Moral Stories in Hindi : – आज रेखा जी स्तब्ध-सी बैठी हुईं थीं।जिस प्रकार बाँध ढ़ह जाने से पानी का बहाव और तेज हो जाता है,उसी प्रकार उनकी अंतरात्मा आत्मग्लानि के समंदर में डूबकर छटपटा रही थी।उनके अंतर्मन में इतनी आत्मग्लानि महसूस हो रही थी कि इच्छा हो रही थी
कि धरती मैया फट जाएँ और सीता मैया की तरह वह उसमें समा जाएँ।आज घर में कोई नहीं था,ठंढ़ दस्तक दे चुकी थी तो उन्होंने सोचा कि बक्से से कुछ ऊनी कपड़े निकालकर रख लूँ।ऊनी कपड़ा निकालते अचानक ही वह विचलित हो उठीं।मन आत्मग्लानि से इतना उद्वेलित था कि कोई भी काम नहीं कर पा रहीं थीं।बिल्कुल साँप-छछूँदर सी स्थिति हो गई। न उगलते बनता था,न निगलते ही।एक वर्ष
पूर्व घटित घटना उनकी आँखों के सामने सजीव होकर नाचने लगी।उन्हें तीन बेटियों के बाद पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई थी।उनके जीवन की बगिया में जो कमी थी,वह बेटे के आने से पूरी हो गई थी।तीन बेटियाँ ,बेटा और पति हरीश जी के साथ उनकी गृहस्थी की गाड़ी आराम से चल रही थी।
उनके सुखद जीवन में उनकी सहायिका रमिया का महत्वपूर्ण योगदान था,वर्ना चार बच्चों के लालन-पालन और गृहस्थी अकेले वे कहाँ सँभाल पातीं!अपनी कर्मठता और सेवा-भाव से रमिया उनके परिवार का सदस्य बन गई थी।उनके बेटे नयन के जन्म के समय खुश होते हुए रमिया ने कहा था -” दीदी! बाबू के जन्म के समय तो मैं पायल लूँगी,परन्तु शादी के समय सोने के हार के बिना न मानूँगा!”
रेखाजी और उनके पति ने हँसते हुए एक साथ कहा -” इस बार तो पायल ही पहनकर छमकना,शादी में सोने का हार जरुर ले लेना!”
रमिया बच्चे नयन की देखभाल तन्मयता से करती।बीच-बीच में रेखाजी से नेग को लेकर मजाक भी करती।देखते-देखते समय पंख लगाकर उड़ चला।रेखाजी की तीनों बेटियों की शादी हो गई। बेटा नयन भी नौकरी करने लगा।जवान रमिया अधेड़ हो चुकी थी।पति शराबी था।एक विधवा बेटी और उसके दो बच्चों की जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी,परन्तु रमिया ईमानदारी से रेखाजी के परिवार की सेवा लगातार तीस वर्षों से कर रही थी।उनके सभी बच्चों के पालन-पोषण में रमिया की सुगंध रची-बसी थी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
रेखाजी के बेटे की शादी तय हो चुकी थी।रेखाजी के साथ-साथ रमिया भी काफी खुश थी।रेखाजी के काफी एहसान उसपर थे,इस कारण परिवार के सदस्य की तरह सारे दिन काम करती और रात में अपने घर चली जाती।जिस दिन नयन की शादी थी,उसी दिन रेखाजी की तबीयत कुछ खराब थी।इस कारण उनकी बेटियों के संग रमिया ही सारे काम सँभाल रही थी।उनलोगों के सहयोग से शादी अच्छी तरह निबट गई। जिस दिन नयन शादी कर अपनी दुल्हन के साथ घर आया,उस दिन उसने अपने माता-पिता के साथ रमिया के भी पैर छुएँ।रमिया ने दोनों के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुए कहा -“बच्चों!जिन्दगी में खूब फूलो-फलो,परन्तु माता-पिता के साथ मुझे भी भूल मत जाना!”
नयन ने मुस्कराते हुए कहा -” माता-पिता को भले ही भूल जाऊँ,परन्तु आपको कभी नहीं भूलुँगा।आपने भी तो मुझे माँ-सा प्यार दिया है!”
रेखा जी के बेटे की शादी की गहमागहमी समाप्त हो चुकी थी।घर के सारे रिश्तेदार जा चुके थे,बस उनकी बेटियाँ ही सपरिवार घर में रह गईं थीं।उनका बेटा नयन भी पत्नी नीना के साथ एक-दो दिनों में हनीमून पर जानेवाला था।रमिया अस्त-व्यस्त घर समेटने में लगी हुई थी।अचानक से रेखा जी को बहू के जेवर का ख्याल आया।उन्होंने कहा -” बहू!तुमलोग तो हनीमून पर जा रहे हो।तुम्हारे जेवर के लिए हमने पहले से बैंक में लाॅकर ले रखा है।कल बैंक जाकर लाॅकर में जेवर रख आओ।”
आश्चर्यचकित होते हुए नीना ने कहा -” माँजी!मैंने जो जेवर पहने हैं,वहीं मेरे पास हैं।बाकी के जेवर तो आपके ही पास हैं!”
रेखा जी को याद आया कि उन्होंने ही बेटियों से कहकर बहू के सारे जेवर डिब्बे से निकालकर पोटली में रखवा ली थी,क्योंकि लाॅकर में डिब्बे समेत इतने जेवर नहीं अटतें।अब जेवर की पोटली एकदम से कहाँ चली गई, इसका रेखाजी को बिल्कुल ही ध्यान नहीं है।जेवर गुम होने की बात से पूरे घर में हड़कंप मच गया।घर के सारे लोग जेवर खोजने में जुट गए। बहू नीना का रोते-रोते बुरा हाल था।रमिया भी सभी के साथ मिलकर दिनभर जेवर खोजती रही।शाम में थककर उसने रेखा जी से कहा -“दीदी!मैंने दिनभर एक-एक जगह छान मारी,परन्तु जेवर कहीं नहीं मिले।अब मैं घर जाती हूँ।”
उनकी बेटियाँ और दामाद खुलकर रमिया पर शक जाहिर कर रहे थे।
बहू के जेवर खो जाने से रेखाजी काफी व्यथित थीं।उनके मुख से एक शब्द नहीं निकल रहा था,उनकी वाणी अवरुद्ध हो गई थी।उनका दिल रमिया को चोर मानने से इंकार कर रहा था,परन्तु दिमाग बच्चों की तार्किक बातों का साथ दे रहा था।
रमिया को एक तरह से धमकाते हुए उनकी बड़ी बेटी सरोज ने कहा -” रमिया!मम्मी ने सब दिन तुझपर आँख मूँदकर भरोसा किया।उसी का नाजायज फायदा तुमने उठाया।घर में बाहर के तो कोई लोग नहीं हैं?फिर जेवर कहाँ गए?क्या उसे जमीन खा गई या आसमान निगल गया?चुपचाप तुम जेवर लाकर दो।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
खुद पर इतना बड़ा चोरी का इल्ज़ाम लगने से रमिया हतप्रभ-सी हो गई। उसने रेखाजी के पैर पकड़कर रोते हुए कहा -” दीदी!मुझपर विश्वास करो ।मैंने जेवर देखे भी नहीं हैं।मैं तीस साल से इस घर में काम कर रही हूँ।कभी मेरी नियत नहीं खराब हुई। आज मैं बेटे-बहू का ही जेवर चुरा लूँगी?”
रेखा जी बेबस -सी कुछ बोल नहीं पा रहीं थीं।तीनों बेटियाँ,बहू और दामाद मजबूत तर्कों के साथ रमिया को गुनाहगार साबित कर रहें थे।सभी लोग तरह-तरह से रमिया को डरा-घमका रहें थे,परन्तु किसी भी हालत में रमिया गुनाह नहीं कबूल रही थी।रेखा दम्पत्ति खामोशी की चादर लपेटे हुए थे।रेखाजी की बड़ी बेटी सरोज ने अंतिम अस्त्र अपनाते हुए कहा -” रमिया!चुपचाप गहनों की पोटली लाकर दे दो,नहीं तो पुलिस जेवर भी निकलवा लेगी और तुम्हारे परिवार का बुरा हाल भी करेगी!”
रमिया रोते हुए अपने घर चली गई। रातभर उसकी आँखों में नींद नहीं थी।रह-रहकर उसे ख्याल आता कि उसकी तीस वर्ष की सेवा-भावना का फल उसे आज चोरी के इल्ज़ाम के रुप में मिला।वह गरीब जरुर है,परन्तु आजतक उसने बिना पूछे एक सुई तक नहीं ली।उसे सबसे ज्यादा दुख रेखाजी और हरीश जी की चुप्पी से हो रहा था।उनलोगों ने उसके पक्ष में एक शब्द भी नहीं कहा।
घर से इतने जेवर चोरी हो गए थे,आखिर पुलिस शिकायत तो करनी ही थी।अगले दिन पुलिस रमिया के घर पहुँच गई। उसके पूरे परिवार को डराती-धमकाती रही।कोई नतीजा नहीं निकलने पर पुलिस ने रमिया को परिवार समेत जेल में डाल दिया।कई दिनों तक उनलोगों को चोरी के जुर्म कबूल करने के लिए पुलिस तरह-तरह की यातनाएँ देती रही।सभी तरह के हथकंडे अपनाने के बावजूद पुलिस उनलोगों से न तो जुर्म कबूल करवा सकी,न ही कोई जेवर बरामद कर सकी।यह सच है कि कमजोर ही मार खाता है,मारनेवाला अपने दंभ में असलियत से कोसों दूर रहता है।आखिर धमकी देते हुए पुलिस ने रमिया के परिवार को छोड़ दिया।
उस घटना के बाद से रमिया का रेखा जी के परिवार से सदा के लिए नाता टूट गया।जब कभी रमिया रेखाजी के सामने पड़ती,तो रेखा जी उससे मुँह मोड़ लेतीं।उसे देखकर उन्हें वितृष्णा हो उठती।उन्हें वर्षों पूर्व रमिया की सोने के हार लेने की बात याद आ जाती।उन्हें महसूस होता कि बेटे की शादी में उन्होंने रमिया को सोने का हार नहीं दिया,तो उसने जेवर की पूरी पोटली ही गायब कर दी।
वक्त बहुत बड़ा मलहम होता है।एक साल बीतने के साथ रेखाजी का परिवार जेवर चोरी की बात भूलने लगा था।सर्दी शुरु हो चुकी थी।रेखाजी जाड़े के कपड़े बक्से से निकाल रहीं थीं।अचानक से ऊनी कपड़ों के बीच से निकलकर जेवर की पोटली जमीन पर आ गिरी।उसे देखकर रेखाजी को तो काटो तो खून नहीं जैसी हालत हो गई। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि जेवर मिलने पर खुश हों या रमिया पर इतना बड़ा इल्ज़ाम लगाने के कारण आत्मग्लानि से डूब मरें।बाहर से आकर हरीश जी ने रेखाजी के सफेद चेहरे को देखकर पूछा -” रेखा!क्या हुआ?तबीयत तो ठीक है न?”
रेखा जी ने बरबस ही उठकर जेवर की पोटली हरीश जी के हाथों में थमा दी।हरीश जी का भी चेहरा आत्मग्लानि से विवर्ण हो उठा।
समाप्त।
लेखिका-डाॅ संजु झा (स्वरचित)