आपको तो अपनी बहू की अच्छाई के आगे कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता है – ऋतु यादव : Moral Stories in Hindi

प्रतीक्षा और मुकुंद दोनों कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे, वहीं एक दूसरे को पसंद करने लगे। यह बात जब मुकुंद ने घर आकर अपने माता पिता को बताई,तो उनका कहना था, हम इस पर लड़की के परिवार वालों से मिलकर विचार करेंगे।

वैसे तो मुकुंद के माता-पिता करुणा व अनुमोदन जी दोनों ही आधुनकि विचारों के थे, परन्तु जब बात जब बच्चों की आती है तो हर माता पिता थोड़ी जांच परख तो करना ही चाहते हैं।वैसे भी मुकुंद उनका इकलौता बेटा होने के साथ नाते रिश्तेदारों में सबसे पढ़ा लिखा, होनहार और ज्यादा कमाने वाला लड़का था। जिसपर खासतौर से करुणा जी बड़ा गर्व महसूस करती थी।

बात जब प्रतीक्षा के परिवार से मिलने जाने की हुई तो,करुणा जी ने इतवार का दिन निश्चित कर दिया।आखिर तय दिन वे प्रतीक्षा व उसके परिवार से मिलने गए।कुल मिलाकर उन्हें प्रतीक्षा ठीक लगी पर करुणा जी ने महसूस किया कि प्रतीक्षा का परिवार काफी खुले विचारों का था, खासतौर से प्रतीक्षा की मां जो चौड़ी बिंदी, आधुनिक कुर्ती पैंट में बिना चुन्नी के बन ठनकर तैयार होकर बैठी थी। वहीं करुणा जी सीधी सरल, घरेलू महिला थी जिनने ने नौकरी भी मुकुंद के पालन पोषण के लिए छोड़ दी थी।

चाय पानी के बाद प्रतीक्षा की मां का कहना था, देखिए बहनजी मैंने प्रतीक्षा को कभी ज्यादा रोका टोका नहीं, न ही हमारे घर में गृह कार्यों को लेकर ये तय है कि रसोई का काम महिलाओं का ही है,बल्कि प्रतीक्षा के पापा आज भी मुझसे बेहतर खाना बनाते हैं। मैं भी चूंकि वर्किंग हूं तो हमारे यहां सब काम मिलजुलकर ही करने का नियम है। बाकि हमें प्रतीक्षा ने बताया है कि ये और मुकुंद एक दूसरे को पसंद करते हैं पर फिर भी मैं कहूंगी,आप मुकुंद के माता पिता हैं तो सोच समझकर फैसला लीजिए, और हम भी इस विषय में विचार विमर्श कर आपको बता देंगे। 

कहने को बात कुछ भी नहीं थी पर करुणा जी को ये बात खटक गई,उन्हें लगा इनमें तो लड़की वालों वाली कोई बात ही नहीं है। हम इनके घर चलकर आ गए, इसका मतलब ये थोड़ी न है कि ये हम पर हावी रहेंगे।औपचारिकता के बाद करुणा जी और अनुमोदन घर आ गए,तब भी करुणा जी उखड़ी सी ही थी।

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तभी उनकी बहन मोहिनी का फोन आ गया, और उसने कहा “जीजी ,अपने मुकुंद के लिए बहुत अच्छा रिश्ता आया है,मेरी नंनद की बेटी का, कहो तो बात आगे बढ़ाऊं।”करुणा जी तो जैसे भरी ही बैठी थी,जो कुछ उन्हें महसूस हो रहा था,सब बता दिया मोहिनी को।मोहिनी भी कहां कम थी, बोली “जीजी ऐसे तो हमारा मुकुंद हमेशा ही ही दबेगा लड़की वालों से,कोई और देख लो और हमारे मुकुंद में कोई कमी है क्या, लाखों में एक है..लाइन लगी है रिश्ते वालों की। 

अब तो करुणा जी ने मन बना लिया था कि प्रतीक्षा को तो वे अपनी बहू बनाकर लाने से रही। पर कहते हैं न रिश्ते नाते सब ऊपर से तय होकर आते हैं। वैसे भी आजकल बच्चों के सामने कहां मां बाप की चलती है।न नुकर के बाद भी प्रतीक्षा- मुकुंद की शादी हो गई। 

शादी में मोहिनी को तो आना ही था,शादी के बाद रस्मों के लिए वे रुक भी गई।शादी के दूसरे ही दिन परिवार की सभी औरतें मुंह दिखाई की रस्म के लिए बैठी थी। तभी मोहिनी मुंह दिखाई कर बोली “ये लो बहू रानी हमारी तरफ से नेग,वैसे तो हमारे मुकुंद के बहुत रिश्ते आए,पर कहते हैं न तुम्हारा संयोग था वरना जीजी को तो ये रिश्ता कम ही जंच रहा था।”

उसी दिन से प्रतीक्षा को मुंहफट मोहिनी मौसी कम ही पसंद थी।जब भी पारिवारिक समारोह में मिलना होता, बस पैर छू भर दूर हो जाती।वैसे भी मोहिनी मौसी के शौकों में शुमार था, कमियां निकालना और बातें इधर उधर करना।मोहिनी मौसी भी न जाने क्यों कटाक्ष कोई मौका न छोड़ती, कभी कहती “हाय री प्रतीक्षा!! तुम्हारे तो भाग्य खुल गए जो मुकुंद जैसा पति और जीजी जैसी सास मिल गई, वरना पता चलता तुम्हें। कभी उसकी शक्ल- सूरत को लेकर, हमारा मुकुंद तो इक्कीस है, प्रतीक्षा से।इन सब पर प्रतीक्षा झेंप तो जाती पर कहती कुछ नहीं। एक तो नई शादी ऊपर से मोहिनी उसकी सास की बहन होने के साथ- साथ प्रिय सहेली भी थी।

शादी को साल भर हो गया था, प्रतीक्षा परिवार में घुल मिल गई थी,बोलती कम ही थी पर कोशिश करती थी कि ऑफिस के अलावा घर और बाहर के काम करुणा जी के कहे अनुसार करे।अपनी राय कभी रखनी भी होती तो बड़े नरम लहज़े में रखती। करुणा जी भी सरल महिला थी,ज्यादा टोका- टोकी उनके स्वभाव में न था। पर प्रतीक्षा का उनसे अधिक बात न करना, उन्हें खलता,इसका एक कारण ये भी था कि वर्क फ्रॉम होम होने के कारण प्रतीक्षा घर में ही रहती थी।

एक दिन प्रतीक्षा ने सुना कि वे ऐसे ही फोन पर मोहिनी को भी कह रही, “क्या करूं सारा दिन घर में अकेली रहती हूं, बहू का तो होना न होना बराबर है, काम कर अपने कमरे में ही रहती है।उधर से मोहिनी ने भी कुछ कहा होगा जो वह सुन नहीं पाई। नए रिश्तों में इतना ही विश्वास पनपा होता है, प्रतीक्षा अब और कटी कटी रहती। बात आई गई हो गई, प्रतीक्षा भी परिवार में धीरे धीरे रच बस रही थी,फिर मुकुंद उसे बहुत प्यार करता था।

एक दिन बारिश का मौसम था, करुणा जी घर में ही फिसल कर गिर गई और उनका पैर फ्रैक्चर हो गया।किसी तरह पड़ोसियों को बुलाकर, प्रतीक्षा उन्हें अस्पताल ले गई, ऑपरेशन कराया। खाने पीने, दवाइयों सबका ख्याल रखती, एक नर्स भी रख ली थी, क्योंकि प्रतीक्षा का ऑफिस का काम भी घर से ही था।मगर हां!इस दौरान प्रतीक्षा और करुणा जी के रिश्ते में अपनापन और समझ बढ़ गई थी। करुणा जी को भी समझ आ गया था कि प्रतीक्षा स्वभाव से ही अंतर्मुखी है, वैसे बहुत जिम्मेदार और समझदार है।

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सुबह सबका नाश्ता, करुणा जी का नहलाना धुलाना, खाना, दवाई नर्स की सहायता से कर वो दस बजे अपना लैपटॉप लेकर कमरे में बैठ जाती। एक दिन जब वह ऑनलाइन मीटिंग खत्म कर कमरे से निकली तो उसे मोहिनी मौसी की आवाज सुनाई दी।उनके आने से वैसे ही प्रतीक्षा असहज हो जाती थी तो फटाफट उठकर सास के कमरे की तरफ जाने लगी पर बात सुनकर ठहर गई।मोहिनी, “ जीजी देख लिया, लव मैरिज वाली बहू!!अकेली पड़ी हो नर्स के सहारे कमरे में, लावारिसों की तरह, बीमारी में भी बहू पास बैठकर न बतियाती“।

अब बारी करुणा जी की थी। वही सुनना चाह रही थी प्रतीक्षा कि सासू माँ क्या कहती हैं? करुणा जी बोली, “देख छोटी मेरा पैर टूटे बीस दिन हो गए हैं, और अब काफी ठीक है। मैं खुद बैठ जाती हूं। इस दौरान प्रतीक्षा ने मेरा बहुत ख्याल रखा है, तभी तो मैं इतना जल्दी ठीक हो गई, वरना इस उम्र में कुछ टूटकर कहां जुड़ना आसान है और जहां तक बात नर्स की है,अगर मेरा बेटा बहू रख सकते हैं तो क्यों न रखें, बात तो सिर्फ सहूलियत की है।रही बात ,बात करने की तो हां बोलती कम ही है प्रतीक्षा, पर सही भी है देखो न ऐसे बिना सिर पैर पूरा दिन बोलने का भी क्या फायदा, और तू भी थोड़ा कम ही बोला कर, पता चला कल को तेरे बहू आए तब भी तू ऐसे ही उल्टा सीधा बोलकर रिश्ते खराब कर ले।

अब मोहिनी बोली, “लो जीजी! बहू ने थोड़ा ख्याल क्या रख लिया, तुम्हें तो अपनी बहू की अच्छाई के आगे कुछ दिखता ही नहीं, तुम तो मुझे ही ज्ञान देने लगी।ऐसे तो बहू हाथ से निकल जाएगी, फिर मुझे न कहना” 

अब बारी मुस्कुराने और सहजता की प्रतीक्षा की थी, जिसके मन में सुकून,शांति और सास के प्रति प्रेम व सम्मान आज बढ़ गया था। वो रसोई में गई पानी लेने, और पानी देकर पैर छूते हुए बोली, “मौसीजी मैं तो कितने दिनों से आपका इंतेज़ार कर रही थी कि आप मम्मीजी का हाल चाल पूछने आएं और इसी बहाने आपसे मिलना भी हो जाए और मम्मीजी का भी दिल बहल जाए, बताइए चाय पीयेंगी या खाना खाएंगी।

तभी करुणा जी बोल पड़ी, “नहीं बेटा कुछ नहीं,तुम सुबह से काम में लगी हो, कभी घर कभी ऑफिस,तुम थोड़ा आराम कर लो,तब तक हम दोनों बहनें तुम्हारी चुगली कर लेते हैं और सब ठहाका मारकर हंसने लगे।

आज प्रतीक्षा भी खुलकर हंस रही थी, जाते जाते बोली “मम्मीजी,जारी रखिए। मैने आपके और मौसीजी के पसंदीदा दही भल्ले ऑर्डर कर दिए हैं, आएं तब तक मैं एक ऑफिस कॉल लेकर आती हूं।

 

“ऋतु यादव, रेवाड़ी (हरियाणा)”

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