संजय नर्सिंग होम के संचालक और (हैड ऑफ द डिपार्टमेन्ट ऑफ सर्जरी) डाक्टर संजय ने मैनेजमेंट टीम को सख्त हिदायत दे रखी थी कि चाहे कोई कितना भी सीरियस केस आए , कोई कितना भी अनुनय करे बिना फीस जमा कराए किसी का इलाज शुरू मत करना।
कई लोग ऐसे ही अपनी गरीबी का रोना रो कर सिम्पैथी गेन करके फ्री में प्राइवेट इलाज कराना चाहते हैं ।जीवन भर की पूंजी लगाकर मैंने यह नर्सिग होम बनवाया है कोई चैरिटेबल नहीं है । इसके अलावा टाॅप यूनिवर्सिटी से इतनी उच्च डिग्री हासिल की है और वो भी गोल्ड मैडल के साथ तो उसका भुगतान भी तो इन सबसे ही वसूलूँगा।
इतने वर्षो से लोगों की चीर फाड़, सर्जरी करते करते उनका ह्रदय अब पाषाण हो चुका था। मैनेजमेंट उन्ही के निर्देशानुसार कार्य करती ।
एक रात को अचानक दो तीन बजे कोई व्यक्ति एक बेहद जख्मी नवयुवक को नर्सिंग होम ले कर आया। वैसे तो ऐसे एक्सीडेंटल केस में पुलिस के डर से कोई पचड़े में पडता नहीं है इसलिए कई एक्सीडेंट के शिकार वहीं सडक पर ही दम तोड़ देते हैं ।
वह कोई भला आदमी शायद कोई ऑटो ड्राइवर था जो उसे घटनास्थल के करीब इसी नर्सिग होम में ले आया था । नियम के मुताबिक उन्होंने इलाज शुरू करने से पहले बीस हजार जमा कराने को कहा ।वो गरीब आदमी कहाँ से देता उसने कहा “मैं तो इसको जानता तक नहीं बस मानवता के नाते यहाँ तक लाया तो लेकिन पैसे नहीं है मेरे पास।पूरे दिन में पाँच सौ भी नहीं मिले।”
“तो इसे ले जाइए । यहाँ कोई धर्मार्थ औषधालय नहीं चल रहा।”
रिसेपशनिस्ट ने कहा-
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“ले जाऊँगा लेकिन कम से कम इसका खून बहना तो बंद हो, प्राथमिक चिकित्सा तो कर दीजिए ताकि इसकी जान बच सके”।रिसेपशनिस्ट ने कहा “यह सीरियस केस है प्राथमिक उपचार नहीं ऑप्रेशन ही होगा ।”
” कहीं और ले जाते जाते और देर न हो जाए कहीं !! कुछ तो कीजिए ” ड्राइवर ने कहा लेकिन किसी ने जख्मी को हाथ नहीं लगाया और इसी बीच नवयुवक अपनी साँसे खो बैठा।
“ये सब क्या तमाशा चल रहा है यहाँ ” एक जरूरी ऑप्रेशन के लिए एपाइंटमेन्ट था उनका इसलिए डाॅक्टर साहब समय से पहले ही आ गए आज । सब बात पता चलने पर उन्होंने भी रोबदार आवाज में बाॅडी को वहाँ से ले जाने के लिए ड्राइवर को फटकार लगाते हुए जैसे ही उस नवयुवक के करीब पहुँचे तो जैसे चेतना शून्य हो गई उनकी आँखो के आगे अँधेरा छा गया , विवान मेरा बेटा!! कहते हुए वो अचेत होकर वही गिर पड़े ।
सारे स्टाफ को माजरा समझते देर न लगी । डाॅक्टर साहब ने परसों ही बताया था कि उनका बेटा कनाडा से अपनी स्टडी कम्पलीट करके वापस आया है और इस संडे को उसके आने की खुशी में सारे स्टाफ को “वेलकम पार्टी” के लिए इन्वाइट भी किया था और तभी उन सबसे अपने बेटे का परिचय भी करवाने का मंतव्य था उनका ।
सारे स्टाफ हतप्रभ था इस आकस्मिक ह्दयविदारक घटना से ।उनकी संवेदनाएँ तो डाक्टर साहब के प्रति संवेदनशील थीं किन्तु मन ही मन वे सब यही सोच रहे थे कि दूसरों के प्रति अमानवीयता और संवेदनहीनता का फल मिला है यह। डाॅक्टर को भगवान का दूसरा रूप समझा जाता है क्योंकि भगवान के बाद एक वही है जो जीवन दे और बचा सकते हैं लेकिन उन्होंने अपने धर्म और कर्म की बजाय “अर्थ” को अधिक महत्व दिया । बचाने वाले रक्षक हाथ जब भक्षक बन जाएँ तो कुदरत कहीं न कहीं कैसे न कैसे हिसाब चुकाती ही है।
आजकल कई अस्पतालों में मरने के बाद परिवार से बिना अनुमति लिए उनके अंगो को निकाल कर उसका व्यवसाय किया जाता है और पूरा सील्ड पैक करके उनके परिवार को सौंप देते हैं और कहीं कहीं मोटी राशि वसूलने की खातिर मरने के बाद भी रोगियों को वेन्टीलेटर से हटाया नहीं जाता ।
जो भी हो कभी न कभी तो पापों की इति परिणिति होती ही है ।
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जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान यह है गीता का ज्ञान
आज डाॅक्टर साहब आत्मग्लानि अपराधबोध से गड़े जा रहे थे ।बार बार बेटे के शव के आगे माफी माँग रहे थे लेकिन अब क्या हो सकता था ? बहुत देर हो चुकी थी।😒😒
#माफी
पूनम अरोड़ा–