Moral stories in hindi :”भाभी..! तुम्हे कितनी बार कहा है कि तुम क्रिम रंग की या कोई लाइट कलर की साड़ी पहनों..। इन फिके रंगों के सिवाय तुम पर और कोई रंग जचता ही नहीं है..!
पर तुम हो कि पता नहीं कैसे रंगों की साड़ी पहन लेती हो। और यह क्या कैसी रंग-बिरंगी चूड़ियाँ पहन ली हो खैंजडों (बंजारन) की तरह।”
छोटी अविवाहित ननद जो मुझसे बड़ी थी उसने रुखे शब्दों में कहा।
” अरे…! इनके गाँव में तो छत्तीसगढी बोलते होंगे सब, और वहाँ छत्तीसगढ़िया लोगों को हम यहाँ खेंजड़ ही तो कहते हैं..….। अब जैसा देखेगी वैसे ही तो सिखेगी…, उन्हें पहनने-ओड़ने का तरीका मालूम थोड़ी न होगा…? जो इनसे आशा रखती है। यह भी तो खेंजडन जैसे दिख रही है।”
यह कहते हुए…., मेरी तीन नम्बर वाली ननद जो पास के ही गाँव में ब्याही थी और तीन बच्चों की माँ थी।
वह और छुट्टी पर आए देवर जो आर्मी एयरफोर्स में हैं यह कहते हुए वे दोनों ही ठहाका लगा कर हँस पड़े।
यह सुनकर मेरे अंदर फिर से कुछ टुटने की आवाज आई , पर इस बार मैंनें उनकी बात का विरोध करते हुए कहा धीरे से कहा
” वहाँ के लोग बंजारे नहीं है…, बंजारे जाती के लोग तो राजस्थान में रहते हैं और वे ही रोजगार के लिए यहाँ-वहाँ जाते हैं। और मैं मध्य प्रदेश के बिलासपुर जिले से हूँ…! वह छोटा सा गाँव नहीं एक बड़ा सा शहर है और फिर ये रंग-बिरंगी चुढियाँ तो अभी फैशन पर है सभी पहनते हैं इसलिए मैं भी पहन कर आ गई।”
” इसको जीतना भी कहो सुनती नहीं है, बस ऐसे ही अपने मन मर्जी का पहनती हैं .., ” मेरे पति भी उनकी हांँ में हाँ मिलाते हुए कहने लगे।
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मेरे मुख से और कुछ न निकला बस आँखों में आँसू लिए वहाँ से चुपचाप रसोई में आ गई ,क्योंकि जब मैं ससुराल जाने के लिए निकली थी तो पति से पुछ कर ही दो रंगों की चुड़ियाँ मैचिंग करके पहनी थी ,साथ ही जो साड़ियां भी पहनी और लाई थी पति की सहमति से लेकर आई थी।
पर यहाँ आते ही पलट गए इससे बड़ा और अपमान क्या हो सकता है…?
मैं राधा, एम. ए. पास, साधारण कद-काठी की सांवली सी लड़की, पिताजी डॉक्टर थे, घर की सबसे छोटी बेटी।
घर में या हमारे रिश्तेदारी में कभी भी किसी ने मेरे सांवले रंग पर कोई घ्यान नहीं दिया था।
हर कोई मेरे नाक नक्श और स्वभाव के कारण शायद प्रभावित रहता था। इसलिए ग्यारवीं पास होने के बाद जहाँ भी रिश्तेदारी के अंदर किसी शादी विवाह में, माँ के साथ या भैया भाभी के साथ जाती तो उसके दो-तीन दिन बाद मेरे लिए रिश्ते आने लगते।
पर पिताजी सभी को नम्रता पूर्वक यह कह कर मना कर देते कि अभी छोटी है और पढ रही है , बाद में शादी करेंगे!
मेरी शादी के पाँच साल पहले ही पिताजी की मृत्यु हो गई थी।
विडंबना भी देखिए जिस तारीख को उनकी पुण्यतिथि पड़ती थी उसी दिन मेरी शादी की तारीख निकली थी।
खैर शादी के बाद एक दिन मैंने अपने पति से पुछा कि ,”आप लोग तो सब इतने गोरे- चिट्टे हो फिर मैं कैसे आपको पसंद आ गई..?”
तब उन्होंने जो जवाब दिया उसकी तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
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उन्होंने कहा,
” मेरे दोस्त कहते हैं कि सांवली लडकियाँ बहुत सेक्सी होती हैं और उनके साथ सेक्स करने में मज़ा आता है इसलिए घर वालों के मना करने के बाद भी मैंने तुमसे ही शादी करने का मन बना लिया था।”
” तो आप केवल इसी लिए मुझसे किए हैं..?”
मैंने आश्चर्य से पूछा।
” हाँ..! आदमी शादी क्यों करता है पेट और पेट के नीचे के लिए।”
यह कह कर वे घुमने चले गए।
और मैं सकते में खड़ी रह गई कि यह कितने आराम से कह गए।
हृदय तार-तार हो गया मेरे सारे सपने एक-एक कर हर रोज टुटने लगे थे।
डबडबाई आंँखो से दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर गिर कर रोने लगी कि क्या मेरा बस इतना ही काम है इनकी नजर में..!
ये उनका रोज का काम था सुबह दफ्तर और फिर शाम को घुमने चले जाना और रात नौ साढ़े नौ को आना।
और आने के बाद….!
हर रोज अपने सपने को बिखरते देख भीतर ही भीतर टुटने लगी थी।
मायके में भी किसी से अपना दुख बांट नहीं सकती थी।
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भैया भाभीयों का घर था, ऐसे नहीं की वे मेरे दुख को नहीं बांटते पर मैं यह सब बता कर लोगों की नजरों से खुद को और पति को गिरने देना नहीं चाहती थी।
क्योंकि वे बातों में इतनें माहिर थे कि जहाँ भी जाते सबके सामने मेरी बुराई ही करते विरोध करने पर कहते मैं तो मजाक में कहता हूँ सच में थोड़ी न कहता हूँ।
लेकिन लोगों के सामने मैं ही तो खराब बन जाती।
बस इसी कारण किसी को कुछ नहीं बतती और अंदर ही अंदर घुटती जाती।
ससुराल में वैसे ही मेरे रंग के कारण मेरी ननदें जो पाँच की संख्या में थीं उनमें मेरे देवर भी ये सब मौका मिलता नहीं ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर मेरी आत्मा को चीर कर रख देते।
ननद की बेटी का विवाह था मेहमान भरे हुए थे। गर्मि की दोपहरी के समय सभी खाना खा कर वहीं हॉल में ही लेट हुए थे।
मैं और मेरी ऊपर वाली तीन नम्बर की जेठानी काम खत्म कर वही उनके पास आकर खड़े हो गए की कमर सीधी करने के लिए कोई जगह है कि नहीं?
तभी मेरी चौथी ननद मुझसे कहने लगी,
” भाभी..! आप यहाँ से जाओ मुझे आपका काला रंग देख कर और गर्मी लगने लगी है..!”
मेरी आत्मा को इतनी बड़ी चोट पहूंँची की मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकती, चुपचाप उस जगह से चली गई।
बस जाते-जाते मेरी जेठानी को यह कहते इतना सुना कि,” ऐसे कैसी बातें कह रही हो सरोज..! ऐसा कहते हैं क्या? कैसे लगेगा राधा को बोलो?”
” अरे…! मैं तो उनके काले रंग के ब्लाउज को देख कर बोली जो उन्होंने ने पहना था.., मैंने उनको थोड़ी न कहा ।” जबकि उन्होंने भी काला ब्लाऊज पहना था।
यह कह कर वह बात को घुमाने लगी।
पति भी वहीं लेटे थे ,कहने लगे,
“आप बहुऐं न..! कुछ तो समझती नहीं हो और खाली बेकार की बातें करने लगती हो।”
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समय के साथ समझौता कर लिया था।
एक पारिवारिक समारोह के दौरान ससुराल में ही जा कर पता चला कि मेरे अंदर शायद कुछ नया हो रहा है।
बस उसी को जीने का आधार मानकर मैंने जिंदगी से समझौता कर लिया।
लेकिन, हाय रे..! किस्मत , बेटा भी मेरी ही तरह पैदा हुआ। वह भी इनके रंगभेद का शिकार बनने से बच नहीं सका।
मेरे अंतर्मन में चोट और बढते गए, जब देवर और जेठानियों के बच्चों के साथ मेरे बच्चे से रंग की वजह से उसे हर बार अलग थलग व्यवहार करते थे।
धीरे-धीरे मैंने भी ठान लिया कि मुझे तो जितना कहना था कह लिया अपने बेटे को यह सुनने नहीं दुंगी और इस तरह ससुराल जाना थोड़ा कम कर दिया।
पर मेरे हृदय में लगे साँवलेपन के दाग के दुख से मेरे दोनों बच्चे अपरिचित न रह सके।
वे ही अब मेरी ढाल बन अपने पिताजी को समझाने लगे।
जो बच्चों के माध्यम से सही पर समझते तो थे।
पर पति की नजरों में राधा का स्थान कल भी वही था और आज भी वही है।
न जाने कब उनके सच्चे प्यार भरे शब्दों से राधा की अंतर्रात्मा के दाग घूमिल हो सकेगें..! उसे बस यही इंतजार है।
स्वरचित
सीमा साहु
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