विगत पंख लगाकर फुर्र हो गया। गुजरे जमाने के सैड सॉन्ग की तरह कुछ स्मृतियां आज अचानक प्रत्यक्ष होने लगी। कॉलेज के दिनों की सीधी-सादी वंदना का चेहरा सामने आ गया ।किसी से बातचीत नहीं । लड़कों से तो बिल्कुल भी नहीं। इक्की दुक्की सहेलियां। सहज आकर्षण सौम्य चेहरा । सादगी दिखाती वेशभूषा। वंदना की इतनी ही पहचान रही।
प्रतिभावान छात्र संकेत को वंदना की सादगी बहुत प्रभावित करती रही। एक दिन हिम्मत करके संकेत ने वंदना से पूछ लिया ” आप अक्सर गुमसुम रहती हैं ।किसी से बातचीत नहीं । कोई खास कारण ?”
वंदना (संकेत से) ” आप भी तो अक्सर अकेले रहते हैं। आपकी कोई मित्र मंडली नहीं ।लिमिटेड हंसते हैं।”
संकेत “मुझे अकेलापन रास आता है। भीड़ देखकर मेरा मन घबराता है ।शायद मैं किसी की दोस्ती के काबिल नहीं।”
वंदना “आप सुलझे हुए होनहार छात्र हैं। आपके संस्कार आपको अन्य सभी से अलग करते हैं।”
संकेत “आपकी बातें अंतर्मन में कुतूहल पैदा कर रही है । आपकी सादगी और स्पष्ट विचार मुझे बहुत प्रभावित करते हैं।”
वंदना “आपका चेहरा फोटोजेनिक है। कॉलेज मैगजीन में आपकी तस्वीर बहुत आकर्षक बन पड़ी है।”
संकेत “आप बहुत अच्छी चित्रकार हैं । कभी फुर्सत मिले तो हमारी भी एक तस्वीर बनाइए।”
वंदना “आपको किसने कह दिया? छोटी मोटी चित्रकारी कर लेती हूं ।आपकी तस्वीर बनाने में तो मेरे हाथ कांपने लगेंगे।”
दोनों कुछ देर संयमित होकर हंसते रहे ।बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ता गया। दोनों की दोस्ती एक दूसरे के हाल-चाल जानने तक सीमित रही। समय का परिंदा पंख लगाकर तेजी से उड़ने लगा। कॉलेज की पढ़ाई समाप्त हो गई। दोनों के बीच प्रथम पहल का संकट यथावत बना रहा। दोनों एक दूसरे की भावना का सम्मान करने के बाद भी संवाद कायम नहीं कर सके।
इसी बीच वंदना का अन्यत्र रिश्ता पक्का हो गया। कुछ दिनों के बाद निमंत्रण कार्ड के साथ एक बड़ा सील किया हुआ लिफाफा संकेत को देकर वंदना अत्यधिक व्यस्तता की बात कहकर चली गई।
लिफाफे पर लिखा था “आपके लिए”
लिफाफे के अंदर अपनी तस्वीर देखकर संकेत हक्का बक्का रह गया।
हस्ताक्षर की हुई तस्वीर पर छोटे अक्षरों में लिखा था “आपकी वंदना”
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# रमेश चंद्र शर्मा
इंदौर