Moral stories in hindi : आराधना…आरू तब तक थी जब तक उसके पापा-मम्मी थे वो ही उसे प्यार से बुलाते थे उनके जाने के बाद तो उसे लगता कि उसका नाम उपेक्षा होना चाहिए क्योंकि फिर तो वो हर वक्त उपेक्षित ही होती थी…!!!!
आराधना बड़े दादा जी ने आवाज लगाई…!!!!
जी दादा जी..!
बेटा आज तुम्हारी सगाई है और मैं देख रहा हूँ कि तुम नीचे मुँह किये बैठी हो क्यूँ…क्या कमी है तुममें…डरी डरी मत रहो सामने आओ सबसे बात करो..!!!!
जी दादा जी..!!!!
आज सगाई व कल शादी भी हो गई वो बहुत उम्मीदें लेकर अपने ससुराल आ गई पर जो सपने देखो वो हर बार तो पूरे नहीं होते हैं उसे वहाँ भी उसे वो नहीं मिला जो वो चाहती थी…!!!!
ससुराल में पति व सब बहुत अच्छे थे पर सुधीर का काम ज्यादा अच्छा नहीं था तो दोनों जेठ ही खर्चा उठाते थे तो वहाँ पर भी हक जता सके ऐसा कुछ नहीं था…!!!!
आराधना सुनो…सुधीर ने आवाज लगाई…!!!!
जी क्या हुआ…??
सुनो कल हम दोनो पिच्चर देखने जायेगे..!!
कैसे जायेंगे..??
भैया का स्कूटर है ना उससे चलेगे…!!
अगले दिन दोनो गये तो वापस आने में थोड़ी देर हो गई…!!!!
आते ही जेठानी जी ने बाते सुनानी शुरू कर दी कि जेठ जी को जाना था वो कब से रास्ता देख रहे थे और वो सही भी थी गलती हमारी थी…!!!!
धीरे-धीरे समय बीतता गया आराधना के मामाजी-मामीजी आये तो वो स्कूटर दिलाकर गये फिर भी ज़िन्दगी में अभी भी आजमाईशें बहुत थी…अब बच्चें भी हो गये थे…!!!!
चाचाजी के बेटे की शादी में जाना था सुधीर ने चार बातें सुनाई फिर हाँ की जाने के लिए पर वहाँ भी वो आराधना को किसी ना किसी बात पर सुनाते रहते कि उनको सोने के लिए सही जगह नहीं दी गई..मेरे साथ ये हुआ वो हुआ …!!!!
अराधना ने बहुत मुश्किल से समझाया कि रिश्तें सगे हो अपने हो तो वो ही हर चीज का ध्यान रखते हैं…मैंने तो हर बार ये सब सहा है पर समझने में और समझाने में बहुत फर्क होता है…धीरे धीरे हर रिश्ता उससे दूर हो गया….!!!!
बदलते वक्त के साथ हालात अच्छे हो रहे थे सुधीर का काम अच्छा हो गया था वक्त लगा पर दोनों एक-दूसरे को समझने लगे थे….बच्चें बड़े हो गये दोनों ने अपनी-अपनी लाईन चुन ली थी…!!!!
वक्त जैसा भी था आज हम दोनों साथ थे अपनी उपेक्षाओं को पीछे छोड़ ….दोनों साथ बैठे चाय पी रहे थे जैसे ही आराधना जाने के लिए खड़ी हुई सुधीर ने हाथ पकड़ते हुए बोला…आरु…बैठो अभी बातें करते है…!!!!
इतने सालों बाद…आरू सुनकर आराधना चहक उठी थी…!!!!
मौलिक व स्वरचित©®
गुरविंदर टूटेजा
उज्जैन (म.प्र.)
#उपेक्षा
अप्रकाशित