आपको तो अपनी बहू की अच्छाई के आगे कुछ दिखता ही नहीं है मां, आप क्यों नहीं समझ रही हो क्या जरूरत है मकान भैया के नाम करने की , एकमात्र यही पूंजी है आपके पास पापा की दी हुई आपके बाद सब कुछ वैसे भी भैया भाभी का ही है मगर अपने जीते जी अपने हाथ पैर क्यों काट रही हो मैं कब कह रही हूं भैया भाभी आपका ध्यान नहीं रखते मगर समय का कोई भरोसा भी नहीं है। इसीलिए कह रही हूं
अपने पापा की मृत्यु के एक साल बाद शुभांगी अपने मायके रहने के लिए आई थी
अभी पिछले साल ही एक लंबी बीमारी के चलते उसके पापा की मृत्यु हो गई थी, यूं तो बीच में एक दो चक्कर लगा था लेकिन सुबह से शाम तक के लिए ही आ पाई थी, इस 1 साल में कितनी कमजोर हो गई थी सावित्री जी अपनी मां के गले लगकर फूट-फूट कर रो पड़ी थी शुभांगी
बहुत कुछ बदल जाता है जीवन साथी के न रहने पर वह घर जिसमें अपने पति के साथ नए जीवन की शुरुआत करी थी अब उन्हें वही पराया सा लगने लगा था जैसे अपनी कोई जिंदगी ही ना रह गई हो, वह भी तू कितनी अकेली सी महसूस कर रही थी अपने पापा के बिना अपने आप को
भाई गोविंद और भाभी निशा ने
उसे प्यार से समझाया अरे पापा नहीं है तो तेरा बड़ा भाई और भाभी तो है तेरे लिए ,पापा का हर फरज निभाऊंगा तू क्यों चिंता करती है , शुभांगी ने देखा घर का पूरा नक्शा ही बदल चुका था वह कमरा जो मम्मी पापा का हुआ करता था अब भाभी ने अपने बच्चों का बना दिया था
मां बच्चों के कमरे में आ गई थी
एक दीवान , दो कुर्सी एक मेज और, दीवार में ही फिक्स एक बड़ी सी अलमारी में मां की, जरूरत का सारा सामान आ गया था, सामने दीवार पर एकू एलसीडी लगी थी जैसे माँ की सारी दुनिया इसी कमरे में सिमट आई हो, शुभांगी को यह सब देखकर बिल्कुल अच्छा नहीं लगा जब से वह पैदा हुई थी अपने मम्मी पापा को उसी कमरे में देखा था,
मां को कहीं और नींद ही नहीं आती थी शुभांगी से रहा नहीं गया उसने अपनी भाभी से कह दिया भाभी आपने मां का कमरा यहां क्यों बना दिया ,निशा बोली दीदी बच्चे बड़े हो रहे हैं दोनों बच्चों को यह कमरा छोटा पड़ता था मम्मी जी ने ही कहा था। हां बिटिया तेरी भाभी से मैंने ही कहा था, अब मेरा क्या रह गया है जिंदगी का समय पूरा करना है कहीं भी रह सकती हूं कहते-कहते गला भर आया सावित्री जी का, शुभांगी चुप हो गई थी।
मगर पहले जैसा कुछ भी नहीं था शुभांगी ने पिछले चार-पांच दिन में महसूस कर लिया था नाश्ते के टाइम नाश्ता और खाने के समय खाना मिल जाता था माँ को इसके अलावा ना बच्चे पास बैठते थे और भाभी तो मतलब ही नहीं रखती थी भैया जरूर थोड़ी बहुत देर के लिए मां के पास बैठ जाते थे जिस समय उन्हें सबके साथ की जरूरत थी वह बिल्कुल अकेली पड़ती जा रही थी
शुभांगी ने सावित्री जी से कहा मां आपने अपना कमरा बच्चों को कैसे दे दिया उस कमरे में आपकी और पापा की कितनी यादें हैं। सावित्री की बोली देख बेटा मुझे तो अपना बुढ़ापा काटना है मैं नहीं चाहती मेरी वजह से मेरे बच्चों को कोई परेशानी हो वैसे भी तेरी भाभी मेरा बहुत ध्यान रखती है किसी काम को हाथ नहीं लगाने देती,
मेरा क्या है मुझे तो दो रोटी खानी है समय पर मिल जाए वही बहुत है, शुभांगी को सब कुछ ठीक होते हुए भी कुछ कमी लग रही थी उसे अपने पापा की बहुत याद आ रही थी, जब उसे पता चला सावित्री जी ने अपना मकान अपने बेटे के नाम कर रहीहै इसी बात पर वह अपनी मां से बहस कर रही थी ऐसा नहीं था कि सावित्री जी अपनी बहू के बदलते व्यवहार से अपरिचित थी लेकिन फिर भी यही सोच कर चुप थी कि उनकी बेटी परेशान ना हो।
शिवांगी और सावित्री जी की बातें उनकी बहू के कानों में भी पड चुकी थी, निशा ने शुभांगी से गुस्से में कहा दीदी आपका हमारे घर के मामलों में बोलने का कोई हक नहीं बनता आपकी मां का ध्यान भी मैं ही रखती हूं आपको भी शायद मकान का लालच आ गया है इसीलिए आप मम्मी जी को हमारे खिलाफ भड़का रही हो
मम्मी जी का सारा खर्च हम लोग ही तो उठाते हैं अगर इतना ही प्यार उमड रहा है तो अपनी मां को अपने साथ क्यों नहीं रखती
सही कहा भाभी आपने मुझे अपनी मां की जिम्मेदारी उठानी ही चाहिए मैं अपनी मां को अपने साथ लेकर जाऊंगी इतना सुनकर अब तक चुप खड़े उसके भाई गोविंद के पैरों तले जमीन खिसक गई। अगर शिवांगी मां को अपने साथ ले गई तो समाज मे मेरी क्या इज्जत रह जाएगी लोग यही कहेंगे कि बेटे के होते हुए बेटी के साथ मां रह रही है ।
पिता के मरते ही बेटे पर मां भी नहीं रखी गई, अपनी बहू बेटे का यह रूप देखकर सावित्री जी दंग रह गई उन्होंने अपने जीते जी अपने मकान को किसी को भी न देने का निर्णय ले लिया उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी पति के मरने के बाद ये दिन भी देखने पड़ेंगे, क्या जिनके मां-बाप के पास कुछ पूंजी नहीं होती वह बच्चों पर बोझ बन जाते हैं।
गोविंद को अपनी गलती समझ में आ गई थी उसने नहीं ध्यान दिया मां को पिता के बिना उसके सहारे की कितनी जरूरत है। शुभांगी ने अपने भाई से कहा भैया मुझे मकान में कोई हिस्सा नहीं चाहिए मैं तो केवल इतना चाहती हूं मेरी मां का बुढ़ापा अच्छे से गुजर जाए, । इस उम्र में तो एक दिन सबको आना है आप हो मैं हूं या भाभी कोई भी हो कहानी तो वही रहती है केवल किरदार बदलते हैं जैसा हम अपने मां-बाप के साथ करेंगे बच्चे भी हमारे साथ वही करते हैं
शुभांगी निशा के हाथ पर हाथ रखकर बोली भाभी आप जैसी थी वैसी ही रहो माँ आपसे बहुत प्यार करती हैं, मैं कभी तुम्हारे सास बहू के बीच में नहीं पडू गी बस मुझे मेरे मायके में थोड़ा सा स्नेह और प्यार चाहिए। मेरी कोई बात अगर आपको बुरी लगी हो तो मैं माफी चाहती हूं निशा की आंखों में भी आंसू आ गए उसने शुभांगी को गले से लगा लिया।
पूजा शर्मा स्वरचित