आत्मसम्मान – विभा गुप्ता

” कमली.., कल से तुम खाना-नाश्ता भी बना दिया करना, उसके लिये तुम्हें पाँच हज़ार और दे दिया करूँगा।ठीक है ना?”

” हाँ भाइया!” मनीष के पूछने पर कमली तपाक-से बोली।उसके चेहरे पर खुशी के भाव थें।सिंक में रखे बरतनों को साफ़ करते हुए वह मन ही मन कुछ हिसाब लगाने लगी।

लेकिन पास खड़ी दिव्या का मूड ऑफ़ हो गया।उसने मनीष को घूरकर देखा जैसे कह रही हो कि अच्छा…. तो जनाब को अब मेरे हाथ का खाना भी खराब लगने लगा है।जवाब में मनीष मुस्कुरा दिया और ऑफ़िस चला गया।

शाम को घर आने पर मनीष ने आवाज़ लगाई,” दिव्या..! यार एक कप चाय तो पिलाओ।”

दिव्या मनीष को चाय का कप थमाकर जाने लगी तो मनीष ने उसका हाथ पकड़कर अपने पास बिठा लिया और चाय पीते हुए उसकी तरफ़ देखा, फिर बोला” मैं जानता हूँ कि कमली को खाना बनाने की बात लेकर तुम मुझसे नाराज़ हो परन्तु क्या करता।ऐसा करना ज़रूरी था।”

” ऐसा करना क्यों ज़रूरी था..ज़रा मैं भी सुनूँ।” गुस्से-से मनीष को देखते हुए दिव्या ने सवाल किया।

मनीष उसका हाथ अपने हाथ लेकर बोला, ” कल शाम को ऑफ़िस से लौटा तो देखा कि कमली दो-तीन महिलाओं के साथ बैठी बातें कर रही थी।उनमें से एक ने कमली से पूछा,” अरी कमली…., अब तू क्या करेगी?पैसे का इंतज़ाम न हुआ तो अपने पति का ऑपरेशन कैसे करवाएगी?”

तभी दूसरी ने कहा,” तू तो कहती थी कि तेरी दीदी और साहब बहुत अच्छे हैं तो तू उनसे ही काहे नहीं माँग लेती।” तब कमली बोली,” तू ठीक कहती है चंदा कि हमारी दीदी- भाइया लोग बहुत भले हैं, लेकिन क्या है कि पिछले साल की बरसात में हमारी छत टपक रही थी तब उसे बनवाने के लिए मैंने दीदी से ही हजार रुपये माँगें थें।रूपये लेते बखत उनसे कहा था कि अगले महीने की पगार से काट लेना। और जब अगले महीने की पगार से उनसे हजार रूपये काटने को कहा तो दीदी मुस्कुराते हुए बोली थी कि अगली बार।लेकिन जानती हो चंदा, दीदी का अगली बार कभी नहीं आया।उन्होंने पैसे वापस नहीं लिये।अब ऐसे भले लोगों से बार-बार रुपये माँगकर क्या हमें अपने ऊपर पाप चढ़ाना है ।इसीलिए चाहती हूँ कि कहीं खाना बनाने का भी काम मिल जाता तो चार-पाँच महीनों में पैसे जमा हो जाते और फिर….।”

बस इसीलिये मैंने कमली को खाना बनाने के लिए कहा था ताकि पति के ऑपरेशन के लिये उसे पैसे मिल जायेंगे और उसका आत्मसम्मान भी बना रहेगा।हाँ..तुमसे पूछा नहीं, ये गलती अवश्य हो गई मुझसे।लेकिन तुम्हीं बताओ दिव्या…, क्या पूछने की ज़रूरत थी?”

” नहीं मनीष, बिल्कुल भी नहीं….। मैंने आपको गलत समझा, मुझे माफ़ कर दीजिये।” कहते हुए दिव्या भावुक हो गई।

हँसते हुए मनीष बोला,” पर तुम्हारे हाथ का स्वाद भी मैं मिस नहीं करना चाहता हूँ दिव्या। इसके लिए हम कभी-कभी कमली को कह देंगे कि बाहर जा रहें हैं।इससे तुम्हारे हाथ के बने खाने का स्वाद बना रहेगा और कमली को भी कुछ दिनों का आराम मिल जायेगा।कहो..कैसा है मेरा आइडिया?”

” एक्सीलेंट” खुशी-से दिव्या मनीष के गले लग गई और दूर खड़ी कमली जो थोड़ी देर पहले ही घर में घुसी थी, दोनों की बातें सुनकर उसकी आँखें भर आईं।उसे लगा, जैसे उसने अपनी दीदी-भाइया के रूप में साक्षात् भगवान के दर्शन कर लिये हो।

विभा गुप्ता

स्वरचित

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