आठ-आठ आंसू ‌रोना – संगीता श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

मां हमेशा कहती थी,”देख नीरू,जब शादी होगी, ससुराल तो जाना ही है। कुछ तो सीख ले बेटा! ससुराल में हंसी का पात्र न बनना पड़े, मुझे ताना ना मिले, इस बात का तो ख्याल कर! जग हंसाई मत कराना।” पर सुनता कौन था मां का!एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल देती थी।

“नहीं मां , मुझे नहीं सीखना ये सब! अरे ऑर्डर कर मंगा लूंगी ना जोमैटो से! काहे को चिंता करती है तू !फिकर मत कर ,भूखे नहीं मरेगी तेरी बेटी!”नीरू अपने तर्क के आगे मां को चुप करा देती थी।

समय को चलने से कौन रोक सकता है भला !समय आया, नीरू की शादी भी मनचाहे लड़के से हो गई। नीरू ने लड़के से कभी कह भी दिया था,”देखो भई, मुझे खाना -वाना बनाने नहीं आता। इसके लिए मुझे परेशान मत करना।”उस समय बात आई गई खत्म हो गई।

ससुराल जाने के दूसरे दिन सारा घर रिश्तेदारों से भरा -पड़ा था। ननद ने उसे सलीके से साड़ी पहनाया और तैयार किया।तभी सासू मां आई और कहीं,”बहू मेरे यहां रश्म है, पहली बार बहू रसोई में कुछ मीठा बनाती है।तुम जो कुछ भी अच्छा बनाती हो, बना लेना।” सुन, उस जाड़े के महीने में भी वह पसीना- पसीना होने लगी। ननद ने पूछा,”क्या हुआ भाभी, आपकी तबीयत ठीक नहीं क्या?”

“हां दीदी, कुछ उलझन सी हो रही है।”उसने कहा।

“ठीक है आप अभी आराम कीजिए। यह रश्म शाम को कर दीजियेगा।”कह वह चली गई।

   वह कमरे में एक तरह बैठी सुबुक-सुबुक कर रोये जा रही थी। मां की हर बातें उसे याद आ रही थी कि कैसे वह उनकी हर बातों का जवाब दे उन्हें निरुत्तर कर देती थी।”काश! मां की थोड़ी भी बातें मान ली होती तो आज यह नौबत ना आती और मुझे आठ-आठ आंसू नहीं रोना पड़ता। अब मुझे पता चला ससुराल क्या होता है।”हालांकि ससुराल वाले बहुत ही सुलझे थे। कुछ देर बाद अपने

मन को शांत कर उसने मां को फोन मिलाया। वह कुछ बोलती उसके पहले ही मां बोल पड़ी,”हां नीरू! बोल बेटा कैसी है तू?”मां का इतना कहना था कि वह अपनी  गलती के लिए फूट फूट कर आठ-आठ  आंसू रोने लगी।मां घबरा गई।”क्या हुआ तू रो क्यों रही मेरी बच्ची!”

“मां तुम्हारी बात न मानने का आज बहुत बड़ा दंड भुगतना पड़ रहा है।” उसने कहा।

“बता तो सही हुआ क्या?” मां ने पूछा।

“मां, यहां रश्म है पहली बार बहू को कुछ मीठा ‌बनाना होता है। यह सुन मैं पसीना-पसीना होने लगी ।वो तो शुक्र है कि ननद ने मुझे अपमान के गर्त में गिरने से बचा लिया । नहीं तो,मैं सबके सामने कितनी अपमानित होती।” ‌ “ठीक है , पहले तो अपने आप को संभालो और जो मैं बता रही हूं उसे ध्यान से सुन ……।

”  मां ने उसे जल्दी से मीठे व्यंजन का आसान तरीका बता दिया और कहा,”आगे कैसे क्या होगा इसके लिए मैं सोच रही हूं, तब -तक आज का रश्म पूरा कर! वैसे तुम खुशनसीब हो जो तुम्हें ऐसा ससुराल मिला।”

जैसा मां ने बताया, उसने पूरी इमानदारी से अपने दिमाग में बैठा लिया और शाम में उस रश्म को पूरा किया। सभी उसकी तारीफ किए बिना नहीं रहे।

संगीता श्रीवास्तव

लखनऊ

स्वरचित, अप्रकाशित। 

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