अब यह अन्याय मुझसे सहन नहीं होगा…. तुम लोग को जाना है जाओ… जो करना है करो … मुझ पर कोई दबाव नहीं डाल सकता । हे भगवान ! हमें ऐसी औलाद ही नहीं दिया होता..
इसने तो हमारी नाक कटवा दी। अब हम समाज में क्या मूंह दिखाएगें। हमारे मूंह पर कालिख पोत दी इस नालायक ने ।
बताओ पांच साल से हम ढूंढते -ढूंढते थक गए थे इसके मन पसंद की लड़की । सब में कोई न कोई नुक्ताचीनी कर यह शादी से किनारा कर ले रहा था। और अंत में बाबु साहब को पसंद भी आई तो एक विधवा लड़की… चाचाजी हाथ में शादी का कार्ड लिए गुस्से से कांप रहे थे। परिवार के सभी सदस्य चाचाजी के चिल्लाने की आवाज सुनकर इकठ्ठा हो गये थे। किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि कोई कुछ बोलता…।
चाची को चुप्पी साधे देख चाचाजी बौखलाकर बोले-” कुछ बोलती क्यूँ नहीं ..अपने लाडले के कारनामे पर ! बड़ी नैतिकता का पाठ पढ़ाती थी न! जाओ बुला रहा है..बेटा ताज पहनायेगा अपने महानता का तुम्हारे माथे पर।”
आँख तरेरकर वह चाची को ऐसे घूर रहे थे जैसे उन्हें पहले से सब पता हो। वह बेचारी अनभिज्ञ आंखों से उन्हें देखे जा रही थीं।
पिताजी तुरत ही ऑफिस से आये थे।चाचाजी के हाथों में कार्ड देखकर उन्हें माहौल को समझते देर नहीं लगी।
चाचाजी को समझाते हुए उन्होंने कहा -” अभी बेमतलब का दोषारोपण करने का समय नहीं है समझ गए न !
और इस बेचारी को कहां से पता होगा,जहां तुम हो वहीँ ये भी है। आजकल कम्प्यूटर वाला युग है। सब कुछ झट- पट होता है। पहले जमाने में जो कहावत थी न कि “झट मंगनी पट ब्याह”अब वही चरितार्थ हो रही है, गरमाने से काम बिगड़ सकता है। बेटा भी हाथ से बेहाथ हो जाएगा समझे की नहीं समझे।”
फिर आगे कहा-” गुस्सा छोड़ो और चलो चलकर देखते हैं कि क्या बात है। कौन सी परिस्थिति है जिससे वह ऐसी लड़की से विवाह करना चाहता है। बिना जाने- समझे कोई निर्णय लेना सही नहीं होगा।”
चाचाजी ने अपनी भौवे टेढ़ी करते हुए कहा-” ठीक है भैया आप कहते हैं तो आप ही जाइए लेकिन मुझे मत कहिये। मैं अपनी आंखों से यह अन्याय होते नहीं देख सकता। इस संस्कारहीन औलाद ने तो हमारा कुल नाश कर दिया। आजतक हमारे खानदान में ऐसा ब्याह नहीं हुआ था।”
अब देखिए अपनी ही बेटी दिव्या को , सात साल हो गये दामाद जी को गुजरे हुए। कहां हमने उसकी दूसरी शादी के लिए सोचा। ना ही कभी उसने कोई इच्छा जाहिर की । उसके ससुराल वालों ने कोशिश की थी पर हमने साफ मना कर दिया कि हमारे खानदान में यह सब नहीं चलता है।” और देखो इस कुलनाशी नए जोगी को….
बेटी की बात आते ही चाची की आँखें भर गईं।वह आँचल से अपनी आँख पोछने लगीं। दिव्या पिछे बरामदे में खड़ी सूनी आंखों से सबको देख रही थी और सुन रही थी। उसपर नजर पड़ते ही चाची के मूंह से निकला अन्याय तो किया है आपलोगों ने मेरी फूल सी बेटी के साथ। सारी खुशियां छीन लिया आपके दकियानूसी विचार ने। दो साल ही तो हुए थे शादी के! पता नहीं किसकी नजर लग गई उसके सुहाग को। बड़े लगन से आर्मी वाले दामाद से शादी की थी। बेचारे लड़ते हुए शहीद हो गए देश की खातिर ! पूरा देश धन्य हो गया था उनकी शहादत पर। लेकिन लूट गया था मेरी “गुड़िया” का संसार!! बेचारी खिली भी नहीं थी कि मुर्झा गई।
हमसे तो भले ससुराल वाले थे ।ससुर जी चाहते थे कि दिव्या की दूसरी शादी हो जाय। उनका कहना था कि बेचारी पहाड़ सी जिन्दगी अकेले कैसे काटेगी। ससुर जी की यह बात इनलोगों को इतनी नागवार गुजरी की तैश में जाकर वहां से बेटी को उठा लाये । मेरी गुड़िया चार साल से मैके में ही पड़ी वैधव्य की जिन्दगी जी रही है। इनलोगों के ढोंग के कारण उसकी हंसी -खुशी बलि चढ़ा दी गई। अन्याय की बात करते हैं।
चाचाजी बौखलाहट में बोले जा रहे थे। कितनी बेशरम होती जा रही है यह पीढ़ी। सारे फैसले खुद ही लेने लगी है। जब तक पढ़ते- लिखते रहेंगे तब तक जोंक की तरह चिपटे रहेंगे माँ -बाप से। लेकिन जैसे ही कहीं सेटल हो जाते हैं तब माँ-बाप घर परिवार की जरूरत ही नहीं पड़ती इन्हें। धिक्कार है ऐसी औलाद पर!
पिताजी के मान मनौवल के बाद चाचाजी कुछ शांत हुए। उन्होंने शादी में जाने की हामी दे दी इस शर्त पर कि वह नहीं जाएंगे। सब तैयारियां करने लगे।
चाची अपने सामानों के साथ दिव्या के कपड़े पैक कर रही थीं तभी चाचाजी कमरे में आ गये। देखते ही दांत पिसते हुए बोले- ” इसके कपड़े क्यूँ रख रही हो? यह कहीं नहीं जाएगी
जिसको जाना है जाए लेकिन दिव्या नहीं जायेगी वहाँ भाई का नौटंकी देखने। और वैसे भी शादी- ब्याह के रस्मों में जाकर यह करेगी भी क्या?
अचानक से चाची, चाचाजी के सामने उठकर खड़ी हो गईं और गुस्से से कांपते हुए बोलीं-” खबरदार जो आगे एक भी शब्द निकाला आपने मेरी बेटी के लिए।
निर्दयी हैं आप…अन्यायी हैं आप और आप का खानदान ….आप के झूठे अहंकार ने मेरी बेटी को बिना किसी कसूर के जिन्दगी भर के लिए अछूत बना दिया ..धिक्कार है ऐसी घटिया परंपरा जो जिन्दगी की खुशियां मातम में बदल दे। “
हमने चाची का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था ।पूरा घर चाची के रौद्र रूप से सन्न था। उन्होंने कहा-” मेरा बेटा अन्याय नहीं, न्याय कर रहा है। मेरी बेटी की तरह ही किसी निरीह को जीने की राह दे रहा है और मैं उसकी माँ मरते दम तक उसका साथ दूँगी। “
स्वरचित एंव मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार