पूनम जल्दी-जल्दी अपने हाथ चला रही है।आज सुबह उसे उठने में देरी हो गई। घर की सफाई के बाद उसे रसोई में सास-ससुर,जेठ-जेठानी और उनके बच्चों के लिए खाना भी बनाना है,फिर नौकरी के लिए बैंक भी जाना है। बैंक से आकर रात में सभी के लिए खाना बनाना।पूनम की रोज की यही दिनचर्या है।
वैसे तो पूनम आधुनिक आत्मनिर्भर नारी है,परन्तु सास-ससुर दिनभर उसकी बेटी की देखभाल करते हैं,इस कारण वह किसी प्रकार घर में सामंजस्य बिठाने की कोशिश करती है।
घर में सास का कड़ा अनुशासन है।ससुर भी अपनी पत्नी की हाँ में हाँ मिलाती रहते हैं।सुबह- रात का खाना बनाने की जिम्मेदारी सास ने उसके कंधों पर डाल रखी है।उसकी जेठानी को दिनभर के कामों की जिम्मेदारी दे दी है।घर और बाहर की जिम्मेदारी संभालते हुए पूनम काफी थक जाती है।
एक दिन पूनम ने अपने पति से कहा -” सरस!मैं बैंक की नौकरी में काफी थक जाती हूँ।घर लौटने के बाद मुझमें इतने लोगों का खाना बनाने की ताकत नहीं रहती है।माँजी(सासू माँ)से कहो कि दिनभर के लिए एक मेड रख लें,पैसे मैं दे दूँगी।”
सरस पूनम की मजबूरियों को समझता था,परन्तु अपनी माँ से डरता भी था।फिर भी उसने पूनम को अपनी बाँहों में समेटते हुए कहा -“ठीक है! अभी तुम आराम से सो जाओ,कल मैं माँ से बात करूँगा।”
अगले दिन सुबह उठकर पूनम ने जल्दी-जल्दी घर की सफाई की,फिर रसोई में खाना बनाने चली गई। उसी समय उसके ससुर ने उसपर चिल्लाते हुए कहा -” बहू!तुमने ये कैसी सफाई की है,टेलीविजन के पास धूल पड़ी हुई है? कल से सफाई करते समय मैं तुम्हारी वीडियोग्राफी करुँगा।”
पूनम के मन में जज्ब आक्रोश आखिर उबल ही पड़ा।उसने तैश में कहा -” पापा!मैं कोई इस घर की मेड हूँ,जो आप मेरी सफाई की वीडियोग्राफी करोगे?”
इतना सुनते ही पूनम की सास ने उसपर चिल्लाते हुए कहा -“बहू !तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई अपने ससुर से मुँह लगाने की!”
उसी समय सरस ने बात सँभालते
हुए पूनम को बैंक जाने के लिए तैयार होने को कह दिया।
सरस ने अपनी माँ से कहा -” माँ!नौकरी के साथ पूनम इतने सारे काम नहीं कर पाती है।क्यों न हम दिनभर के लिए एक मेड रख लें?”
बेटे की बात सुनकर उसकी माँ ने चिल्लाते हुए कहा -“सरस!तुम ज्यादा बीबी की तरफदारी मत करो।हमारे घर में रहती है,तो उसे हमारी मर्जी के अनुसार चलना होगा।”
सरस भी चुपचाप अपने दफ्तर चला गया।
दिनभर उसके सास-ससुर बहू पूनम के खिलाफ षड़यंत्र रचते रहें।बैंक से लौटने पर उसकी सास ने कहा -” बहू! तुम अपने एटीएम कार्ड हमें दे दो।”
पूनम ने कहा -“माँ जी!कुछ पैसे अपने पास रखकर तो सारी सैलरी आपको ही दे देती हूँ।मेरी भी कुछ व्यक्तिगत जरूरतें हैं।मैं अपना एटीएम कार्ड नहीं दूँगी।”
पूनम की सास ने तल्ख आवाज में कहा -“मेरे दोनों बेटे मुझसे केवल दो हजार पाकेट मनी लेकर सारी सैलरी मुझे दे देते हैं।तुम्हें भी बस दो हजार ही मिलेंगे।अपना एटीएम कार्ड हमें दे दो।”
पूनम मासूम और कमजोर लड़की नहीं थी,जो सास-ससुर की ज्यादतियों को चुपचाप सहन कर जाएँ।उसने दृढ़संकल्प के साथ कहा -” मैं अपना एटीएम कार्ड किसी हालत में आपको नहीं दे सकती हूँ।”
पूनम की बातों से उसकी सास का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था।सरस ने पूनम का पक्ष लेते हुए माँ को शांत करने की कोशिश की,परन्तु उसकी माँ ने बेटे की शर्ट की काॅलर पकड़कर कहा-” तुमदोनों अभी मेरे घर से निकल जाओ।तुम नामर्द हो।बीबी से डरते हो। ढ़केलते हुए अभी मेरे घर से निकलो।”
पूनम के ससुर अपनी पत्नी के समर्थन में मूकदर्शक बने रहें।
रात के दस बजे पूनम ने पैकर्स को फोन कर बुलाया और अपनी बड़ी बहन से बात की।उसी समय कुछ सामान लेकर पति और बेटी के साथ बहन की सोसायटी में चली गई। संयोग से एक खाली फ्लैट भी मिल गया।अब पूनम सुकून के साथ पति और बेटी के साथ रहने लगी।स्कूल से आकर उसकी बेटी मौसी के पास रहती है।
कुछ दिनों के बाद उसके सास-ससुर की तबीयत खराब रहने लगी। उसकी सास के दोनों घुटने का ऑपरेशन हुआ। पूनम पति-पत्नी उन्हें अस्पताल से देखकर ही लौट आएँ।पूनम की जेठानी भी अब सास-ससुर की सेवा नहीं करती है।हाल में ही उसके ससुर को लकवा मार गया।पूनम उन्हें देखने गई थी।
सास-ससुर बेटे-बहू के साथ किए हुए अपने दुर्व्यवहार के कारण आठ-आठ आँसू रोते रहतें हैं,परन्तु शर्मिन्दगी के कारण उन्हें फिर से वापस लौटने के लिए कह नहीं पाते हैं।बस दिल-ही-दिल में आठ-आठ आँसू रोते रहते हैं।
हमारे समाज की यह विडंबना है कि हम बहू तो नौकरीपेशा वाली चाहते हैं,परन्तु उसकी मजबूरियों की ओर से आँखें बन्द कर लेते हैं।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)