आरती की थाली – दर्शना जैन

रक्षाबंधन आने के लगभग पंद्रह दिन पहले से सरिता की तैयारियाँ शुरू हो जाती थी। घर के काम से फुर्सत मिलते ही वह खरीददारी करने बाजार के लिये निकल पड़ती।

    हर बार रक्षाबंधन पर चेहरे पर खुशी होती लेकिन इस बार चेहरा उदास था व आँखें रोये जा रही थी। कोरोना ने उसके भाई भाभी को दूर चाँद सितारों में भेज दिया था।

    शाम को किसी का फोन आया, उसने कहा,” सरिता दीदी, हम आ रहे हैं। आरती की थाली तैयार रखियेगा।”

     सरिता को फोन कर ऐसा मजाक करने वाले पर गुस्सा आया, उसने बिना यह पूछे कि कौन बोल रहा है फोन पटक दिया। बाद में उसके बावरे मन में विचार अपनी गति से चलने लगे,” उस व्यक्ति की आवाज तो भाई जैसी लग रही थी, मुझे उसका नाम तो पूछना चाहिये था, कहीं भाई सचमुच आ गया तो, लेकिन यह कैसे हो…?” विचारों की गति पर दरवाजे की घंटी ने ब्रेक लगाया।


    दरवाजा खोला, सामने एक युगल खड़ा था, देखने से सरिता को वे कुछ जाने  पहचाने लगे, याद आया कि वे उसके पुराने मोहल्ले में रहते थे। उसने दोनों से पूछा,” अरे, अंकित और रानी तुम दोनों!, बहुत समय बाद दिखे, कैसे हो? अंकित ने कहा कि ठीक हैं, दीदी। आवाज फोन करने वाले से मिलती जुलती थी, उसने पूछा कि कुछ देर पहले फोन तुमने ही किया था?

    अंकित ने कहा,” हाँ दीदी मैंने ही किया था। याद है, मैंने एक बार कहा था कि काश  आप मेरी भी बहन होती तो मैं भी आपसे राखी बंधवाता। फिर कंपनी की तरफ से अमेरिका जाना पड़ा, वापस आया तो आपके भाई साहब और भाभी का पता चला, बहुत दु:ख हुआ। आपसे मिलकर आपका दु:ख हल्का करना चाहता था, दो तीन परिचितों से पूछने पर आपका पता और मोबाइल नंबर मिला। मैंने आपको फोन किया और हम राखी बंधवाने चले आये, आपको बुरा तो नहीं लगा दीदी।”

    पहले सरिता की आँखें खून से जुड़े भाई को खोने पर रो रही थी और अब दिल से जुड़े भाई को पाने पर। भीगे नयनों से वह आरती की थाली तैयार करने जाने लगी।

दर्शना जैन

खंडवा मप्र

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