” आपको बहू नही चलता-फिरता रोबोट चाहिए, ” सुधा अपनी दादी सास से कह रही थी।सुधा एक पढ़ी लिखी लड़की थी और सी.ए.थी। वो एक बड़ी कंपनी में कार्यरत थी।उसको अपने साथ ही काम करनेवाले माधव से प्यार होगया।दोनों एक साथ टाइम बिताने लगे।कभी कनाट प्लेस जाते,कभी किसी मॉल में घूमने चले जाते और धीरे धीरे ये दोस्ती एक रिश्ते में बदलने को तैयार होगई। माधव और सुधा परिणयसूत्र में बंध गए।
माधव संयुक्त परिवार में रहता था।उसके छोटे भाई बहन थे।दादी थीं जो बड़े कड़क स्वभाव की थीं।सुधा और माधव ने एक महीने की छुट्टी ली थी, अब उन दोनों की छुट्टियाँ खत्म होरहीं थी।
अब सुधा ने अपने आफिस की तैयारी शुरु करदी। एक दिन बाद उसे अपने आफिस जाना था।दादी ने रात में ही सुधा को अपने कमरे में बुलाया और कहा कि,” बहुरिया– अब कल से तुम्हारे आफिस शुरु हो जायेंगे तो मेरी एक बात सुनलो– कल सुबह जल्दी उठकर सब नाश्ता वगैरा बना देना और दोपहर के खाने की तैयारी करके जाना जिससे कि लंच की छुट्टी में फटाफट खाना बन जाए,
” सुधा शांति से सुनती रही और उसने वैसा ही किया जैसा दादी ने उससे कहा था।अब तो दादी रोज ही एक नया काम बता देती– कभी कहती कि,” जरा चाय दे देना बहुरिया,” कभी कहती कि,” थोड़ा सा हलवा बनादेना” खूब परेशान करतीं।दादी के साथ और लोग भी कुछ ना कुछ फर्माइश करते।कभी छोटी ननद कहती कि, “भाभी जरा मेरा नाश्ता देना”–अब सुधा परेशान रहने लगी क्योंकि उसकी ऊँची पोस्ट थी– उसका काम भी ज्यादा था।अब वो परेशान रहने लगी।अब माधव भी उसको ज्यादा सपोर्ट नही करता।
सुधा यदि कुछ कहती तो वो कहता, ” अरे डियर– आफिस में तो बैठी ही रहती हो– इस बहाने कुछ तुम्हारी एक्टिविटी होजाती है,” अब सुधा क्या करे– किससे कहे– आखिर उसने कुछ निर्णय लिया।
सुधा थोड़े दिन शांत रही।फिर एकदिन उसका धैर्य जबाब देगया।उसने माधव और अपनी दादी सास से कहा कि,” आपको बहू नही एक चलता फिरता रोबोट चाहिए था जो आपके इशारों पर नाच सके– आपकी दिन-रात जी हजूरी करै और नौकरी करके आपको पैसा भी दे– अपने लिए ना जिये– माधव भी आप ही की तरह निकला– उसने शादी के बाद मुझे अपनी जायदाद समझा कि जो वो और आप कहें मैं करूँ– लेकिन मैं अब और नहीं सहूँगी– मेरा अपना वजूद है– मैं नौकरी करती हूँ–
हर चीज कायदे में हो तो ठीक लगती है किंतु यदि हद से ज्यादा हो तो उस चीज को– उस रिश्ते को छोड़ना ही बेहतर है– मैं अब माधव के साथ नही रह सकती क्योंकि जो आदमी अपनी औरत का मान सम्मान नही रख सकता– ऐसे आदमी से अलग रहना ही बेहतर है,” और सुधा अपने मैके आगई।
सुधा के जाते ही सबको आटे दाल का भाव पता लग गया।सबको कामचोर की आदत जो पड़ गई थी।सबकी अक्ल एक महीने में ही ठिकाने लग गई– माधव को भी अपना गलती का अहसास होगया। वह सुधा को मनाने उसके घर गया और भविष्य में फिर कभी ऐसी गलती ना होने का आश्वासन दिया। सुधा– नारी हृदय था– पिघल गई और अपनी ससुराल लौट आई। अब पूरे परिवार ने उसे सहयोग देना शुरु करदिया। सास उठकर सबकी चाय बना देती तो सुधा फटाफट नाश्ता बना देती।दादी सास भी अब सुधर गई। वो भी बेकार की फर्माइश अब नही करती।ननद और देवर भी सुधा का काम में हाथ बटाने लगे–
सबलोग बड़े प्रेम से रहने लगे और एक दूसरे की हैल्प भी करते।सुधा आफिस जाती तो पीछे उसकी सास सब काम देख लेती और नौकरों से करा लेती और जब सुधा आती तो वह भी अपने हिसाब से काम करती।अब वो एक रोबोट नही थी कि सबके आदेश पर पूरा काम करे। अब सुधा बहुत खुश थी।माधव भी सुधा का बहुत ध्यान रखने लगा।परिवार में एक हँसी खुशी का माहौल छागया।सुधा एक नारी थी जो एक नौकरीपेशा भी थी– एक पत्नी थी– एक बहू थी– भाभी थी जो अब सबसे प्रेम करती और सब उससे।
ये कहानी यही संदेश देती है कि परिवार को टूटने से बचाना है तो नयी आई लड़की का भी ध्यान रखना होगा– वो कोई यंत्रचालित रोबोट नही है कि अपने आफिस में भी काम करे और घर पर भी पूरा काम करे–उसकी अपनी भी सीमायें हैं– भावनायें हैं– उसका भी आदर करिये– तभी वह भी आपका आदर करेगी– आपको अपना समझेगी– परिवार टूटने से बच जायेगा।।
लेखिका: डॉ आभा माहेश्वरी अलीगढ
#आपको बहू नही चलता फिरता रोबोट चाहिए