Moral stories in hindi : रंजन बेटा उठ जा चाय तैयार है, विमलेश जी ने अपने बेटे को आवाज लगाई, पर वो बिस्तर पर बेसुध सा पड़ा हुआ था।
रात को तीन बजे घर आयेगा तो सुबह सात बजे कैसे उठेगा? तुम्हें मना किया था, इसके लिए चाय बनाई ही क्यों? रंजन के पापा चिल्लाकर बोल रहे थे।
मुझे लगा कि ये आपके साथ फैक्ट्री चला जायेगा, सुबह से रात तक आप अकेले ही संभालते हो, अब जवान बेटा बिस्तर पर पसरा हुआ है और आप फैक्ट्री में मेहनत करते हैं ये तो ठीक नहीं है, विमलेश जी रोज की तरह बस बड़बड़ करके रह गई।
तुम बड़बड़ कर लो और मै कितना भी चिल्लाकर बोल लूं, पर इस नालायक पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, ये तो काम करने की उम्र में बिस्तर तोड़ रहा है, जाने कब सुधरेगा? कब सीधा होगा ? अभी तो हम दोनों की छाती पर मूंग दल रहा है, कैलाश जी फिर से बोले।
ओहहह!! अब चुप भी करो, बेकार ही आप अपना बीपी बढ़ा रहे हो, इसके तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, ईश्वर ने एक ही बेटा दिया है और वो भी ऐसा निकला, ना बहन की परवाह है ना ही अपने मम्मी-पापा से इसे कोई लेना-देना है, जाने कौनसे दुष्कर्म किये थे जो हमें ऐसी औलाद मिली है, औलाद से सुख तो नहीं मिला पर रोज इसके कारण दिल छीजता है, नाक में दम कर रखा है, इसने तो अपने कारनामों से हमारा नाम डुबो दिया है, बेटे तो कुलदीपक होते हैं, घर परिवार की प्रतिष्ठा को बढ़ाते हैं, माता-पिता का नाम ऊंचा करते हैं, पर इसने तो खानदान की इज्जत की धज्जियां उड़ा दी है, हर आने-जाने वाला, पड़ोसी और रिश्तेदार हमें टोकते हैं कि आपका बेटा रंजन कोई काम क्यों नहीं करता? अरे! कुछ ना करें कम से कम पापा की कंपनी ही संभाल लें।
विमलेश जी भी तेज आवाज में बोलकर रह गई, कैलाश जी जाने लगे तो रंजन गुस्से में उठकर बोला।
आप दोनों को समझ में नहीं आता है क्या ? जब भी कोई सोये तो घर में शांति रहनी चाहिए, इतनी देर से घर आता हूं, आंखों में नींद भरी होती है और आपकी चिक-चिक शुरू हो जाती है, आप दोनों को रोज सुबह ईश्वर का नाम लेना चाहिए, बेकार ही मुझे मुद्दा बनाकर लड़ते रहते हो, और कोई काम नहीं है क्या?
कंपनी पापा संभाल तो रहे हैं, मुझे जाने की क्या जरूरत है? घर में पैसा आ तो रहा है।
हद हो गई बदतमीजी की, कोई अपने से बड़ों को ऐसा बोलता है क्या? तुझे हमने संस्कार भी दिये थे, बड़ो की इज्जत करना भी सिखाया था, पर तूने तो सब मिट्टी में मिला दिया। रात को देर से आता है, ना ही कभी फैक्ट्री जाता है, बस दोस्तों के साथ खाली सड़कों पर समय बर्बाद करता है, तू कुछ करेगा नहीं तो तेरी शादी कैसे करेंगे? अपने भविष्य के बारे में कुछ सोचा है, कैलाश जी झल्लाकर बोले और चले गए।
मम्मी, ये पापा हर दिन सुबह गुस्सा करते हैं, अपने साथ में मेरा भी मूड खराब कर देते हैं, आप समझाती क्यों नहीं हो, रंजन बिस्तर से ही बोला।
हां, बेटा अब हम दोनों को ही समझना होगा क्योंकि तू तो अपनी जिम्मेदारी समझना ही नहीं चाहता है, और तुझे समझाते -समझाते एक दिन हम दोनों ही इस दुनिया से चले जायेंगे फिर तू अकेला समझते रहना, विमलेश जी भरे गले से बोली।
ये रोज-रोज मेरे सामने रोने का नाटक मत किया करो, अरे ! बुढ़ापे में काम करोगे तो हाथ-पैर चलते रहेंगे, वरना अभी से बिस्तर पकड़ लोगे, और मेरी तो अभी मौज मस्ती की उम्र है। अभी से मै कमाकर क्या करूंगा? आप और पापा मेरे लिए कमा रहे हो, फैक्ट्री तो है ही जब मन किया चला जाऊंगा, ये कहकर रंजन बिस्तर पर ही सोता रहा और मोबाइल देखने लग गया।
विमलेश जी और कैलाश जी के दो बच्चे हैं, बड़ी बेटी मुक्ता की वो शादी कर चुके हैं और उससे छोटा रंजन पढ़ाई पूरी कर चुका है पर उसे अपने करियर और घर परिवार की जरा भी फ्रिक नहीं है, वो कोई नौकरी भी नहीं करना चाहता और ना ही कैलाश जी के साथ जाकर उनकी फैक्ट्री में मदद करता था, अपनी बहन मुक्ता की भी कोई जिम्मेदारी नहीं उठाता था, उसके ससुराल भी कैलाश जी ही आते-जाते थे, उसे अपने शौक और दोस्तों से मतलब था, देर रात तक पार्टी करना और पार्टी में जाना उसे पसंद था, सुबह देर तक उठता नहीं था, ना उठने का समय था, ना ही खाने-पीने और नहाने का, इसी बात से दोनों पति-पत्नी परेशान रहते थे, अपने बेटे की भी वो शादी करना चाहते थे पर ऐसे आवारा और नालायक के साथ कौनसी लड़की शादी करेगी?
दोनों इसी चिन्ता में घुले रहते थे, रंजन अपनी दीदी मुक्ता की भी बात नहीं मानता था, उसका ससुराल भी दूर था और वो कभी-कभी फोन पर रंजन को समझाती थी पर रंजन ये कहकर चुप करा देता था कि आप अपना घर संभालो, हमारे घर को हम देख लेंगे, अपने भाई की हरकतों की वजह से उसने भी उससे बात करना कम कर दिया था।
रंजन की शादी की उम्र हो चली थी, विमलेश जी उसकी शादी करके चिंतामुक्त होना चाहती थी, पर उसके लिए कोई रिश्ता समझ नहीं आ रहा था, लड़की वाले रंजन को देखकर ही मना कर जाते थे, आखिर कौन अपनी बेटी को ऐसे लड़के के साथ बांधना चाहेगा?
एक दिन विमलेश जी ने रंजन के दोस्त से बात की और पता लगाया कि कहीं रंजन किसी लड़की को पसंद तो नहीं करता है? उसके दोस्त ने उन्हें काजल के बारे में बताया, जो उसी के कॉलेज में पढ़ती थी, कैलाश जी और विमलेश जी ने काजल के घर रिश्ता भिजवा दिया।
एक ही बेटा, घर का मकान और जमी जमाई फैक्ट्री देखकर उसके घरवालों ने हां कर दी, काजल भी रंजन को जानती थी पर अब वो किस तरह का हो गया है वो नहीं जानती थी, इसलिए उसने भी हां कर दी।
अपने पसन्द की लड़की मिलने से रंजन खुश था, और दोनों की शादी हो गई।
शुरू के रीति-रिवाजों में दो चार दिन निकल गये, अब रंजन रात को भी घर पर रहने लगा था, एक दिन सुबह काजल ने रंजन को जगाया और कहा, मैंने नाश्ता बना लिया है आप जल्दी से फैक्ट्री के लिए तैयार हो जाइये, पापाजी तो तैयार हो गये है।
फैक्ट्री….!!! रंजन चौंका, आज मन नहीं है।
आपको जाना ही पड़ेगा, पापाजी इस उम्र में काम करते हैं और आप घर पर बिस्तर पर रहोगे, ऐसा अच्छा नहीं लगता है।
रंजन काजल के कहने पर तैयार हो गया, और जाने लगा तो काजल ने फिर टोक दिया, अरे! मम्मी जी के पैर तो छूकर जाओं, घर से बाहर निकलते समय हमेशा घर के बड़ों का आशीर्वाद लेना चाहिए, रंजन ने काजल को देखा और अपनी मम्मी के पैर छूकर काम पर चला गया। इतनी संस्कारी बहू मिलने पर विमलेश जी ने ईश्वर को बहुत धन्यवाद दिया, आखिर ऐसी बहू जिसने बेटे को सही राह पर ला दिया और वो काम पर भी जाने लग गया।
शाम को रंजन फैक्ट्री से जल्दी आ गया और कहने लगा कि आज हम दोनों बाहर खाना खाने चलेंगे, तुम तैयार हो जाओं।
इस पर काजल कहती हैं कि आज नहीं, अब तो रात के खाने की तैयारी हो चुकी है, कल रविवार है और कल हम सब बाहर खाना खाने चलेंगे, मम्मी-पापा जी को भी आराम मिल जायेगा।
लेकिन, मम्मी -पापा क्यों जायेंगे ? वो घर पर ही बनाकर खा लेंगे, रंजन बोला।
नहीं, मै तो हमेशा अपने मम्मी-पापा के बिना कहीं नहीं जाती हूं, और आपके मम्मी-पापा भी बचपन में आपको छोड़कर कहीं बाहर नहीं गये होंगे!
फिर हम उन्हें इस उम्र में अकेला छोड़कर नहीं जा पायेंगे, रंजन को काजल की बात माननी ही पड़ी।
रंजन का व्यवहार धीरे-धीरे अपने मम्मी-पापा के प्रति बदल रहा था, अब वो जरा भी चिल्लाता तो काजल को देखकर चुप हो जाता था और अपने मम्मी-पापा की इज्जत करने लग गया था।
रंजन, हमने भगवान को तो कभी नहीं देखा है पर मम्मी पापा ही धरती पर हमारे लिए भगवान है, उन्होंने हमेशा हमें खुश रखा है, तुम अपने भगवान पर ऐसे कैसे चिल्ला सकते हो, जिस मां ने गोद में पाला , जिस पिता ने कंधों पर बिठाया उनका अपमान कैसे कर सकते हो?
जिन्होंने जन्म दिया,जीवन दिया चलना, लिखना पढ़ना सिखाया, उनके साथ ऐसा बुरा व्यवहार कैसे कर सकते हो?
घर में मम्मी -पापा खुश रहेंगे तो घर में भी बरकत ही होगी। रंजन अब काजल की बात भी समझने लगा था और अपने आपको बदल रहा था।
अगले दिन रंजन का फोन आया कि मै अपने कमरे के लिए एक टीवी बुक कर रहा हूं, तीन दिन बाद आ जायेगा।
लेकिन रंजन मुझे अपने कमरे में टीवी नहीं चाहिए, घर के ड्राइंग रूम में टीवी रखा तो है, काजल ने कहा।
हां, पर वो तो सब देखते हैं, हम दोनों को अकेले टीवी देखना हो तो क्या करें?
रंजन, टीवी सबके साथ मिलकर देखना भी अच्छा लगता है, आखिर इसी बहाने सब साथ में तो बैठते हैं, वरना मम्मी जी पापाजी अलग और हम कमरे में अलग, ऐसे थोड़ी अच्छा लगता है और काजल ने मना कर दिया।
एक दिन रंजन उतावला सा घर में आया और उसे कमरे में ले जाने लगा, आज बहुत बड़ी खुशखबरी है, आज फैक्ट्री में एक बहुत बड़ा सेठ आया था,उसने बहुत सारा सामान खरीद लिया, एक महीने की कमाई एक ही दिन में हो गई है।
हां, तो मम्मी जी के सामने बताओं, उन्हें भी बेटे की सफलता की खुशी होगी, खुशियां तो बांटने से बढ़ती है, मम्मी जी घर की बड़ी है, आपको पहले इन्हें बताना चाहिए, जैसे बचपन में स्कूल से आते ही आप सबसे पहले मम्मी जी को पुकारते थे।
अब क्यों नहीं बुलाते हो? ये सुनकर रंजन को पुराने दिन याद आ गये, और वो अपनी मम्मी के बरसों बाद गले लग गया और रोने लगा।
मम्मी, मुझे माफ कर दो, एक ही छत के नीचे बचपन भी बिताया है और अब बड़े होने के बाद भी यहीं पर रह रहा हूं, पता नहीं कैसे आपसे और पापा से दूर होता चला गया, पर आपने मेरी परवाह करना मुझे प्यार करना कभी नहीं छोड़ा। आपके गुस्से के पीछे भी मेरी ही भलाई छुपी थी, मैंने आपको कितना बुरा-भला कहा पर आपने हमेशा माफ किया, मम्मी -पापा आपने मेरी शादी उसी से कराई जिसे मै पसंद करता था, मै गलत रास्ते फर भटक गया था, मैंने तो आपका नाम डुबो दिया था, पर काजल की वजह से मुझमें समझदारी आई है, काजल से मेरी शादी करवाके आपने मेरी जिंदगी फिर से बना दी।
इतने में कैलाश जी मिठाई का डिब्बा लेकर आते हैं, आज तो बहुत सारा माल एक दिन में बिक गया है, ये सब तुम्हारे बेटे की समझदारी से संभव हुआ है।
पापा, ये सब आपकी बहू काजल की वजह से हुआ है, उसने ही इस भटके हुए को सही राह दिखाई और अपने प्यार से पूरे परिवार को एक कर दिया।
तभी घर के दरवाजे से मुक्ता अंदर आती है और रंजन दौड़कर अपनी दीदी के पैर छू लेता है, मुक्ता दीदी
आप मेरे बुलाने पर घर आई हो, लगता है आपने अपने छोटे भाई को माफ कर दिया?
हां, माफ कर दिया, क्यों कि मेरा भाई मेरे लिए इतनी अच्छी भाभी लाया है, जो मेरे हर सुख-दुख की साझेदार है, जिसने हमेशा मुझे बड़ी बहन समझकर मान दिया है, ऐसी भाभी सबको मिलें और मुक्ता ने काजल को गले से लगा लिया।
विमलेश जी की आंखें भर आती हैं, अपने बच्चों का प्यार देखकर उन्हें बहुत खुशी होती है, मेरे बच्चों ऐसे ही मिल जुलकर रहो, इसी से माता-पिता का मन खुश रहता है।
इस घर में काजल सचमुच एक देवी बनकर आई है, जिसने घर पर सुखों की बारिश कर दी है, आजकल के जमाने में बहू आती है तो बेटे को माता- पिता से दूर कर देती है, पर काजल ने तो मेरे बेटे को मेर पास ला दिया है, ईश्वर करें ऐसी बहू सबको मिलें।
काजल ने कभी रंजन के लिए मुझे उलाहना भी नहीं दिया, अपने आप ही सब देखा और समझा, अपने पति को काम पर लगा दिया और मुझे मेरे बेटे से फिर से मिला दिया, जो कुछ सालों से घर में होते हुए भी घरवालों से दूर ही था।
काजल तुम सचमुच भगवान बनकर हमारे घर में आई हो, जिसने हमारे सारे दुख हर लिये है, तुमने तो घर की और घरवालों की कायापलट कर दी, एक बेटे को उसकी जिम्मेदारी समझाई, एक पति को सही राह पर लाई, एक भाई को जिम्मेदार बनाया, पिछले जन्म में जरूर अच्छे कर्म किये होंगे जो इतना सुख देने वाली बहू मुझे मिली है।
तभी काजल बोलती है, मम्मी जी ये सब मैंने अपनी मम्मी से सीखा है, उन्होंने हमारे बिखरे परिवार को एक किया था, सब चाचा और ताऊजी के बीच के मनमुटाव दूर किये थे, उन्होंने आते वक्त भी मुझे यही सीख दी कि, लडकी को कैसा वर मिलेगा, कोई नहीं जानता पर जो भी मिले, उस पर रोने से अच्छा है कि परिस्थितियों को
अपने अनुरूप करने की कोशिश की जाएं, मैं तीन-चार दिन में ही रंजन का व्यवहार समझ गई थी, फिर मैंने ठाना कि मै रंजन को अपने प्यार से बदल दूंगी और अपने परिवार में खुशियां बिखेर दूंगी।
आपका जो बेटा आपका नाम डुबो रहा था, आज उसके ही नाम के हर जगह चर्चे हैं, आपको अपने बेटे पर अब तो गर्व होना चाहिए, जो फैक्ट्री की तरक्की के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे है।
विमलेश जी और कैलाश जी ने अपने बेटे -बहू को बहुत सारा आशीर्वाद दिया।
पाठकों, बेटे के जन्म के बाद सबको बहू का इंतजार रहता है, एक सुघड़ बहू घर में सुख शांति ले आती है,
परिवार में एकता बनायें रखती है, कुछ पत्नियां अपने पति को सुधार देती है, और उनकी वजह से नाम डुबोने वाले बेटे भी परिवार का नाम ऊंचा कर देते हैं।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
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