आशीर्वाद – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

एनसीआर  के बहुत पॉश इलाके के एक अपार्टमेंट से शुरू होती है ये कहानी…

        अपार्टमेंट के नजदीक के एक पार्क में अक्सर सत्तर साल के बुजुर्ग मिल जाते.. ऑफिस का रास्ता पार्क से होकर हीं जाता था… हाथ जोड़कर नमस्ते करती और आगे निकल जाती..

                              लगभग एक महीने से वो बुजुर्ग मुझे दिखाई नहीं दे रहे थे… मन अंदर से बेचैन हो रहा था… अनहोनी की आशंका हो रही थी… पर महानगरों की सभ्यता इतनी ज्यादा विकसित हो चुकी है कि मेरी दोस्त बताती है हमारा दरवाजा और सामने रहने वाले सरदार जी का दरवाजा आमने सामने था पर उनके पिता जी की मृत्यु हो गई और मुझे पता भी नहीं चला.. अंतिम अरदास के दिन दरवाजे के बाहर ढेर सारे चप्पल देख मैने वॉचमैन से पूछा तब पता चला…

                  खैर एक महीने से ज्यादा बीत गए थे… रविवार के दिन अचानक से पार्क में जाने की इच्छा हुई… मन हीं मन सोच रही थी वो बुजुर्ग आज पार्क में मिल जाएं.. भले हीं आप उस व्यक्ति के बारे में कुछ नही जानते हों बातें नही होती हो पर रोज रोज देखने भर से एक रिश्ता सा बन जाता है और नजरें तलाश करती हैं.. वही हाल मेरा था..

              और संयोग वश गुलमोहर के पेड़ के नीचे उदास से बैठे थे.. हाथ में कोई पत्रिका थी पर आंखें शून्य में खोई थी.. मैं पास जाकर बैठ गई नमस्ते अंकल जी.. बेहद कमजोर दुबले एक महीने में जैसे दस साल उम्र बढ़ गई हो.. होठों पर उदास सी हंसी और आंखों में आंसू भरे कहा बैठो बेटा.. मैने कहा आपको बहुत दिनों से देखा नही तो चिंता हो रही थी.. फफक पड़े वो बुजुर्ग अंकल.. बोतल से पानी दिया थोड़ी देर बाद उन्होंने चुप्पी तोडी.. तुम्हारे पास वक्त है सुनोगी मेरी व्यथा.. मैने कहा आपका जी भी हल्का हो जाएगा..

                  मैं बहुत अच्छी सरकारी नौकरी से रिटायर हुआ हूं.. यहां इस अपार्टमेंट में मेरे खरीदे दो फ्लैट हैं और सेक्टर थ्री में भी दो फ्लैट गांव और शहर की सारी जमीन रिटायरमेंट के पैसे से खरीद लिया… दो बेटे हैं.. रवि और राजन.. दोनो आईटी सेक्टर में जॉब करते हैं.. यहां रवि रहता है और सेक्टर थ्री में राजन..

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                   दोनो बेटे और बहुओं ने अपनी शादी की पहली सालगिरह पर आशीर्वाद के रूप में एक एक फ्लैट देने का आग्रह किया.. मेरी पत्नी निभा ने कहा सारा तुम दोनो का हीं है हमारे बाद.. बेटे कहने लगे मां तुम्हे भरोसा नहीं है हम पर.. बहुओं ने कहा मां पापा हम आपकी बेटियां हैं फ्लैट हमारे नाम से कर दीजिए आपका आशीर्वाद समझ कर हम इसी से अपने नए बिजनेस का श्री गणेश करना चाहते हैं..हम दोनो लोन लेकर बुटीक खोलना चाहते हैं पर लोन अप्लाई करने पर घर जमीन या कुछ प्रॉपर्टी गारंटी के तौर पर मॉर्गेज रखना पड़ेगा… आपके बेटों की नई नौकरी है….. और निभा के न चाहने पर भी मैने फ्लैट दोनो बहुओं के नाम कर दिया…

                        अब मेरे पास दो फ्लैट बचे थे जो मेरे नाम पर थे..

छः महीने बाद दोनो बेटों ने मुझसे कहा पापा यहां का एक फ्लैट मेरे नाम से कर दो और सेक्टर थ्री का राजन के नाम से ताकि आपके जीवन में हीं सब शांति से निपट जाए और हमारा प्यार बना रहे.. मैं भड़क गया.. नही मैं अपना हाथ नही काट सकता.. पेंशन की रकम में से कुछ पैसे मैं दोनों बहुओं ले लेती हैं बच्चों के नाम से.. पापा पोते पोतियों को भी पता चले दादाजी का आशीर्वाद उन्हें पढ़ाई अच्छे से करने के लिए मिल रहा है..

                    तीन महीने में रवि और राजन ने घर में ऐसा माहौल पैदा कर दिया की दोनो बचे फ्लैट दोनो बेटों के नाम पर कर दिया.. और फिर हमारे दुर्दिन शुरू हो गए.. मेरी पत्नी निभा को दोनो बेटे और बहू  ने राय कर सेक्टर थ्री में राजन के पास भेज दिया… इतने साल साथ साथ रहने वाले पति पत्नी ओह… छोटे शहर या गांव में अभी भी इतनी संवेदनशीलता बची है की इस तरह अगर कोई अपने मां बाप से व्यवहार करे तो चार लोग आपत्ति करते हैं.. सामाजिक मर्यादा और भय से वे इस तरह के मामले अभी भी गांवों और छोटे शहरों में कम है अपेक्षाकृत महानगरों के.. कहा जाता है समरथ को नहीं दोष गोशाई… मेरी फरियाद कौन सुनता.. बेटों ने दबे जुबान समझा दिया था बुढ़ापे में लाचार हों जाओगे शरीर से तो हमारे अलावे कोई नही पूछेगा… पुलिस सामाजिक कार्यकर्ता ये सभी बूढ़े लोगों के काम शायद हीं आते होंगे…

                      मेरी पत्नी निभा रोज आटो पकड़ इस पार्क में आती थी और मैं भी चला आता था.. हम दोनो एक दूसरे का दुःख बांटते.. निभा समझाती पिछले जनम में शायद कुछ बुरा किया है…

       छः महीने भी नही बीते एक सुबह टेरिस से नीचे गिरी मरी पड़ी थी मेरी निभा… आनन फानन में सब कुछ हो गया.. मैं उसे जी भर के देख भी नहीं पाया.. पुलिस आई बेटे की बातों से संतुष्ट हो कर चली गई.. तीन दिन बाद काम क्रिया सब खतम.. दोनों बहुएं लोगों के सामने कितना रो रही थी मम्मी हमे बहु नही बेटी समझती थी.. उनका #आशीर्वाद #इस फ्लैट के कोने कोने में बिखरा पड़ा है.. जहां भी होंगी उनका आशीर्वाद हमारा संबल प्रदान करता रहेगा… मम्मी आपको इतनी भी क्या जल्दी थी… मुझे घिन आ रही थी.. छी…

    मैं बिल्कुल टूट गया हूं… भगवान जल्दी हीं मुझे अपने पास बुला लें.. ऐसे बेटों के लिए किस मुंह से दुआ #आशीर्वाद #निकलेगा… अपार्टमेंट के वॉचमैन से बातें करता हूं जब लगता है सर की नसें फट जाएंगी… कभी कभी लगता है खूब चिल्ला के रोऊं और कहूं तुम चारो कातिल हो अपनी मां का…

                तुम #आशीर्वाद #नही बद्दुआ के काबिल हो.. यही संस्कार पाकर तुम्हारे बच्चे बड़े हो रहे हैं… वक्त तय करेगा ये तुम्हारे साथ क्या करेंगे… जानती हो रवि और राजन आपस में बातें कर रहे थे मां तो जल्दी निपट गई पता नही ये कब तक… मेरे हाथों से ग्लास छूट कर गिर गया दोनो चुप हो गए… बिलख रहे थे अंकल… मैं स्तब्ध थी..दुख आक्रोश से भर उठ. मेरे दादा जी ठीक हीं कहते थे आशीर्वाद और श्राप (बद्दुआ ) का बंटवारा कभी नहीं होता.…

Veena singh

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