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बेटा यह फैसला मैंने अपने आत्म सम्मान के लिए लिया है। मेरा संबल तुम्हारे पापा ही है। आज भी उनकी पेंशन आती है और मेरी बीमारी पर मेरा इलाज आराम से हो जाता है । क्या वृद्ध होने पर माता-पिता की बच्चों पर निर्भरता की कीमत उनका आत्मसम्मान है? क्यों वृद्धजन अपना आत्मसम्मान बनाए रखते हुए नहीं जी सकते हैं।
मालती जी अपनी बेटी से बात कर रही थी। आइए आपको मैं मालती जी से मिलवाती हूं। मालती जी के पति वर्मा जी रिटायर्ड अकाउंट्स ऑफीसर थे और मालती जी हमारी कॉलोनी के कोने वाले घर में रहते थे। उनकी बेटी निशा का विवाह हो चुका था और बड़ा पवन और छोटा गगन उनके दो बेटे नौकरी करते थे। क्योंकि उनकी शादी जल्दी हो गई थी इसलिए उनके पोते पोतियां भी बड़े ही थे।
मालती जी की उम्र का पता तो वर्मा जी की मृत्यु के बाद ही लगा वरना कभी उनके बालों में सफेदी नहीं थी। मैचिंग बिंदी लिपस्टिक और लेटेस्ट फैशन के कपड़े और वर्मा जी का शौकीन मिजाज होना, कॉलोनी के क्लब में अक्सर वह दोनों घूमते हुए दिखाई देते थे। उनकी सबसे अधिक मिलनसार और हंसमुख जोड़ी थी । जब वर्मा जी को दिल का दौरा पड़ा तो ही सबको पता चला कि उनके घर में दोनों बेटे ऊपर और नीचे रहते हैं।
वर्मा जी की मृत्योपरांत जब बंटवारा हुआ तो बड़े बेटे पवन को मार्केट वाला फ्लैट दे दिया गया और छोटे बेटे गगन जिनके साथ कि मालती जी रहती थी उसके नाम पर कौलोनी का घर कर दिया गया।
उनके दोनों बेटे इस बंटवारे से बहुत खफा थे। क्योंकि छोटे गगन के पास एक बेटी और एक बेटा था तो बड़े बेटे पवन का ख्याल था कि मार्केट वाला वह तीन कमरों का फ्लैट यदि छोटे भाई गगन को दे दिया जाए तो गगन की तो बेटी का विवाह हो जाएगा और वह उस डूप्लेक्स फ्लैट मैं आराम से रह सकता है।
बड़े भाई पवन के दो बेटे थे और पवन को लगता था कि बेटे के विवाह के बाद फ्लैट की बजाय कॉलोनी का घर उसे मिलता तो अच्छा था। वह ऊपर दूसरी मंजिल भी पूरी बनवा सकता था। हालांकि कौलोनी के मकान में ऊपर दो कमरे बने हुए थे।
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गगन भी वह डुप्लेक्स फ्लैट लेना चाहता था जो कि मार्केट के पास था उसे यही महसूस होता था क्योंकि मां उसके साथ रहती थी इसीलिए ही पिताजी ने ऐसा बंटवारा किया वरना पुराने घर पर तो हमेशा बड़े का अधिकार होना चाहिए। दोनों भाइयों की असंतुष्टि के फलस्वरुप मालती जी की तकलीफें बढ़ने लगी।
क्योंकि सारे लोग मिलने के लिए मालती जी से कॉलोनी के घर में ही आते थे तो गगन की पत्नी को लगने लगा की अब पूरी उम्र उसको ही सबका निभाना पड़ेगा भले ही वह बुआ हो बहने हो या कोई भी हो। अब उसका गुस्सा मन ही मन न रहकर सबके सामने भी फूटने लगा था कि बड़ी भाभी तो छूट गई मेरी जान को सरदर्द दे गई।
बड़े बेटे पवन और उसकी बहू तो गुस्से के मारे घर आते ही नहीं थे उन्हें यही लगता था कि घर अगर छोटे को दिया गया है तो वही बड़ों की तरह सबको निभाए।
उन दोनों की खींचातानी में बेचारी मालती जी यूं ही पिसती रहती थी। वह घर जहां कि उनके होते हुए मेहमानों का तांता लगा रहता था अब कोई आते हुए भी सोचता था। मालती जी का अकेलापन तो बढ़ ही रहा था बच्चों के कारण उनकी शर्मिंदगी भी बढ़ रही थी।
उसे दिन तो हद ही हो गई जब निशा के आने पर बिना मालती जी का लिहाज करे गगन की पत्नी ने निशा को कहा कि कभी आप मम्मी को लेकर बड़े भैया के भी चली जाया करो या सदा मदा के लिए सबका मुझे ही निभाना पड़ेगा।
उस पूरी रात वर्मा जी की फोटो को हाथ में लेकर मालती जी बहुत रोई और फिर उन्हें लगा मानो वर्मा जी उन्हें प्यार से समझा रहे हो कि तुम कमजोर क्यों हो रही हो? तुम कमजोर हो ही नहीं, ना ही तुम किसी पर बोझ हो। तुम्हारे लिए मैंने कहां कमी छोड़ी है? तुम स्वयं को पहचानो और हक से जहां चाहो वहां रहो सब कुछ तुम्हारा ही तो है। बस फिर जाने कब उन्हें नींद आई
और सवेरे उठकर मालती जी ने गगन से कहा मैं जैसे पहले तेरे पापा के साथ रहती थी वैसे ही मैं अपना कमरा ऊपर अलग ही ले रही हूं, मैं अपना खाना वहां ही बनाऊंगी। तुम लोगों का खाना खाते हुए मेरी तो हिम्मत ही खत्म हो रही है । यह बात उन्होंने इतने आत्मविश्वास के साथ कही की चाह कर भी गगन उनकी इच्छापूर्ति के सिवा और कुछ ना कर सका। मालती जी का वही पुराना नियम चल निकला वह अब सवेरे शाम सैर को जाती अपना मनपसंद खाना बनाती और आराम से रह रही थी।
कुछ समय बाद वह पवन के घर मार्केट वाले मकान में गई और उन्होंने कहा कि डुप्लेक्स में ऊपर वाला कमरा केवल मेरे लिए ही रहेगा मेरी जब इच्छा होगी मैं निशा के साथ छुट्टियों में यहां पर रहूंगी क्योंकि मार्केट से कुछ भी खरीदना यहां पर आसान होता है तो जब मेरा मन करेगा मैं यहां रहूंगी और मैं अपना खाना अलग ही बनाऊंगी। उनके बढ़ते हुए आत्मविश्वास के अतिरेक में कुछ ऐसा था
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कि ना बेटा ना बहू कोई मना ही नहीं कर पाए। शायद अब मालती जी को भी विश्वास हो चुका था कि वह किसी पर बोझ नहीं है वर्मा जी ने उनके लिए कहीं कोई कमी नहीं छोड़ी थी और वर्मा जी इस दुनिया से जाने के बाद उनकी हिम्मत बनकर हर समय उनके साथ ही है। निशा जब तब बच्चों के साथ आती और आराम से अपनी माता जी के साथ रहती थी।
आज जब निशा ने अपनी माता जी को कहा कि बड़े भैया चाहते हैं आप डुप्लेक्स में ऊपर वाला कमरा खाली कर दें क्योंकि वह चाहते हैं कि अब अपने बेटे का विवाह करके उसे ऊपर वाला कमरा दे दे। वैसे अब आपकी उम्र भी ढ़ल रही है और आपका इन भाइयों ने ही तो करना है। आप देख लो, आप अब इनके साथ ही रह लो इतना सुनने पर मालती जी गुस्से से बोली अभी तक भी तो मेरा तेरे पिता ही कर रहे हैं ना?
उनकी हिम्मत से जैसे आज तक चल पा रहा है वैसे ही आगे भी चलेगा। जैसा तुम कह रही हो बीमारी में अगर यह बच्चे मेरा कुछ ना करें तो तुम मेरे लिए कोई अटेंडेंट रख लेना। अपने आत्मसम्मान के साथ मैं समझौता कभी नहीं करूंगी ना मैं किसी पर बोझ हूं और ना ही बोझ बनूंगी।
मैंने अपने बच्चे पालकर अपनी जिम्मेदारी निभाई है तो बच्चे भी अपनी जिम्मेदारी स्वयं निभाएं और मेरे मरने पर अंत में जैसे चाहे रहे मेरे कुछ पैसे तुम्हारे साथ में जमा है उनसे तुम चाहो तो मेरा ख्याल कर सकती हो। मालती जी ऐसा बोलकर एकदम शांत हो गई।
उनके आत्मविश्वास को देखकर निशा को लगा मानो पापा भी मम्मी के साथ ही हैं। निशा भी हिम्मत बनकर अपनी मां के साथ ही खड़ी हो गई।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा
#एक फैसला आत्म सम्मान के लिए प्रतियोगिता के अंतर्गत#