जानती हो गुड़िया की माँ,हमारी गुड़िया सचमुच में लक्ष्मी है,इसका घर मे आना हुआ उधर मालिक ने बहुत कम कीमत पर वो छोटा सा प्लाट दे दिया।अब हम धीरे धीरे अपना घर बना लेंगे।हमारी गुड़िया बहुत भागवान है,री।
अरे ये तो बहुत ही अच्छा हो गया।अब हमारा भी घर हो जायेगा।कब से अपने घर का सपना संजो कर रखा था।
मोहन सेठ फ़क़ीर चंद के यहां मुनिमगिरी का कार्य करता था।मोहन ने एक कमरे रसोई का मकान किराये पर लिया हुआ था,जिसमे वह अपनी पत्नी मालती के साथ रहता था।औलाद कोई थी नही,दोनो अकेले ही थे।दोनो पति पत्नी के दो सपने थे,एक तो कोई संतान प्राप्त हो जाये,दूसरा अपना भी कोई छोटा सा घर हो।जब मोहन और मालती एक साथ बैठते तो उनकी बात का विषय यही होता।
शादी के आठ वर्षों बाद भगवान ने उनकी सुन ली,मालती के पावँ भारी हो गये थे।दोनो ने उस दिन मंदिर जाकर भगवान का आभार भी जताया और सकुशल बच्चे के आगमन का आशीर्वाद भी मांगा।
गर्भावस्था के समय पूर्ण होने पर मोहन मालती को गुड़िया की प्राप्ति हो गयी।गुड़िया के आने के एक सप्ताह बाद ही मोहन को मालिक ने बहुत ही रियायत में प्लाट दे दिया।तभी तो मोहन कह रहा था कि हमारी गुड़िया बहुत ही भागवान है।मोहन मालती का तो जीवन ही बदल गया।गुड़िया के आने से उनके सूने जीवन मे बहार आ गयी थी।मोहन की एक मुराद संतान प्राप्ति गुड़िया के रूप में पूरी हो चुकी थी,
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बस दूसरी मुराद शेष थी,लिये प्लाट पर उसकी अपनी छत पड़ जाये।उसके लिये मोहन और मालती ने प्रयास प्रारम्भ कर दिये।धीरे धीरे उनकी मेहनत रंग लाने लगी।जब गुंजाइश बनती तभी मोहन कुछ न कुछ निर्माण कार्य करवा लेता।उधर गुड़िया भी बड़ी होती जा रही थी,उसकी पढ़ाई का खर्च भी था।फिरभी एक समय ऐसा आया
कि मोहन अपने प्लाट में अपने रहने लायक छोटा सा घर बनाने में सफल हो गया।शुभ मुहर्त देख मोहन मालती गुड़िया को ले गृह प्रवेश कर लिया।मोहन की दोनो मुराद पूरी हो चुकी थी।अब तो बस गुड़िया की शादी करनी थी,पर उसमें अभी दो चार वर्षों की गुंजाइश थी,सो मोहन व मालती अपनी किस्मत पर फूले नही समाते थे।
समय बीतता गया,एक दिन गुड़िया ने अपनी माँ को बताया,माँ मैं राजू से प्यार करने लगी हूँ, माँ हमने कोई सीमा नही लांघी है, पापा और आप अनुमति देंगे तभी मैं राजू से शादी करूँगी,अन्यथा नही।मालती धक से रह गयी,पर उसे गुड़िया पर विश्वास था,पर वह क्या जवाब दे,सो चुप रह गयी।रात्रि में मालती ने मोहन को गुड़िया की पसंद बताई।मोहन भी आश्चर्यचकित रह गया।ओह, अपनी गुड़िया इतनी बड़ी हो गयी है,हम ही नही समझ पाये।
अगले दिन ही मोहन गुड़िया के बताये पते पर राजू के पिता से मिलने पहुँच गये।राजू के पिता धनीराम जी अपने घर पर ही मिल गये।धनीराम जी एक बड़ी कोठी के स्वामी थे,सम्पन्न थे,मोहन को लगा उनकी गुड़िया यदि यहां आयेगी तो वह राजकुमारी की तरह रहेगी।पर क्या राजू के पिता गुड़िया को स्वीकार कर लेंगे?गुड़िया ने कहा तो है कि राजू ने अपने पिता को तैयार कर लिया है।इसी आधार पर मोहन हिम्मत कर धनीराम जी के सामने पहुंच ही गये।
बातचीत से मोहन को अहसास हो गया कि धनीराम जी इस सम्बंध को अपने अनुकूल नही मान रहे थे,पर बेटे की जिद को अस्वीकार भी नही कर पा रहे थे।उन्होंने इतना ही कहा ठीक है भाई जब बेटे ने निश्चय कर ही लिया तो वे क्या कर सकते हैं?मोहन जी इतना ही बोले भाईसाहब मेरी गुड़िया जिंदगी भर आपको और परिवार को किसी भी शिकायत का अवसर नही देगी।साहब जी हम गरीब है,मेरी बच्ची को सहर्ष स्वीकार कर लो
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साहब जी।धनीराम जी बोले मैं कहाँ मना कर रहा हूँ,मैं तो ये सोच रहा था कि तुम हमारी तो छोड़ो ,बारात तक का खर्च कैसे पूरा करोगे?लगता है, वह भी हमे ही करना पड़ेगा।फिर धीरे से बोले जैसे अपने से ही कह रहे हो कि ये और डेढ़ दो लाख का फ़टका लगेगा।हो सकता है मोहन को सुनाने के लिये ही कहा गया हो,क्योकि मोहन ने सुन तो लिया था।
मोहन ने कहा भाईसाहब मैं पूरी कोशिश करूंगा कि सब ठीक हो जाये,बस आप गुड़िया को आशीर्वाद दे दे।रिश्ता तय हो गया।शुभ मुहूर्त में गुड़िया और राजू की शादी सम्पन्न हो गयी।गुड़िया के चेहरे की चमक मोहन और मालती को असीम शांति प्रदान कर रहे थे।राजू सोच रहा था,कि उसके पिता ने कंजूस होते हुए भी बारात की इतनी बढ़िया व्यवस्था कैसे कर दी।लेकिन हो गयी तो अब क्या सोचना।
गुड़िया और राजू अपने हनीमून से एक सप्ताह बाद वापस आये।तब मोहन गुड़िया को लेने आया।गुड़िया अपने पापा से चिपट गयी।आई लव पापा कहते कहते फिर पापा से चिपट गयी।आखिर उसे अपने प्यार की मंजिल मिल गयी थी।पापा के साथ घर जाने को तैयार गुड़िया को छोड़ आने को राजू ने अपनी कार भेज दी।लेकिन ये कार को उसके पापा किधर की ओर लिवाकर ले जा रहे हैं, इस ओर तो उनका घर नही है,
वह कुछ पूछती इससे पहले ही मोहन जी ने कार रुकवा ली और गुड़िया के साथ नीचे उतर आये।आश्चर्य से गुड़िया पापा को देख रही थी,पापा यहां क्यो आये है हम?
अरे बेटियां कुछ नही वो अब हम यहां रहने लगे हैं।देख ना ये उससे बड़ा है ना ये घर,अच्छा भी है।असमंजस में पड़ी गुड़िया बोली पापा साफ साफ बताओ ना हमारे उस घर का क्या हुआ?अरे मेरी माँ सब यही बात करेगी चल अंदर,तेरी माँ कब से तेरी राह देख रही है।
चुपचाप गुड़िया सहमी सी घर के अंदर जाकर माँ से चिपट कर जोर से रो पड़ी।एक संशय उसके मन मे घर कर गया था।पापा कुछ बोल नही रहे थे,माँ भी इधर उधर की बात कर रही थी।रात में गुड़िया ने माँ को अपना वास्ता देकर कहा,मां मुझे सच सच बता हमारे घर को क्या हुआ है।मालती सिसक पड़ी
तब उसने बताया कि उस घर को बेच दिया गया है तभी तेरे हाथ पीले किये जा सके हैं।आंसू पौछते हुए दूसरे कमरे से मोहन ने आकर गुड़िया के सर पर हाथ रख कर कहा,मेरी बच्ची तेरे सामने एक मकान तो क्या यह दुनिया कुरबान।बेटी घर फिर बना लेंगे तू क्यो चिंता करती है?
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गुड़िया जानती थी,वह घर उसके पापा का सपना ही नही था बल्कि जीवन की पूंजी भी था।वह जानती थी उसकी माँ और पापा ने कैसे पाई पाई जोड़कर वह आशियाना बनाया था,पर उसके कारण वह उजड़ गया।वापस ससुराल आकर गुड़िया गुमसुम सी थी।राजू के बहुत आग्रह के बाद उसने बताया कि किस प्रकार उसकी वजह से उसके पिता ने अपने सपने के घर को बेच दिया।मैंने भला क्या इसीलिये जन्म लिया था राजू।राजू ने गुड़िया को ढाढस बधाया।
सात आठ दिन बाद ही गुड़िया फिर अपने पापा के पास पहुंची और अपनी माँ और पापा को अपने साथ कार में बिठाकर अपने साथ ले गयी।मोहन व मालती पूछते रह गये, कहाँ लेकर जा रही है,बता तो सही,पर गुड़िया बोली।आप बस मेरे साथ चलो।ये क्या–गुड़िया तो उन्हें उनके पुराने घर मे ही ले आयी।
अपनी मम्मी पापा को कार से उतार कर उसने घर की चाबियां पापा के हाथ मे दे दी।पापा ये रहा आपका अपना घर,अब आप यही रहेंगे।राजू ने यह घर खरीद लिया है,ये रहे कागजात।पर बेटी हम बेटी की संपत्ति कैसे ले सकते हैं?मैं जानती थी आप यही कहोगे।तो आप अब किराया गुड़िया को देंगे पूरे 100 रुपये महीना।अब तो ठीक है ना।
मोहन और मालती जैसे ही घर का दरवाजा खोलने को बढ़े तो घर पर एक प्लेट लगी थी जिस पर लिखा था,आशियाना मेरे पापा का सपना।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित
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