अब अफ़सोस कर क्या मिलेगा – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“मम्मा मम्मा कहाँ हो आप…. ?”दस साल का ध्रुव पूरे घर में नित्या को खोजता हुआ घूम रहा था 

“ तेरी माँ कहाँ होगी बस बैठ कर अफ़सोस करती रहती है पहले ही समझ जाती तो आज ये दिन तो ना देखना पड़ता… और बेटा तुम भी तो जानते ही हो ना…. तुम्हारी माँ कहाँ हो सकती हैं….फिर भी चिल्लाते रहते हो..।” सुनंदा जी ने जैसे ही कहा ध्रुव के कदम ठिठक गए

वो पल भर को रूका और भाग कर सीढ़ियों से उपर के कमरे में पहुँच गया 

देखा तो माँ किताब में सिर घुसाए थी…. आँखों से अविरल आंसुओं की धार बह रही थी…..

“ मम्मा…।”कहता हुआ ध्रुव दौड़ कर अपनी माँ से जा लिपटा….सामने पिता की खाली पड़ी आराम कुर्सी को हिलाते हुए बोला,“ आप यहाँ आकर इस कोने में रखी कुर्सी पर बैठ किताब पढ़ती रहती हो …. रोती रहती हो….इसपर क्यों नहीं बैठती हो… जहाँ पापा बैठा करते थे…?”

नित्या कुछ ना बोली… बस ध्रुव को गले लगा ली….

थोड़ी देर में दोनों नीचे आ गए….. 

“ बहू कब तक ऐसे निहाल के कमरे में जाकर उसकी किताबों में खुद को तलाशती रहोगी…… जब समय था तुम उससे उखड़ी रहती थी और आज देखो तुम्हें उन्हीं किताबों से प्यार हो गया है जिन्हें तुम उठा उठा कर फेंक दिया करती थी अब अफ़सोस करने से क्या होगा बताओ?” सुनंदा जी ने कहा …. उनकी आवाज़ में दर्द भी था और नित्या से थोड़ी नाराज़गी भी

“ मम्मी जी…. मुझे पता है आप मुझसे अभी भी नाराज़ है पर उसमें मेरी कोई गलती नहीं है…. ये आप भी जानती है….।” नित्या ने सुनंदा जी का हाथ पकड़कर कहा

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रात का समय हो रहा था खाना खा कर सब सोने चले गए…. नित्या की आँखों में आज भी नींद नहीं थी….. दो साल पहले की ही तो बात है….

” कहाँ हो निहाल….. सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं…. देखो ध्रुव भी केक काटने का इंतज़ार कर रहा है…. जल्दी आओ ना ।” नित्या ने कहा

“ आ रहा हूँ नित्या…. आज मेरे दोस्तों ने मेरी किताब की माँग कर ली है वो बस कुछ समय में इस शहर से बाहर जा रहे हैं बस उनसे एयरपोर्ट पर मिलकर आ रहा हूँ…..।” निहाल ने कहा 

“ओफ्फहो एक ये तुम्हारी किताबें और उपर से ये तुम्हारे दोस्त कभी जो तुम किसी ख़ास दिन अपनी पत्नी के लिए निकाल लो… ।” कहते हुए नित्या ने फ़ोन रख दिया और निहाल के कमरे में जाकर उसकी किताबें उठा कर फेंकने लगी…,“ पता नहीं क्या ही शौक़ लगा है नॉवेल लिखने का… जब देखो लिखने में लगा रहता…. बीबी है ..बच्चा है,माँ है पर इन सब की फ़िक्र कहाँ है …. बड़बड़ाते हुए नित्या कहे जा रही थी 

सुनंदा जी ये सब देख कर निहाल पर भुनभुना रही थी और बहू की हरकतें देख उसपर ग़ुस्सा हो रही थी….

” ऐसा करो बहू ये किताबें तुम्हें तकलीफ़ देती हैं ना तो उठाकर फेंक दो….. पर यें बड़बड़ाना बंद करो…. निहाल को आज जल्दी आना चाहिए था समझ रही हूँ पर तुम्हारी ये हरकतें सही है क्या…. ध्रुव की ओर दखो वो सहमकर बैठ गया है…।” सुनंदा जी नित्या का हाथ रोकते हुए बोली 

तभी अचानक नित्या के फोन पर निहाल का कॉल आया,“ आप कौन बोल रही है…. जल्दी से मानस हॉस्पिटल आ जाइए….. जिन शख़्स का ये नम्बर है उनका एक्सीडेंट हो गया है ।”

नित्या को तो मानो साँप सूँघ गया….. सुनंदा जी झकझोरते हुए पूछी ,“क्या हुआ…. बोलो भी….. बुत क्यों बन गई …क्या कहा निहाल ने…?”

“ माँ वो ….निहाल …..अस्पताल…।” कहते हुए नित्या सास और बेटे के साथ अस्पताल की ओर निकल गई 

अस्पताल जाकर जो लोग उसे लेकर आए उनसे पता चला बाइक की स्पीड ज़्यादा थी सामने गाय आ गई …. ब्रेक लगाते लगाते गाय को बचाने के चक्कर में पुलिया से जा टकराया और नीचे गिर गया….. अस्पताल आते आते निहाल ने दम तोड़ दिया….. लास्ट डायल नम्बर आपका ही था वो पता कर आपको कॉल किया गया…… इतनी तेज बाइक चलाने की वजह से ये हादसा हो गया….. क्या ही ज़रूरत होती लोगों को तेज चलाने की समझ नहीं आता …. लोग फुसफुसा रहे थे….. नित्या के साथ साथ सुनंदा जी के हाथ पाँव भी फूल गए…..किसी तरह खुद को सँभाल कर निहाल को अंतिम विदाई दी….. 

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नित्या लगभग टूट चुकी थी….. हम जिनसे जितना प्यार करते हैं झगड़ा भी सबसे ज़्यादा उसी से करते हैं….. पर इस तरह झगड़े की वो छोड़ कर चला जायेगा कोई कहाँ सोच पाता है…..

नित्या जिन किताबों को लेकर निहाल से झगड़ा किया करती थीं उसके जाने के बाद जब भी काम से उपर आती निहाल के स्टडी रूम में जाकर घंटो बैठी रहती ….. 

” निहाल ये किताबें जब भी पढ़ती हूँ तुम आसपास ही महसूस होते ….. ऐसा लगता है जैसे हमारे प्यार को तुमने इन किताबों में लिख कर मुझे ये चेता दिया था कभी कुछ भी हो सकता….. तुम्हारा जाना क्या तुमने पहले से सोच रखा था….।” नित्या निहाल की किताब पढ़कर सवाल किया करती थीं 

सुनंदा जी बहू की हालत देख रो पड़ती…. जिन किताबों ने उनके बीच कितनी बार अनबन करवाया आज नित्या उन्हीं किताबों में अपने निहाल को खोजा करती है…. महसूस किया करती है…. और प्यार वो तो पहले भी था उसके नहीं रहने पर उसकी माँ और बेटे से हद से ज़्यादा करने लगी है…. क्योंकि ये दो ही लोग तो है उसके जीवन में बचे हैं जो निहाल को किसी ना किसी रूप में ज़िन्दा रखे हुए है।

नित्या सोचते सोचते जाने कब सो गई थी….. नींद अलार्म के साथ खुली….. पास वाले तकिये पर हर दिन की तरह निहाल के बालों में हाथ फेरने को बढ़ाया…. बेटे को देख एक हूक  सी उठी ….. निहाल….. वो तो बस अब किताबों में ही मिलता है प्यार की बातें करता हुआ…. ये सोचते हुए नित्या उठ कर अपनी दिनचर्या में लग गई ।

दोस्तों कभी कभी हमारी नाराज़गी किसी की जान पर बन आती है…. जब भी आपके अपने सफर पर हो…. उनसे जल्दी आने की ज़िद्द ना करें …..बल्कि उनका एक घंटा देर से आना बर्दाश्त कर ले….. क्योंकि हम सब जानते है…. चलने की रफ़्तार जहाँ तेज हुई बहुत कुछ पीछे छूट जाता है ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# अफ़सोस

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