े गए ! उसे नौकरी से बरखाश्त कर दिया गया !

सुमित्रा जी ने अपने पति के साथ हुए अन्याय का बदला ले लिया !  यह करते समय उन्हे दुख भी बहुत हुआ पर क्या करें जमाना ही ऐसा हैँ !   कई बार अपने साथ हुए अन्याय के लिए साम, दाम, दंड ,भेद सब तरीके अपनाने पड़ते हैँ ! ऐसा कई जगह देखने को मिला हैं कि  अगर अन्याय  सहन करते रहो तो वो वो इंसान गलत कदम उठा लेता हैँ ज़िसका खामियाजां उसका पूरा परिवार झेलता हैं !

इसलिये अन्याय के खिलाफ आवाज उठाईये,, उसके लिए चाहे कोई भी रास्ता अपनाना पड़े ! जीवन हैँ तो सब हैँ !!

स्वरचित

मौलिक अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह

आगरा

1 thought on “अब और अन्याय बर्दाश्त  नहीं  – मीनाक्षी सिंह”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!