आटे के साथ घुन पीस गया… – डॉ. विभा कुमरिया शर्मा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :

प्रिय संजीवनी,

स्नेहिल आशीर्वाद।

बहुत मुश्किल से तुम्हारा नंबर मिला तुमसे बात करने के लिए फोन मिलती हूं लेकिन तुम फोन नहीं उठाती हम दोनों के बीच में कभी परिचय ही नहीं हुआ,  पर मैं तुम्हारे लिए अपरिचित नहीं हूं  मैं यह जानती हूं क्योंकि जिससे मैंने नंबर लिया है वह हम दोनों का संपर्क सूत्र है

तुमसे बात करने की इच्छा बार-बार  तुम्हारी उपेक्षा के बाद भी हार नहीं मानता  मैं बार-बार फोन लगाती हूं बस तुम्हारी तरफ से अभी कोई संपर्क नहीं हो पा रहा  कोई बात नहीं और कोशिश करूंगी मैं  तुम्हारी मनोस्थिति का अनुमान लगा  सकती हूं  

तुम्हारी मम्मी का नंबर मेरे पास था क्योंकि उनके साथ मेरी बात गुड्डू ने करवाई थी  हम दोनों में बातचीत हुई दुख सुख की बातें , अपनेपन की बातें और बातों ही बातों में  उनके अफसोस जनक एहसास भी मु तक  पहुंचे थे  मैं क्या कर सकती हूं  मैंने उस समय भी अपनी स्थिति के बारे में सोचा था घर में बड़े लोगों के बीच छोटे बच्चों को किसी भी बात में किंतु — परंतु कने का अधिकार नहीं था  तुम्हारी मम्मी हम बच्चों के साथ बच्चा बन जाती थी

भोले -भाले स्वभाव की औरत थी हम बच्चों के साथ प्यार से बात करती थी उस दिन उन्होंने बातों ही बातों में मुझसे शिकायत की थी कि तुम्हारे भैया के जाने के बाद मुझे तो जैसे सब ने छोड़ ही  दिया   मैंने कैसे-कैसे वक्त निकाला किसी ने खबर तक नहीं ली  तुम्हारे भैया  का आकस्मिक दुर्घटनाग्रस्त होना मेरी किस्मत और जीवन क दुखद  दुर्घटना बन गई दो बच्चों की जिम्मेदारी उसमें भी एक दिव्यांग,  मानसिक दृष्टि से कमजोर बच्चा,  तुम्हें नहीं पता मैंने कितनी मुसीबतें उठाकर दोनों बच्चों को संभाला है मैं उनकी बातें सुन रही थी सोच रही थी कि उन्होंने कितने कष्ट उठा एक शादी के नाम पर

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मैं……. मैं उन्हें क्या दिलासा देती ? मैं उनकी दुख भरी जिंदगी , बिरहा पूर्ण जीवन,  अभावग्रस्त और तनाव पूर्ण मनोस्थिति  आदि  सब कुछ महसूस कर सकती थी सांत्वना प्रकट के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं था   हमारे  दिल की बातें एक जैसी थीं।  भावनाएं एक जैसी थी, पर मैं उन्हें सुन रही थी वापस क्या बोलना चाहिए शब्द नहीं थे हम दोनों में रिश्ते की दीवार थी जहां बड़े लोगों को सुनते हैं उनके सामने बोलते नहीं । 

 मैं उन्हें सांत्वना देना चाहती थी पर वह भी बहुत भरी हुई थी कि बिना मेरे हां या ना कहे वह अपनी बात लगातार बताती जा रही थी उन्हें बहुत शिकायत थी रिश्ते और रिश्तेदारों पर बहुत शिकायत थी समाज और समाज बनाने वालों पर उन्हें बहुत शिकायत थी खानदान और कुटुंब के बड़े बुजुर्गों पर

मुझे सब ठीक लग रहा था अक्षर अक्षर ठीक लग रहा था उनके अफसोस के एक-एक सांस में मुझे लग रहा था मेरी सांसे भी भीग रही हैं शायद हम दोनों की अनुभूति एक जैसी हो गई थी मैं सोच रही थी कि उन्होंने जीवन में पाया ही क्या ? 

मेरा मन उनके प्रति दयाद्र हो रहा था हम दोनों फोन पर बात कर रही थी  लेकिन मुझे लग रहा था कि उनके खूबसूरत चेहरे पर कभी न सूखने वाले आंसुओं  अविरल धारा बहती जा रही है फिर उन्होंने मुझे दिल्ली आने का बुलावा दिया और फोन काट दिया  वक्त बीतता  चला गया जितनी बार मायके जाना हुआ भाभी के विषय में जब भी बात की जब भी यह पूछा कि उनके प्रति इतनी उपेक्षा क्यों किसी ने कभी भी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया

बड़े लोग हैं ना , बड़े लोग बड़ी बातें करते हैं छोटे लोगों को मुंह नहीं लगते हम हम 60 साल के होकर भी अभी तक बच्चे ही हैं हमारा मुंह खोलन हर हाल में अपराध होगा यह कड़वाहट मैंने कई बार महसूस की , लेकिन उम्र का छोटापन उम्र के बड़े लोगों का मुकाबला नहीं कर पाया

शायद कुटुंब के सर्वेसर्वा ने सारे कंट्रोल,  अपने निर्देश अपने हिसाब से सैट किए होंगे । कौन क्या करता है , क्या नहीं करता  ? मैं  पूछने वाली कौन हूं ? मैंने स्वयं से प्रश्न किया और इस विषय पर सोचना छोड़ दिया पर इंसान होने के नाते मैं  जब कभी सारी स्थिति पर सोचती हूं तो अनायास बड़बड़ा उठती हूं  , चिल्लाती हूं  और पूछती हूं कि किसी का पति मर जाए , उसकी दुनिया उजड़ जाए , रिश्तेदार संबंध तोड़ ले , तो क्या वह वह रिश्तेदार कहला सकते  हैं  ? उन्हें रिश्तेदार कहलाने  का क्या अधिकार  है ही नहीं उन्हें पड़ोस या भीड़ हो जाना चाहिए रिश्तेदार नहीं 

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तुम्हें मैं बता देना चाहती हूं कि मैं स नंबर पर एक दो बार उनके साथ बात की थी फिर उनके नंबर से संपर्क स्थापित नहीं हो सका मालूम नहीं वह फोन उठा नहीं पाती थी या उनका नंबर बदल गया था य  कोई और मजबूरी थी वक्त तो अपने हिसाब से चलता ही रहता है हम भी अपने काम धाम में व्यस्त हो जाते हैं फिर जब कभी याद आती है फिर चर्चा होती है और इस चर्चा में पता चला कि वह बहुत बीमार रहने लगी हैं, 

अब उन्हें आंखों से कम दिखाई देता है और चलना-  फिरना भी ना के बराबर हो गया है मुझे लगा सूरज आस्तामी होने वाला है तब बहुत छटपटाहट हुई  थी पर क्या फायदा कोई किसी के लिए कुछ नहीं कर सकता  समय-समय पर जब भी उनके बारे में बात की निराशा ही हाथ लगी  दुख हुआ कि तथाकथित रिश्तेदार कैसे संज्ञा शून्य हो जाते हैं

पारिवारिक मामले , मनमुटाव , जो कुछ स्थितियां-परिस्थितियां  होती हैं उस  आग में वह सारे के सारे  परिवार वाले  क्यों कूद जाते हैं ?  जिनका किसी भी प्रकार का लाभ हानि नहीं है,  जिनका कोई लेना देना नहीं होता वह भी ताकतवर का साथ देते हैं मैं  अच्छी तरह समझ सकती हूं – समरथ  को नहीं दोष गुसाईं  

मैं आज तक भाभी की मृत्यु के दंश को भुला नहीं पाई  यह मैं तुम पर एहसान नहीं कर रही हूं असलियत में जो आक्रोश तुम्हारे मन में है मेरे भी मन में है जिन्होंने यह गुनाह किया है उन गुनहगारों के खानदान से मेरा भी संबंध है , जैसे रावण के खानदान का हर प्राणी चाहे अच्छा था या बुरा लेकिन बुरी नियत बुरी हरकतों के कारण राक्षस ही  कहलाया शायद मैं भी इस राक्षसों के कुल के सदस्यों में विभीषण हूं

तुम्हें बताना चाहती हूं कि अब इन लोगों में मेरे मुंह खोलने से विद्रोह पैदा होने लगा है यह बड़ी-बड़ी आंखें निकाल कर मुझे डराने  की कोशिश करते हैं हाथ – पांव मारते हैं , मेरी बला से अब मैं चिकना घड़ा हो चुकी हूं ना मैं इनकी गुलाम हूं और ना ही इनका दिया खाती हूं मैं अपने मन की मालकिन हूं जो चाहूंगी वही करूंगी जिस संबंध बनाना चाहूंगी बनाऊंगी या तोड़ना चाहूंगी तोडूंगी यह सब मेरी इच्छा पर निर्भर करता है

तुम्हारा यह कहना बहुत स्वाभाविक है  और तुम कह सकती हो कि  आप पहले भी तो फोन कर सकती थी  हां कर सकती थी  पर,  सच यह है कि उसे समय हिम्मत नहीं थी आज मेरी स्थिति बदल चुकी है  मैंने  दुनिया के असली रंग देख लिए हैं मैंने भी उस दुख को वास्तव में भोग है जो तुम्हारी मम्मी ने भोग था

मैंने उस  हालत में  अपने लिए यही महसूस किया है  कि किसी की जिंदगी में क्या हो रहा है उससे  कथित रिश्तेदारों को कोई मतलब नहीं होता घायल की गति घायल ही जानता  है । आज जब मैं अकेलेपन को झेल रही हूं तो तुम सबका भोगाुआ सच , अकेलापन , पेक्षा , तथाकथित  रिश्तेदारों की नजरअंदाजी , नकारना आदि सबकुछ समझ में आ चुका है इसलिए बेधड़क होकर  मैं सब कुछ कह सकती हूं। दुनिया को भी चीखचीख कर  सुना सकती हूं। 

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तुम्हारे फोन पर बिजी होने की रिंगटोन है या फोन सच में बिजी होता है ?  मैं नहीं जानती हमें जिस उम्र में  मोबाइल नाम का साधन मिलहैं उ के विषय में सब कुछ जानना हमारे लिए मुश्किल है लेकिन सारी बातें भूल कर मैं  तुम्हारे फोन ना उठाने के पीछे जो घृणा और नफरत है उसे अच्छी तरह समझतूं ।‌वह स्वाभाविक भी है

जिसे मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं मुझे लगता है मैं तुम्हारी आंखों से उन सब की तरह गिर चुकी हूं जिन्हें तुम रिश्तेदारों के रूप में याद करती रही हो जबकि सच यह है कि हम दोनों एक दूसरे से अजनबी हैं   हम अपने रिश्तेदारों की तंगदिली के कारण कभी भी एक दूसरे से मिले  ही नहीं रिश्तेदारियों के रिश्तों का यह भी एक कड़वा यथार्थ है

मुझे निराशा है कि  तुम मुझे जाने बिना मेरे लिए एक दुराग्रह पाल चुकी हो , फिर भी मैं कोशिश करूंगी तुमसे बात करने की  जब तक ऐसा  संभव नहीं होता तब तक लगता रहेगा  कि आटे के साथ घुन भी पिस गया   मेरा मन कहता है कि मैं भी सबकी तरह  तुम्हारी आंखों से गिर चुकी हूं

 तुम्हारी बहन………….

डॉ. विभा कुमरिया शर्मा।

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