Moral Stories in Hindi : लीना किसी को कुछ नही बोलती बस अपने आप को सबके सामने नीचा महसूस करती थी और रोज सबको ऐसे सुन सुनकर उसके मन को बड़ी चोट पहुंचती थी । उसका आत्मविश्वास भी धीरे धीरे कम हो रहा था
कुछ दिनो बाद लीना बीमार रहने लगी , डॉक्टर को दिखाया तो डिप्रेशन की शिकायत बताई । जब उसके पति को सबके बारे में पता चला तो उसने लीना को अपना ध्यान रखने के लिए बोला और समझाया कि घर की बातों को दिल पे मत लगाओ ।
लीना मन ही मन सोचने लगी “क्या इतना आसान है ये सब बातें सुनकर दिल पे ना लगाना, ये लोग मुझे ताने मारने में कोई कमी नही रखते , मुझे अपने आप से कभी कभी तो शिकायत होती हैं कि क्या बिलकुल भी हुनर नही है मुझमें पर अगले ही पल उसे अपने पापा की कही बाते याद आ जाती कि कभी कभी किसी का हमारे लिए बुरा बोलना हमारे लिए अच्छा साबित हो जाता है बस जरूरत है तो शांतिं के साथ सोचने की और दिमाग से काम लेने की।”
कुछ महीनों बाद लीना गर्भवती हो गई तो ज्यादा कुछ सोचती नही ऐसी स्थिति में क्योंकि डॉक्टर ने मना किया था ये कहकर कि होने वाले बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा। दिन ऐसे ही निकलने लगे और लीना ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया और उसके कुछ ही दिनों बाद उसकी देवरानी ने बेटे को जन्म दिया।
अब लीना को यहां भी सुनना पड़ा बेटे और बेटी में भेद जो करते हैं लोग।उसकी सास पोती से ज्यादा पोते का ध्यान रखती थी।लीना मन ही मन बहुत दुखी रहती। कभी कभी अपनी बेटी को कुछ अपने मन का खरीदना चाहती तो ससुर जी टोक देते तेरी हिम्मत कैसे हुई बिना पूछे कुछ खरीदने की और वो भी तेरी बेटी के लिए जबकि उसकी देवरानी खुद कमाती थी तो मन चाहा सामान खरीदती रहती अपने बच्चे के लिए और लीना को भी दे देती कभी ये कहकर कि लीजिए भाभी अब आपके पास तो अपने रुपए होते नही मेरी तरफ से बिटिया के लिए रख लीजिए
लीना अपनी देवरानी को कुछ नही बोल पाती पर मन ही मन दुखी जरूर हो जाती और भगवान से प्रार्थना करती कि काश वो इस माहोल से बहुत दूर जा पाती
शायद भगवान ने उसकी सुन ली और
एक साल बाद लीना के पति को दूसरी कम्पनी में और अच्छी नौकरी बैंगलोर में मिल गई और वो भी अपनी बेटी के साथ आ गई पर जो घाव उसके दिल पर हुए अपने ससुराल वालो के तानों से, वो अभी भरे नही थे रह रह कर उसके दिमाग में वो ही बाते आती कि वो कुछ लायक नही है?
बार बार ये सुनकर लीना ने अब अपने आप से वादा कर लिया कि मुझे भी खुद को साबित करना है और दिखाना है कि हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी कमजोर नही बल्कि ज़रूरी भाषा है जो सबको आनी ही आनी चाहिए
इस बार लीना ने चुप रहने के बजाय उनको जवाब देने की ठान ली थी और साथ में अपनी काबिलियत सबको दिखाने की।अपने पापा की बात सही लगने लगी अब उसको कि किसी का बुरा बोलना उसके लिए अच्छा भी साबित हो सकता है।
उसकी बेटी अब 2 साल की हो गई थी और अगले 5,6महिनों में उसको भी स्कूल में एडमिशन दिला दिया और खुद ने बीएड की हुई थी तो उसने भी वहां प्राइवेट नौकरी के लिए आवेदन दे दिया। और साथ में और स्कूलों में भी। बैंगलोर में हिंदी टीचर की बहुत मांग भी रहती है तो लीना को कई स्कूलों से कॉल आ गए बस उसकी बेटी के स्कूल को छोड़कर…तो उसने वहां नौकरी कर ली क्योंकि वो हाथ आया मौका गंवाना नहीं चाहती थी
लीना के आने और उसकी बेटी के आने के टाइम में 1 घंटे का अन्तर था तो लीना ने 1 घंटे के लिए अपनी बेटी को क्रेच में डाल दिया था और आते हुए उसे अपने साथ लेते हुए आती
अब लीना का आत्मविश्वास जो कहीं दब गया था वो वापस आ रहा था उसे भी अपना नया जीवन भा गया था। धीरे धीरे चुप रहने वाली लीना अब हंसने बोलने लगीं थी । पर लोगों के ताने कहां बंद हुए थे अब भी, बस उनके शब्द बदल गए थे अब घर वाले जब भी कभी मिलते बस यही बोलते थे
खासकर उसके सास ससुर कहते तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई घर के बाहर नौकरी करने की…. देखो इसको …इतनी छोटी बच्ची है, उसका ध्यान रखने के बजाय नौकरी पर जाती है और बच्चों को गैरों के भरोसे छोड़ देती है कितनी गैर जिम्मेदार मां है ये
लीना ने अब सबके सामने एक दिन बोल ही दिया
तंग आ गई हूं मैं आप सबके तानों से। मेरा हौंसला बढ़ाने के बजाय आप मुझे पीछे क्यों धकेलना चाहते हैं?मैने अब अपने कदम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा दिए हैं और अब मेरा आत्मविश्वास मैं किसी कीमत पर नहीं खोना चाहती।
” कभी सोचा है आप लोगों ने?
मुझे कितनी चोट पहुंचती होगी जब मैं अपने बारे में ऐसी टिप्पणियां सुनती हूं। आपके इन तानों ने मुझे दिल और दिमाग दोनो से छलनी कर दिया था बड़ी मुश्किल से मुझे अपना खोया हुआ आत्मविश्वास वापस मिला है। ये हिम्मत मुझे पहले ही दिखा देनी चाहिए थी .तो कब की आत्मनिर्भर बन गई होती और खुद की अलग पहचान बना ली होती .. तो कृपया करके मेरे बारे में अपनी राय देना छोड़ देंगे तो मेरे लिए भी अच्छा रहेगा और आप सबके लिए भी, नही तो रिश्ते बिगड़ने में देर नहीं लगेगी।”
अचानक लीना का ये रूप देखकर सब चकित थे पर लीना खुद को बड़ा गर्वित महसूस कर रही थी। बरसों से दबी उसकी घुटन आज गुस्सा रूपी लावा बनकर बह निकली और वो खुद को बड़ा हल्का महसूस कर रही थी।
तब से अब तक लीना बराबर नौकरी में है और अच्छा खासा कमाती है।उसके पति का कई और शहरों में तबादला हो चुका है और लीना भी हर बार अपना जॉब कंटीन्यू करके रखी है। उसने खुद को इतना मजबूत बना लिया है कि किसी की बातों या तानों का उस पर कोई असर नहीं होता और अब तो वो हिंदी डिपार्टमेंट की हेड भी बन चुकी है और दबी सहमी सी रहने वाली लीना अब खुलकर अपनी बात सबके सामने कहने से भी नही हिचकती।
जहां लोग लीना को गंवार समझते थे वो ही अब लीना का आत्मविश्वास और मेहनत देखकर उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। उसकी आत्मनिर्भरता अब उसकी पहचान बन गई है।
दोस्तों आपको क्या लगता है लीना ने सबको जवाब देकर अच्छा किया?
क्या लोगों का रोकना टोकना, टिप्पणी करना सही था?
स्वरचित और मौलिक
निशा जैन
दिल्ली
आत्मनिर्भरता बनी पहचान (भाग 1) – निशा जैन: Moral Stories in Hindi