आरोप–प्रत्यारोप – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  तुम्हारे ही मजे हैं सोनम, एक हमें देखो नौकरी भी करो, घर का काम भी देखो। गृहिणी की एकदम टिप टॉप मस्त ज़िंदगी होती है। जब मन करे टीवी के सामने बैठ जाओ, जब मन करे सो जाओ। एक साथ ही ढलती शाम में ठेले पर से सब्जी लेती हुई पड़ोसन किरण ने सोनम से कहा।

इतनी ही दिक्कत है तो नौकरी छोड़ दीजिए। हमउम्र पड़ोसन किरण की बात पर सोनम ने कहना चाहा लेकिन कौन बात बढ़ाए सोच कर मुस्कुरा कर घर के अंदर आ गई।

“आंटी, बंटी इतना ज्यादा रो रहा था आज। भाभी कहाॅं हैं।” सोनम चाय लेकर बालकनी में आई तो पड़ोसन किरण की सास कल्याणी को देखती ही पूछ बैठी।

“दफ्तर गई है।” कल्याणी कहती है।

“आज तो शनिवार है ना, छुट्टी होती है ना भाभी की।” सोनम चाय के घूंट के साथ पूछती है।

“हाॅं, बेटा आज उसकी कोई जरूरी मीटिंग थी इसलिए जाना पड़ा। बोल कर गई है आज देर हो सकती है।” कल्याणी जी ने बताया।

चलूं, मैं भी घर के सामानों की सूची तैयार कर लूं। फिर सारे काम निपटा कर ये काम भी कर लिया जाए। सोचती सोनम चाय समाप्त करने लगी। 

ये आवाज तो जानी पहचानी है। घर के सामान की खरीदारी कर सुस्ताने के लिए एक कैफे में जगह खोज कर बैठती सोनम के कान में खिलखिलाने की आवाज से ऑंखें उस आवाज़ का पीछा करती इधर उधर घूमने लगी।

ये तो किरण भाभी हैं। वो यहाॅं… आंटी ने कहा था, छोड़ो मुझे क्या, कॉफी पीकर बचा हुआ सामान लेकर घर जाऊॅं, पता नहीं सबने लंच किया भी होगा कि नहीं। कितना भी का लो कि कभी कभी तो खुद से लेकर लंच कर लिया करो, लेकिन वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति रहती है। किरण भाभी के ही मजे हैं, नौकरी है तो दिनभर घर पर रहना नहीं है तो सारे लोग अपना खाना पीना कर ही लेते हैं। छुट्टी के दिन थकान है भी तो चल ही जाता है। सोनम कॉफी की उड़ते भाप के साथ साथ अपनी सोच को भी उड़ा रही थी। कॉफी खत्म होते ही एक नजर किरण और उसकी मंडली पर डाल सोनम कैफे से बाहर आ गई।

और बताओ सोनम क्या हाल चाल है? तुम्हारे ही मजे हैं सोनम, एक हमें देखो नौकरी भी करो, घर का काम भी देखो। गृहिणी की एकदम टिप टॉप मस्त ज़िंदगी होती है। जब मन करे टीवी के सामने बैठ जाओ, जब मन करे सो जाओ। जब मन करे…

क्या जब मन करे भाभी, छुट्टी के दिन भी ऑफिस का नाम लेकर सहेलियों के साथ दावत कर सकती हैं। शॉपिंग, सिनेमा जा सकती हैं। आश्चर्य ना करें भाभी, मैं अपने बेटे संगम को लेकर डॉक्टर के पास गई थी तब आप मॉल के आगे फोटो सेशन करा रही थी, वो भी छः बजे के बाद। हमें तो कहीं जाने से पहले कुछ करने से पहले सबकी आज्ञा चाहिए होती है। और उस दिन भाभी शॉपिंग कर रही थी, संभवतः आधे दिन की छुट्टी लेकर और दो तीन महीने पहले अपनी महिला मंडली के साथ सिनेमा हॉल से निकल रही थी।

हम गृहणियों को तो हर बात की जानकारी देनी होती है। आपलोग तो अपनी इच्छानुसार घरवालों को अपने कार्यक्रम की जानकारी देती होंगी। कल तो शनिवार था ना भाभी, कहाॅं कौन सी मीटिंग हो रही थी, मैंने देखा भाभी। लेकिन आपकी जिंदगी है, जैसे चाहे जिएं सोचकर सारी बात वही छोड़ आई और आप हैं की। थकान भी तो आपलोग का अमोघ अस्त्र होता है, है ना भाभी। जब आपको लगता है कि हमारा जीवन ज्यादा टिप टॉप वाला है तो नौकरी छोड़ दीजिए ना भाभी। सोनम का धैर्य आज जवाब दे गया और बिना सोचे  जबान की तरकश में वाणी के जो तीर उसे मिल रहे थे, वो चला रही थी।

हाहाहा… सोनम अभी बोल ही रही थी कि अंदर से ठठ्ठा कर हॅंसने की आवाज ने दोनों को उधर ही देखने पर मजबूर कर दिया।

तब किस बात का नारीवादी झंडा उठाए चलती हैं नारियाॅं, तब से सुन रही हूं एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए जा रही हो। इतने इल्जाम समाज लगाए तो झंडा लेकर निकल पड़ोगी और खुद ही एक दूसरे को कमतर बता रही हो। तुम्हीं बताओ किरण तुम सब कुछ आराम से कर पा रही हो क्योंकि तुम्हारे घर पर एक गृहिणी तुम्हारी सास भी हैं और तुम सोनम यदि अभी अवसर मिले तो यकीनन नौकरी तुम्हारी प्राथमिकता होगी और होनी भी चाहिए। 

प्रश्न ये है कि किसका जीवन ज्यादा अच्छा? तो उत्तर यही है कि अपनी अपनी जगह पर दोनों के जीवन में कठिनाइयों का रेला होता है और आपसी समझौतों से ही इसका समाधान मिल सकता है। जब पढ़ी लिखी औरतें ऐसे सवालों में ही उलझी रहेंगी तो जो औरतें सत्य ही मजलूम हैं, उनका क्या होगा? होना तो ये चाहिए कि हर चुनौती का सामना एक दूसरे के हाथों में हाथ कर करो और एक नए सफर की शुरुआत के लिए हमेशा तत्पर रहो, बिना किसी आक्षेप के। 

ये सोनम की सासू माॅं थीं, जो दोनों के बहस से कमरे से निकल आई थी और दोनों को दर्पण दिखाने का कार्य कर रही थी।

जी आंटी, आप सही कह रही हैं, इसकी शुरुआत मैंने की थी। किरण की आँखों में शर्म और दुःख दोनों दिख रहे थे। मैं ही जब तब इसके गृहिणी होने का मजाक बना बैठती थी।

मुझे भी माफ करें भाभी, घर बाहर संभालने के बाद आपकी भी कुछ समय अपने लिए चाहिए होता होगा, जो मुॅंह में आया , मैं बोलती चली गई। सोनम भी अपने तीरों को याद कर दुखित होकर कहती है।

“बेटा अपने अनुभव से एक ही बात कहूंगी, सभी कठिनाइयों का सामना करना ही जीवन की सच्ची कला है। किसी पर इल्जाम लगाने या तुलना करने में समय बर्बाद करने के बदले खुद में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास करना चाहिए। तभी औरों में भी सकारात्मक प्रभाव डाल सकोगी। वो कहते हैं ना कि आप सुखी तो जग सुखी, बस इसी तर्ज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।” सोनम की सासू माॅं किरण भाभी और सोनम को बेहद प्यार से देखती हुई कहती हैं। “

अच्छा, अब चलो, बैठो, तुमदोनों की चाय ठंडी हो गई होगी, जाओ गर्म कर लो और इसके धुंआ में अपनी नकारात्मकता को धुंआ धुंआ कर दो।” सासू माॅं की बात पर सोनम और किरण एक साथ हॅंसती हैं। इस हॅंसी में दोनों के एक नए संबंध की शुरुआत थी, जिसमें आरोप प्रत्यारोप स्वाहा होता नज़र आ रहा था।

आरती झा आद्या

दिल्ली

(gkk_M)

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