सुबह से घर में चहल-पहल थी, वंदना जी घर की साफ-सफाई करवाने में लगी थी, अखिलेश जी फूल मालाओं और बाकी की व्यवस्था देख रहे थे, उनका बेटा नवीन खाना-पीना मंगवाने के लिए लगातार फोन पर था, और बहू केतकी नन्ही सी बेटी को मातृत्व के स्नेह से सींच रही थी।
अभी कुछ दिनों पहले ही केतकी की बेटी का जन्म हुआ था, पूरे घर में हर्षोल्लास छाया हुआ था, सभी लोगों के चेहरे मुस्करा रहे थे, क्योंकि सबकी पदोन्नति जो हो गई थी, दादा-दादी माता-पिता, बनने की खुशी चेहरे से झलक रही थी। घर में बच्ची के नामकरण का छोटा सा समारोह था, जिसके लिए आसपास के रिश्तेदारों और पड़ौसियो को बुलाया गया था।
वंदना जी की अपनी तो कोई बेटी नहीं थी, इसलिए हर शुभ काम में वो अपनी ननद सरिता जी को ही बुला लेती थी। सरिता जी की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी, वो शहर से दूर गांव में रहती थी, बेटा भी छोटा-मोटा काम करके घर चला रहा था, उनके पति बरसों से बिस्तर पर थे, उन्हीं के इलाज पर काफी खर्चा हो जाता था, और उनका रहन-सहन भी सामान्य ही था।
सरिता जी को अन्य रिश्तेदार काम पर बुलाते थे, लेकिन इतना मान-सम्मान नहीं देते थे, लेकिन वंदना जी उन्हें पूरे मान-सम्मान के साथ बुलाती थी, और उनके आवाभगत में कोई कमी नहीं रखती थी, गांव से वो अकेली ही बस स्टैंड तक आने वाली थी।
तभी वंदना जी को ध्यान आया और उन्होंने नवीन से कहा कि, बेटा बुआ को लेने बस स्टैंड चला जा, इतनी गर्मी में वो रिक्शे से आयेगी?
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ये सुनकर वंदना जी की देवरानी हंसने लगी, ” बड़ी भाभी जी कोई खास मेहमान आ रहा है क्या? सरिता जीजी ही तो आ रही है, और उन्हें तो पैदल और रिक्शे की ही आदत है, एसी कार की आदत नहीं है, घर में इतना काम है, बाकी मेहमान आने वाले हैं, तो नवीन को वहां भेजकर समय की बरबादी ही होगी।
वंदना जी ने देवरानी की बात सुनकर अनसुनी कर दी, क्योंकि उन्हें पता था, उनकी देवरानी सिर्फ पैसे वालों को ही भाव और सम्मान देती है, वो अमीर रिश्तेदारों से ही व्यवहार रखती है, अभी पिछले महीने उसके घर में गृहप्रवेश था, उसने सरिता जीजी को बुलाया था, लेकिन उन्हें जरा भी इज्जत नहीं दी, और विदा के नाम पर थोड़ी सी धनराशि देकर विदा कर दिया, लेकिन वंदना जी ऐसी नहीं थी, वो पैसे को नहीं रिश्ते को महत्व देती थी।
थोड़ी ही देर में सरिता जी आ गई, उन्हें देखकर वंदना जी ने उनके पांव छुए और आदर के साथ घर में ले आई, उन्हें नाश्ता पानी दिया, ये सब अकेले वंदना जी ही कर रही थी, देवरानी तो उन्हें देखकर भी अनदेखा करके मोबाइल में लगी हुई थी।
अभी पंडित जी आने वाले हैं, ये कहकर बाकी की सब व्यवस्था भी कर दी गई थी।
बुआ ही नामकरण में बच्ची का नाम रखती है, आप तो दादी बुआ हो, मेरी पोती को आपका आशीर्वाद मिलेगा, वंदना जी ने मुस्कुराते हुए कहा।
तभी देवरानी बीच में बोल पड़ी, सरिता जीजी, आप तो गांव में रहते हो, और शहरी बच्चों के नाम कुछ अलग होते हैं, कोई अच्छा सा नाम रखना, वरना सब लोग हंसी उड़ायेंगे। वैसे जीजाजी की तबीयत अब कैसी है? बेटे-बहू नहीं आये? उसने औपचारिकता वश पूछ लिया।
छोटी भाभी, इनकी तबीयत है जैसी है, बेटे-बहू आते तो इनकी देखभाल कौन करता, इसलिए मैं अकेली ही चली आई, उन्होंने तसल्ली से उत्तर दिया।
पंडित जी के आते ही विधि-विधान से पूजा हुई और वहीं पर सरिता जी ने बच्ची का नाम माता-पिता के कानों में बताया तो दोनों खुश हो गये, जब नाम बोला गया तो छोटी भाभी हैरान थे, बुआ इतना अच्छा नाम कैसे रख सकती है, वो तो गांव की है।
सरिता जी मुस्कराने लगी, छोटी भाभी गांव में भी इंटरनेट होता है, मोबाइल पर कोई भी अक्षर डालो, उससे संबंधित नाम आ जाता है, मेरी बहू ने नाम ढूंढकर मुझे बताया था, पढ़ी-लिखी नहीं हूं, पर जगत भर की खबर रखती हूं।
ये कहकर उन्होंने आरती उतारी,और बच्ची के हाथ
में शगुन रख दिया, जिसे देखने के लिए छोटी भाभी सबसे ज्यादा उतावली थी।
अरे!! ये क्या चांदी का छोटा सा सिक्का?? ये तो बड़ा सस्ता मिल जाता है, और पुराना भी लग रहा है,’जीजी आपने तो बड़ा छोटा उपहार दिया।
तभी वंदना जी बोली, उपहार की कीमत नहीं दिल देखा जाता है, सरिता जीजी इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी घर पर आई, बच्ची को इतना अच्छा नाम दिया, और शगुन में चांदी मिलना तो सौभाग्य की बात है, इनके हाथों से बच्ची को आशीर्वाद मिल गया, ये ही सबसे बड़ा उपहार है।
उनकी बात सुनकर छोटी भाभी का चेहरा उतर गया, वंदना जी ने बड़े मान-सम्मान के साथ अपनी ननद को अच्छा सा नेग देकर विदा किया, सरिता जी खुशी-खुशी अपना आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक रचना
# उपहार की कीमत नहीं दिल देखा जाता है।