पूरे नौ महीने के इंतज़ार के बाद दिव्या ने एक प्यारी सी बच्ची सिया को जन्म दिया। दिव्या और उसके पति नीलेश बहुत खुश थे पर एक वर्ष की होने के बाद भी बच्ची के क्रियाकलाप अपनी उम्र के बच्चों जैसे नहीं थे। वो अपना नाम सुनकर अभी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं करती थी। अपनी ही दुनिया में कहीं गुम सी रहती थी। उसका इस तरह का व्यवहार देखकर वो तुरंत डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर ने अपने परीक्षण के आधार पर सिया को ऑटिज्म से ग्रस्त बताया। डॉक्टर ने ये भी कहा ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चों का मानसिक विकास बहुत धीमी गति से होता है। ये सामान्य बच्चों की श्रेणी में नहीं आते। डॉक्टर की बात सुनकर दिव्या और नीलेश की तो दुनिया ही हिल गई। अपने बच्चे के लिए इस तरह की बात सुनना किसी भी माता-पिता के लिए बहुत कष्टदाई होता है। उन्होंने उस डॉक्टर की बात की पुष्टि के लिए दो-तीन डॉक्टर्स से और सलाह ली पर सबने यही कहा। वे लोग बहुत निराश थे। अब सिया की इस बीमारी की खबर नाते रिश्तेदारी में भी फैल गई थी। कई रिश्तेदारों ने झूठी सहानभूति दिखाते हुए दिव्या को ये तक बोला कि अब जो होना था वो तो हो गया। अब जल्दी ही दूसरे बच्चे की तैयारी करो। इससे तो वैसे भी कोई उम्मीद नहीं है, ये तो तुम्हें वैसे भी ज़िंदगी भर खून के आंसू रुलाएगी।
लोगों की ऐसी बातें दिव्या और नीलेश का दिल चीर देती पर दोनों ने एक-दूसरे का साथ देते हुए सिया का हर कदम पर साथ देने की सोची।दोनों ने इस बीमारी के बारें में सारी जानकारी प्राप्त की। काउंसलिंग केंद्र भी पता किए। जिससे समझ आया कि अगर मेहनत की जाए तो सिया भी सामान्य जीवन व्यतीत कर सकती है। नीलेश तो काम पर चला जाता था पर दिव्या पूरा समय अपनी नन्हीं सी सिया को देती थी। वो पूरा दिन उससे कुछ ना कुछ बोलती रहती, उसे कई सारे क्रियाकलाप में लगाए रखती।एक दिन ऐसे ही दिव्या ने उसके सामने तरह तरह के रंग वाली पेंसिल फैला दी। कुछ कागज़ भी रख दिए। थोड़ी देर बाद दिव्या ने देखा कि सिया ने कागज़ के ऊपर अलग-अलग रंग की कुछ लाइंस खींच दी हैं। बस अब दिव्या को मंजिल की पहली सीढ़ी मिल गई थी। दिव्या खुद भी बहुत अच्छी चित्रकारी करती थी। अब दिव्या ने उन नन्हें हाथों में तरह तरह के रंग थमा दिए।आज सिया पंद्रह साल की है और इसकी पेंटिंग को राज्य की सबसे सुंदर चित्रकारी पुरुस्कार मिला है। आज नीलेश और दिव्या के साथ सिया की फोटो सभी समाचार पत्रों के मुख्य पृष्ठ की शोभा बढ़ा रही है।कल तक जो रिश्तेदार खून के आंसू वाली बात बोलते थे वो ही दबी जबां में सिया की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे। दिव्या, नीलेश और सिया के संघर्ष ने आज कवि दुष्यंत की इन पंक्तियों “कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो” को सच साबित कर दिया था।
स्वरचित और मौलिक
डॉ. पारुल अग्रवाल,
नोएडा