आत्मसम्मान किसका बड़ा? – सविता गोयल : hindi stories with moral

hindi stories with moral :  “सगुनी, तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे झूले पर बैठने की? क्या तू भूल गई कि ये मेरा झूला है?  गंवार कहीं की… ” शकुन्तला गुस्से में अपनी नौकरानी सगुनी को जोर-जोर से डांट रही थी।         

“माफ कर दो छोटी ठकुराइन, भूल हो गई। बस इतना सुन्दर झूला देखकर मन कर गया एक बार बैठने का। मैं अभी इसे साफ किए देती हूँ|” सगुनी ने घबराहट में झूले से उठते हुए कहा। 

शकुन्तला का गुस्सा फिर भी शांत नहीं हो रहा था। दरअसल शकुन्तला को अपने झूले से बहुत लगाव था। उसपर बैठकर ही उसे शांति और सुकून मिलता था। सगुनी भी हैरान थी कि इतनी छोटी सी बात पर शकुन्तला ठकुराइन इतना क्यों गुस्सा हो रही हैं? डर से कांपते हुए वो दूसरे कामों में लग गई। 

शकुन्तला एक बड़े ठाकुर खानदान की बहु थी। समाज में रौब-रुतबा काफी था। जब ब्याह कर आई थी तब अपनी किस्मत पर इतरा रही थी। आगे-पीछे नौकरों की फौज घुमती थी, किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। खुद को छोटी ठकुराइन के संबोधन से सुनने में एक अलग ही सम्मान महसूस होता था उसे। उसके कमरे में एक झूला लगा था, जिसपर बैठकर वो खुद को किसी महारानी से कम नहीं समझती थी। 

लेकिन जैसा ऊपर से दिखता है सब कुछ वैसा ही नहीं होता| कुछ दिनों तक तो सब ठीक था, लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद शकुन्तला को आभास होने लगा था कि उसके पति ठाकुर विरेंद्र सिंह बहुत देर से घर आने लगे थे| कभी-कभी तो शराब की बदबू भी आती थी। एक रात शकुन्तला ने अपने पति से बोल दिया, “सुनिए जी, आप इतनी देर से और शराब पी कर मत आया करो। 

इतना बोलने की देर थी कि एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा। शकुन्तला सन्न रह गई, अवाक सी अपने पति की ओर देखा तो विरेंद्र सिंह ने चिल्लाते हुए कहा, “खबरदार जो मुझपर हुकुम चलाने की कोशिश की। मैं यहाँ का ठाकुर हूँ और अपनी मर्जी का मालिक हूँ। तू अपनी औकात में रह, हुकुम चलाने के लिए इतने नौकर-चाकर छोड़ रखे हैं। आइंदा मुझे मत टोकना, नहीं तो इससे भी बुरा हाल करूँगा।” 

शकुन्तला को विश्वास नहीं हो रहा था। वो अपना घायल आत्मसम्मान लिए रोते हुए अपनी सास के पास आई, “माता जी, आपके बेटे ने मुझपर हाथ उठाया।” 

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सास ने उसे बैठाया और हल्दी का लेप लगाते हुए कहा “देख बहु, आज तो तुम मेरे पास आ गई| लेकिन ध्यान रहे, हमारे खानदान में बहु-बेटे के कमरे की बातें बाहर नहीं आतीं। अगर गुस्से में एक थप्पड़ मार भी दिया तो इतना बवंडर दिखाने की जरूरत नहीं है। महारानी की तरह सारी सुख-सुविधा भी तो दे रखी हैं तुझे। फिर पति का अपनी पत्नी पर हक होता है। आइंदा ऐसी कोई बात हो तो टेसुए बहाती मेरे पास मत आना और खबरदार जो घर के नौकर-चाकरों को इन बातों का पता चला। रोने के बजाय अपने पति को कैसे रिझाना है ये सोच”| 

शकुन्तला हैरान थी, उसे सास से ऐसी उम्मीद नहीं थी। आज शरीर के साथ उसकी आत्मा भी आहत हो रही थी। कहते हैं ना कि यदि अन्याय को पहले ही नहीं रोका जाए तो वो बढ़ता ही रहता है| ऐसा ही कुछ शकुन्तला के साथ भी हुआ। ठाकुर साहब का हाथ अब उठने से पहले सोचता नहीं था। शकुन्तला भी धीरे-धीरे मार खाने की आदी सी हो गई थी। अपने मन की कुंठा को शांत करने के लिए वो नौकरों पर हुकुम चलाती रहती। 

एक दिन सगुनी को आने में देर हो गई| शकुन्तला को सगुनी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। झूले पर बैठी वो उसी का इंतजार कर रही थी| सगुनी के आते ही वो उसपर बरस पड़ी, “कितनी देर से तेरी बाट देख रही हूँ, कहाँ मर गई थी आज? अभी तक गर्म पानी नहीं हुआ। 

“छोटी ठकुराइन, वो अपने मर्द को अस्पताल ले कर जाना पड़ा इसलिए देर हो गई।” सगुनी ने सकपकाते हुए कहा| “अस्पताल, क्या हो गया तेरे मर्द को?” शकुन्तला ने नरम होते हुए कहा। 

“कुछ नहीं छोटी ठकुराइन, मैनें ही सर फोड़ दिया था।” सगुनी ने जोश में आते हुए कहा। 

“तूने सर फोड़ दिया!! लेकिन क्यों??” शकुन्तला ने उत्सुकतावश पूछा। 

“हाथ उठाया था आज उसने मुझपर, मैंने भी उल्टा मार दिया| मार खाने के लिए थोड़े हीं उसके साथ ब्याह किया था। अगर आज नहीं मारती तो फिर वो ऐसी हरकत करता। फिर भी मेरा मर्द है, मेरी बेटी का बाप है। इसलिए अस्पताल ले जाना पड़ा।” सगुनी एक सांस में ही बोल गई। 

सगुनी की बात सुनकर शकुन्तला को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे झकझोर के नींद से जगा दिया हो। उसे आज सगुनी का आत्मसम्मान अपने आत्मसम्मान से कहीं ऊंचा लग रहा था|  उसका मन कर रहा था वो झूले से उतर जाए और सगुनी को उसपर बैठा दे| उससे ज्यादा सम्मान की हकदार तो वो  गंवार सगुनी है जिसमें विरोध करने की हिम्मत है| जो खुद अपना सम्मान बचाना जानती है| शकुन्तला को अपने ये ठाठ-बाट सब झूठे लग रहे थे| 

अगली बार जब विरेंद्र सिंह ने शकुन्तला पर हाथ उठाने की कोशिश की तो शकुन्तला ने उनका हाथ पकड़ लिया। उन्होंने चिल्लाते हुए कहा “तुम्हारी इतनी हिम्मत??” 

“हां, हिम्मत तो मुझमें पहले भी थी लेकिन आज मेरा आत्मसम्मान जाग उठा है। आप ठाकुर हैं तो मैं भी ठकुराइन हूँ। आगे से हाथ उठाने की सोचना भी मत, नहीं तो ये कमरे की बातें बाहर तक पहुँच जाएंगी।” शकुन्तला ने आज दृढ़ता से कह दिया| 

उसका ये रूप देखकर ठाकुर का हाथ खुद-ब-खुद नीचे हो गया| अब शकुन्तला को वास्तव में सुकून मिला और मन ही मन उसने सगुनी को धन्यवाद दिया जिसके कारण उसमें आज ये आत्मसम्मान जाग उठा था|       

   #गंवार ,                                  सविता गोयल

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