आशीर्वाद या श्राप: hindi stories with moral

hindi stories with moral : “कल अपने ऑफिस से छुट्टी के लेना बेटा… “सरला(मेरी देवरानी) बोली।

“ क्यों माँ???” बेटी अनु बोली।

“ कल तुझें लड़के वाले देखने आ रहें।”

“अच्छा माँ।”

दूसरे दिन अम्बरीश अपने माँ-पापा संग  आया और उनको सरला की बिटिया पसंद आ गई और अम्बरीश की माँ ने अनु को अपने हाथों से  कंगन  उतार कर पहना दिये।हम सभी लोग बहुत खुश हुवे और सरला ने भी कुछ नगद अम्बरीश के हाथों पर रख कर  इस रिश्ते की मंज़ूरी दे दी थी।

दो दिन बाद…

ऑफिस से अनु लौटी तो… उसके साथ एक लड़का था। मैंने सोचा कोई कलीग होगा… सो मैं दोनों  को ड्राइंग रूम में बैठने को कह कर  चाय बनाने चली गई।तब तक सरला और मेरे  देवर भी बैंक से लौट आये।( दोनों एक ही बैंक में काम करते थे।) हम सब साथ में  बैठ कर ही चाय पीने लगे… तभी अनु बोली- माँ-पापा … ये अरुण है.. मेरा कलीग .. मैं इसके साथ शादी करना चाहती हूँ… हम दोनों एक दूसरे को तीन साल से जानते हैं…

यह सुनते ही मैं  और सरला क़रीब तीस बरस पीछे चली गये…

उस दिन  मेरे  देवर-देवरानी  दिवाली की शॉपिंग करने बाज़ार गये थे। उसकी छोटी बहन अपने पति संग हमारे घर पहली बार आये थे( हम देवर-देवरानी एक साथ ही रहते थे )  ड्राइंग रूम में हम  लोग सरला का इंतज़ार कर रहे थे।घर आने पर  दोनों ही  उन दोनों को देख कर आश्चर्यचकित हो गये क्योंकि…. सरला की इस बहन  ने क़रीब तीन-चार महीने पहले ही घर से भाग कर शादी कर ली थी।

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             सरला सात बहनें ही थी.. कोई भाई नहीं था उसका। उसके  पापा  ने अपनी बेटियों की परवरिश बेटे की तरह ही करी थी। जिसे जो करना था… वैसी ही शिक्षा देने की पूरी कोशिश की थी  उसके पापा ने।अपने रिटायरमेंट के बाद अपनी दोनों छोटी बेटियों  के साथ अपने पुश्तैनी गाँव चले गये थे। बाक़ी सभी बड़ी  बेटियों का ब्याह हो गया था और वो अपने -अपने घरों में खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही थी। सरला सबसे बड़ी थी और सबसे क़रीब थी अपने पैरेंट्स से।

        उसकी ये छोटी बहन और उससे छोटी एक बहन पापा-मम्मी के साथ गाँव में ही रह कर  वहाँ के राजकीय इंटर कॉलेज में पढ़ने लगी। ये बारहवीं में और छोटी दशवीं में  पढ़ती थी। ये वाली बहन गाँव से तीस किलोमीटर दूर शहर में पी.एम.टी. की कोचिंग कर रही थी। वहीं दोनों  की मुलाक़ात और दोस्ती हुई। जिसके बारे में इन लोगों को बहुत दिनों बाद किसी बाहरी व्यक्ति से पता चली। ज़्यादा तर ऐसी बातें किसी बाहरी से ही पता चलती हैं।

उसके पापा का कहना था कि… हमें कोई आब्जेक्शन नहीं हैं… पर…पहले अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ।

     हालाँकि सरला की माँ को वो लड़का पसंद नहीं था.. क्योंकि वह एक रईस बाप का बिगड़ा लड़का था..सारे अवगुण उसमें थे…समाज में भी उसकी इमेज अच्छी नहीं थी।  उसके पापा-मम्मी ने उसे प्यार से बहुत समझाया… कुछ दिन तो वह नार्मल रही फिर… अचानक एक दिन दोनों बिना बताये घर से भाग गए। सरला के पापा को लोगों ने उन्हें अपने बिरादरी से बाहर कर दिया… कोई  उनके  घर का पानी तक नहीं पीता… सब रिश्तेदार उसके पैरेंट्स को ही दोष देते और परवरिश पर उँगली उठाते। हालाँकि सरला के पापा को इससे कोई फ़र्क़ नहीं था, क्योंकि… उनके लिए पहले अपनी बेटियाँ थी फिर समाज। लेकिन गाँव का समाज और बिरादरी उन्हें जीने नहीं दे रहा था।अपने ही जन्मभूमि और अपनों के बीच उसके पापा  रोज़ा शर्मिन्दा हो रहे थे और सर झुका कर बाहर जाते। मेरे देवर अविनाश गाँव जाकर पूरे परिवार यानि अपने  सास-ससुर और छोटी साली को हमारे ही शहर ले आये। वो  हमारे ही शहर  में अलग घर लेकर रहने लगे।

     सरला अचानक दोनों को आया देख दुख के साथ-साथ ख़ुशी भी हुई। लेकिन…  अपने पापा को कैसे समझाया जाये। दूसरे दिन ऑफिस से आने के बाद दोनों को लेकर  मेरे देवर-देवरानी ( सरला और अविनाश) अपने पापा के घर गये…  उसके पापा बहुत दुःखी थे…उसके इस कदम से , क्योंकि… उन्होंने तो कहा ही था कि… सेल्फ इंडिपेंडेट हो जाओ… जो करना हो करना।देवर अविनाश ने अपने ससुर को समझाया कि दोनों ने कोर्ट-मैरिज की हैं.. दोनों क़ानूनी तौर पर पति-पत्नी हैं और साथ ही आपके बेटी-दामाद भी।

अचानक …  सरला के पापा ग़ुस्से से लाल होकर बोले कि-“ तुम्हारे बच्चे ऐसा करेंगे तो… पूछेंगे।” और बहन से बोले कि- तुम कभी भी सुखी नहीं रहोगी।”

और आज…

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उसकी ही बेटी…

अरुण के जाने के बाद… मेरे देवर ने कहा कि-“ बैंक में काम करते हुवे… हमें आदमी को परखने का क़रीब पैंतीस साल का अनुभव हैं… मुझें ये लड़का और इसका परिवार सही नहीं लग रहा… सिर्फ़ दिखावा हैं… लेकिन अनु  नहीं मानी।

आख़िर… क़रीब दो साल बाद अपने पैरेंट्स( सरला-अविनाश) को मनाने में हमारी अनु कामयाब हो गयी और हम सब पूरे परिवार की रज़ामंदी से  उनकी लव -मैरिज एक अरेंज-मैरिज में तब्दील हुई।

अनु की शादी के  क़रीब सात साल बाद….

ना तो मेरे देवर-देवरानी, ना ही उसके  पापा और वो बहन-बहनोई जीवित हैं। सरला ने पापा तो बीमार थे लेकिन सरला-अविनाश  और उसके बहन-बहनोई की कार-एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी जब वो साईं बाबा के दर्शन कर लौट रहे थे।बेटी अनु भी कुछ ख़ास खुश नहीं हैं अपने वैवाहिक जीवन में। उस बहन की दो बेटियाँ (२२ और १८ बरस की ) अपने दादी- बाबा के साथ हैं। आज सोचने पर मजबूर हूँ… कि  सरला के पापा के वो शब्द श्राप थे या आशीर्वाद  !

संध्या सिन्हा 

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