“ माँ ये पैसे सँभाल कर रख लो.. हाँ ध्यान रखना बेफिजूल ख़र्च ना करना और हाँ जरा छिपा कर अच्छे से रखना ।”महेश ने माँ रत्ना से धीरे से कहा और बैठक में अपने चाचा को देखने लगा जो चाय पीने में मशगूल थे
“ ठीक है बेटा ।” कह कर रत्ना जी ने पैसे अलमारी में सहेज कर रख दिए
कुछ दिनों बाद बेटे ने पैसे माँगे ….रत्ना जी अलमारी खोल कर पैसे निकालने को हुई तो पैसे वहाँ से ग़ायब थे।
माँ को परेशान देख महेश ने पूछा,” क्या हुआ… पैसे दो ना ….वो किसी से उधार लिए थे उसको देने है आज नहीं दिए तो वो घर आकर हल्ला करेगा।”
“ बेटा पैसे यही रखे थे … अब वो दिख नहीं रहे।” रुआँसी हो माँ ने कहा
“मतलब लाख मना करने के बाद भी आपने खर्च कर दिए।” ग़ुस्से में महेश माँ से बोला
“ नहीं नहीं मैंने खर्च नहीं किए ।” रत्ना जी सिर पर हाथ रख परेशान हो कर बोली
“ फिर पक्का चाचा ने पैसे निकाल लिए होगे.. वो आए थे ना उस दिन घर पर वही लेकर गए गए होंगे ।” महेश अपने चाचा के लिए बोला
“ नहीं बेटा तेरे चाचा ऐसा कभी नहीं कर सकते ये तो चाँद पर थूकने समान है… जो इंसान तेरे पापा के जाने के बाद अपने परिवार के साथ साथ हम तीनों की ज़िम्मेदारी बख़ूबी उठा लिया वो ऐसा काम कभी नहीं कर सकते …. माना अब उनके हालात अच्छे नहीं रहे पर ये काम वो कभी नहीं कर सकते हैं…..ना ना ये काम उनका नहीं हो सकता।” रत्ना जी तपाक से बोली
“माँ ये देखो कैसा लग रहा है?” तभी उनकी बेटी एक सोने की चैन गले में पहने दिखाते हुए इतरा कर बोली
“ ये कब ले लिया तुमने?” महेश ने पूछा
रत्ना जी भी आश्चर्य कर रही थी ।
“ अरे उस दिन भाई जब तुम काम करने में व्यस्त थे मैं तुमसे बोल रही थी ना मुझे एक चैन पसंद आई है पैसे दो ना लेना है तुमने काम करते हुए कहा अलमारी में रखी है ले ले…और आज पूछ रहे हो कब ले लिया मैं सुनार को आर्डर देकर आई थी अभी लेकर आ रही हूँ ।” मनु ने कहा
“ मुझे बताया भी नहीं और पैसे निकाल लिए… और तुम बेटा चाचा को दोषी बता रहे थे मैं कह रही थी कुछ हो जाए वो नेक इंसान ये काम कभी नहीं कर सकते ।” रत्ना जी दुखी हो कर बोली
“ भाभी आप ये क्या कह रही है मैं क्यों बच्चों के पैसे लेने लगा … मैं तो हर दिन आप लोगों की ख़ैरियत पूछने आ जाता हूँ मुझे क्या पता आज बच्चे बड़े होकर अपने चाचा को ही..।” तभी घर के अंदर प्रवेश करते महेश के चाचा ने कहा
“ चाचा हमें माफ कर दो…वो बस ।”महेश शर्मिंदगी से बोला
“ बेटा कह रही थी चाचा कभी ऐसा नहीं कर सकते चाँद पर थूक कर तुम ख़ुद ही अब लज्जित महसूस कर रहे हो…. कहने से पहले सोचना चाहिए हम किसके लिए क्या कह रहे हैं ।” रत्ना जी हाथ जोड़कर देवर की ओर मुख़ातिब हो बेटे के कहे की माफ़ी माँगने लगी
“ चलता हूँ भाभी… अब शायद यहाँ मेरी ज़रूरत ख़त्म हो गई है… अपना समझ आता था बच्चों ने पल में पराया कर दिया ।” दुखी स्वर में कहते हुए चाचा घर से निकल गए ये आरोप उन्हें बहुत तकलीफ़ दे रहा था
रत्ना जी के साथ साथ महेश भी अब अफ़सोस कर रहा था।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
स्वरचित
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