आती हूं… – रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi

“सोहा… सोहा… 6:30 हो गए… उठो… उठो ना…” अमित ने धीरे से सोहा की बांह हिला कर सोए सोए ही कहा….!

” क्या 6:30 हो गए… अलार्म नहीं बजी क्या…!”

” पता नहीं… मेरी भी अभी ही आंख खुली.… फोन देखा तो 6:30 हो गए थे…!”

” अरे अमित अच्छा किया आपने उठा दिया… आज तो मेरी बैंड बज जाएगी… सोहा हड़बड़ा कर उठते हुए सीधे बाथरूम की तरफ भागी.…!”

 फ्रेश होकर… सीधे नहा धोकर बाहर निकली तो 7:00 बज चुके थे… हॉल में सासू मां बैठकर चाय पी रही थीं… कल रात को हड़बड़ी में सब्जी काट कर रखना भी नहीं हो पाया था… अब आधे घंटे में कैसे सब्जी काटे… बनाए… क्या सब बनाएगी… उसे अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था… ऐसे भी कोई सोता है… इतनी आलसी और गैर जिम्मेदार भला वह कैसे हो सकती है…!

 आज कितने दिनों के बाद बुआ जी घर आने वाली थीं… मां ने कल ही बताया था कि कल दीदी आएंगी… तो कुछ अच्छे से बना देना… अब आधे घंटे में क्या बना पाऊंगी… सोहा का मन बहुत अपसेट लगने लगा… क्या करूं… आज ब्रेक ही ले लूं… लेकिन कैसे ले पाऊंगी… आज मीटिंग भी तो है…!

 मां ने तो नौकरी के पहले ही दिन कह दिया था कि “देखो सोहा… तुम्हारे नौकरी करने से मुझे कोई एतराज नहीं… लेकिन घर में तुम्हारी जो जिम्मेदारी है… उससे समझौता नहीं करना…!” 

 सोहा ने एक बार मां की तरफ देखा… मां चुपचाप खिड़की से बाहर निहारते… चाय का कप हाथ में लिए… अभी भी बैठी थी… शोभा को लगा…” लगता है मां आज पूरे गुस्से में है… आज तो पक्का मेरी क्लास लगेगी ही…!”

 जल्दी से सबसे जल्दी बनने वाली सब्जी भिंडी निकालकर सोहा ने फ्राय किया… रोटियां सेकी.… अमित का लंच पैक कर… दाल चढ़ा दिया पकने को… मां को नाश्ता सूखा नहीं पसंद था… रोटियां बनते बनते दाल बन गई… अपना लंच पैक करके करते घड़ी में बस 5 मिनट ही बचे थे… देख कर सोहा जल्दी से तैयार होकर… दो अंगूर के दाने मुंह में डालते मां के पास गई…” सॉरी मां… पता नहीं कैसे आंख नहीं खुली… मैं जल्दी आने की कोशिश करूंगी… आप नाश्ता कर लीजिएगा…!”

 शारदा जी जो अब तक चुपचाप बैठी थीं… उन्होंने बहू की तरफ उसी खामोशी से देखा… शायद उनकी आंखें नम थी… सोहा चुपचाप निकल गई लेकिन उसका मन साल गया… “क्या हुआ… मां की आंखों में शायद आंसू थे… पर ऐसा क्या हो गया… क्या मेरे लेट उठने की वजह से… या फिर मैं घर में नहीं रुकी… या फिर और कोई बात थी…!” 

वह पूरे रास्ते बस इसी तरह मंथन करते अपने कार्यक्षेत्र पर पहुंच गई… दिन भर उसका मन बेचैन लग रहा था… “आखिर बात क्या हुई… मां ने ऐसे क्यों देखा…!”

 इतनी जल्दी वापस जाना मुश्किल था… तो उसने सोचा.… एक बार फोन करके ही मां से पूछती हूं… बुआ जी आईं या नहीं… फोन लगाया तो दो-चार घंटियों के बाद ही मां ने फोन उठा लिया…” हां सोहा क्या हुआ बेटा… कब आ रही हो…!” मां की आवाज बिल्कुल नॉर्मल थी… सुनकर सोहा को अच्छा लगा… “नहीं मां अभी कहां थोड़ी देर हो जाएगी… बुआ जी आईं क्या… ओह दीदी… कहां आएंगी… आज नहीं आएंगी… तुम आराम से आओ ना… मैं खाना बना रही हूं… चिंता मत करना… आराम से आओ… ठीक है…!

  “ठीक है मां…!” फोन कट हो गया…

 सोहा का मन इस बात से तो शांत हो गया की मां ठीक है… लेकिन बुआ जी क्यों नहीं आ रही यह बात उसे नहीं समझ आया… क्या हुआ पहले तो आने वाली थीं… इसी उधेड़बुन में अपना काम खत्म कर वापस बस में बैठी तो चार बज चुके थे… बस में बैठे-बैठे बूआ जी के बारे में सोच ही रही थी की तभी उनका ही फोन आ गया….!

 “बूआ जी प्रणाम..!”

 ” हां बेटा सोहा खूब खुश रहो… कैसी हो…?”

” मैं ठीक हूं बुआ जी.… पर आप आई क्यों नहीं… आप तो आज आने वाली थीं ना…!”

” नहीं तो ऐसी तो कोई बात नहीं हुई…ऐसे ही सोचा थोड़ा बात कर लूं…!”

“लेकिन कल तो मां ने कहा था कि आप आएंगी आज…!”

 “अरे नहीं बेटा… अब क्या आना…!” बूआ जी की आवाज भी बैठ गई… !”

“क्या हुआ बुआ जी… मुझसे कोई गलती हो गई क्या…!”

“अरे नहीं… नहीं बेटा… तुम ऐसा क्यों सोच रही हो… ऐसा कुछ नहीं है… दरअसल आज मेरे प्यारे भैया और भाभी की शादी की सालगिरह है… पिछले साल जब हम मिले थे तो कितने खुश थे सब… भैया ने कितने अंदाज में कहा था कि… अगले साल हम सालगिरह सेलिब्रेट करेंगे… ग्रैंड पार्टी करेंगे… कितने सपने देखे थे इस दिन के लिए दोनों ने… पर अगले ही महीने दिल के दौरे ने उनकी जान ले ली… तुम्हें आए तो अभी कुछ ही महीने हुए हैं.… इसलिए तुम यह सब नहीं जानती… हम भाई-बहन में बहुत प्यार था… जब कभी भैया की सालगिरह होती… जन्मदिन होता… या फिर बच्चों का जन्मदिन.…कोई भी मौका… हम हमेशा साथ में सेलिब्रेट करते थे… मेरे घर के भी सारे फंक्शन… तुम्हारे घर के भी… पर अब तो जब भैया ही नहीं रहे… तो सालगिरह कैसी और फंक्शन कैसा…!” बूआ जी एक ही साथ सब बोलकर चुप हो गईं…!

 सोहा बड़े असमंजस में पड़ गई… उसे अब सब समझ में आ गया… क्यों सुबह मां चुपचाप इतनी देर तक बैठी थी… क्यों मां की आंखों में आंसू थे… और क्यों कल मां ने कहा था कि कल बुआ जी आएंगी…!

 सोहा ने मन ही मन एक निर्णय लिया और बूआ जी से बोली…” बूआ जी क्या आप आज हमारे घर आ पाएंगी…!”

” पर बेटा…”

 “कोई पर वर नहीं बूआ जी… मैं घर पहुंचने वाली हूं… मेरे घर पहुंचने के बाद आप भी आ जाइए… आज पापा जी तो नहीं रहे… पर जिस मां के साथ पापा जी अपनी जिंदगी के इतने खूबसूरत साल… संपन्न करने की खुशी मनाना चाह रहे थे… उस मां को आज मैं उदास नहीं होने देना चाहती… प्लीज बुआ जी… और हो सके तो सबको लेकर आइएगा…!”

” ठीक है बेटा… जैसा तुम कहो… हम आते हैं…!”

 बूआ जी के तीनों बच्चे दो लड़कियां और एक लड़के की अभी तक शादी नहीं हुई थी… अमित और बुआ जी के बच्चों ने साथ में बहुत सारे खूबसूरत पल बिताए थे… यह सब अमित ने उसे बताया था… वह ये भी जानती थी कि मां भी उन बच्चों से बहुत लाड़ करती हैं… मां को अपनी एक ही संतान थी… इसलिए और भी उन्हें उन सब से बहुत प्यार था… पापा जी के जिंदा रहते तो हफ्ते 10 दिन में एक बार मिलना जुलना हो ही जाता था… लेकिन जब से पापा जी गए थे… सब एक दूसरे से कट से गए थे…!

 सोहा की शादी पापा जी ने खुद ही तय की थी… पर बीच में यह हादसा हो गया था… उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए… शारदा जी और अमित नियत समय पर… शोभा को दुल्हन बनाकर अपने घर ले आए थे… शारदा जी ने नई बहू के स्वागत में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी… हमेशा से बेटी का प्यार चाहने वाली मां को… शोभा ने भी खुशियों से भर दिया था… पर आज उनकी आंखों के आंसू देखकर सोहा पूरे मन से उन्हें खुशी में बदलने को तत्पर हो गई थी…!

 सोहा ने घर आकर देखा की मां की आंखें सूजी लग रही हैं… लेकिन चेहरे पर हंसी लिए… मां ने आज बहुत सारा खाना बनाया था… सब पापा की पसंद का…!

 सोहा ने अमित को फोन किया और बुआ जी के ना आने से लेकर आने तक की सारी बातें बताई …और साथ ही उसने अमित से एक मां पिताजी की साथ वाली बड़ी खूबसूरत फोटो फ्रेम बनाकर लाने को भी कहा… 7:00 बजे तक अमित सारी तैयारी के साथ घर आ गया… थोड़ी देर में बुआ जी भी बच्चों फूफा जी सबके साथ घर आ गईं… मां ने सबको घर में देखा तो मां का चेहरा खुशी से खिल गया… सुबह से उदास मां अचानक चहक उठी…!”

 “अरे वाह सुधा दी आप कैसे आ गईं… मेरे प्यारे बच्चों… जीजा जी… वाह यह सब कैसे हुआ…!”

 तभी हाॅल में अमित ने अपनी लाई हुई खूबसूरत तस्वीर सामने लाकर लगा दी… सोहा केक ले आई… बाकी तीनों बच्चे भी भाभी के साथ मिलकर तैयारी करने लगे… थोड़ी ही देर में घर बिल्कुल पार्टी के लिए तैयार हो गया…!

 मां यह सब देख रही थी… मना भी कर रही थी… इस सब की क्या जरूरत है… मां की आंखें अचानक भड़भड़ा गईं… सोहा ने आकर मां को थाम लिया… “मां ऐसा मत करिए… पापा जी चाहते थे ना इस दिन को सेलिब्रेट करना… वह आपकी आंखों में आज आंसू देखते तो उन्हें कितना बुरा लगता… मां पापा हों या ना हों… लेकिन उनका परिवार हम सब तो हैं ना…!”

 बूआ जी ने आगे बढ़कर भाभी का हाथ पकड़ लिया… और कहा…” भाभी मैंने भी गलती कर दी… मुझे लगा भैया नहीं हैं तो कहां जाऊं… पर आप तो हैं ना… आपका प्यार मैं कैसे भूल सकती हूं… और आज का ही तो वह दिन है जिस दिन आप मेरी जिंदगी में आईं… इसलिए यह दिन हमेशा हमारे लिए खास रहेगा…!”

 मां ने हाथ बढ़ाकर बहू और ननद दोनों को गले से लगा लिया… अमित भी आगे आकर मां से चिपक गया… और फिर उसके पीछे सभी बच्चे… शारदा जी ने सबको हटाते हुए कहा…” अरे बाप रे… इतना भारी प्यार… यह तुम लोग सेलिब्रेट करने आए हो… या मेरी जान निकालने…!”

 सभी समवेत स्वर में हंसने लगे… पूरी खुशी और जोश के साथ सब ने मिलकर केक काटा…काफी रात तक खाना पीना… जश्न मनाना होता रहा…!

 रात को शारदा जी के आग्रह पर… सभी वहीं रुक गए… रात भर हंसी खुशी पुरानी बातें होती रहीं …सोहा ने भाई बहनों के कितने ही मजेदार किस्से सुने… सबने बहुत मजे किए…!

 सुबह सभी को अपने-अपने काम पर जाना था… पहले बूआ जी सभी के साथ सुबह चाय पीकर निकल गईं… फिर अमित के जाने के बाद सोहा भी जाने की तैयारी कर रही थी… कि पीछे से मां ने आकर प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और कहा “थैंक्यू बेटा… इसी तरह हमेशा सबको जोड़कर एक साथ रखना…!”

” थैंक यू किस लिए मां… कितना मजा आया… और सबसे ज्यादा तो मैंने ही इंजॉय किया… जाती हूं…!” बोलकर वह मां के गले लग गई…

 मां ने उसके गालों पर हल्के से चपत लगाते हुए कहा…” जाती हूं नहीं… जाकर आती हूं… या आती हूं बोलो… समझी…!”

” जी मां…आती हूं…!” दोनों हंस दिए…!

स्वलिखित मौलिक अप्रकाशित

रश्मि झा मिश्रा

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