“ ताई जी यहाँ क्यों आई थी माँ…..मुझे इनका यहाँ आना जरा भी नहीं सुहाता….मुझे अभी भी याद है इनकी वजह से ही हमारे घर में दरार पड़ गई थी….भैया दीदी से भी हमें दूर कर दिया…क्या परिवार में ज़रूरी है दो भाई हो तो दोनों समान पैसे कमा कर लाए और अपने बच्चों को देखा देखी में एक जैसा करने की कोशिश करें… मैंने और रितेश ने तो कभी भैया दीदी के जैसा कुछ नहीं खोजा.. बस हम पढ़ाई करते और अच्छे नम्बर लाते थे वो भी ताई जी को बर्दाश्त नहीं हुआ था…..एक बार ताऊजी मेरी और दीदी की और रितेश और भैया के कपड़े एक जैसे ला दिए थे तब कितना बवाल मचाया था ताई जी ने…. कैसे मुँह पर कह दिया था इतने महँगे कपड़े ख़रीदने की औक़ात तो है नहीं अब दिया है तो सँभाल कर रखना … उनके ताने सुन सुन कर भी माँ तुम कभी कुछ नहीं बोलती थी ….माँ तुम कैसे सबकी बात सुनकर रह जाती हो…चुप रह कर सहन करना सही नहीं है… फिर सब तुम्हें दब्बू समझेंगे और बड़े क्या छोटे भी सुना कर चल देंगे ।” दीया आक्रोश में बोले जा रही थी
“ ऐसा नहीं है बेटा…बिना मतलब उनकी बात का जवाब देकर अपना मन और मुँह क्यों ख़राब करूँ… वो बोलती हैं पर वो भी जानती है सही गलत… मैं अगर बोलूँगी तो फिर बात बढ़ेगी…मनमुटाव और दरार की स्थिति आएगी… ऐसे में जहाँ चुप रह सकती रह जाती हूँ कुछ देर में बात ख़त्म हो जाती हैं …रिश्ते पर चढ़ा मनमुटाव का आवरण हट जाता सब ठीक हो जाता…. ये सीख मेरी माँ ने मुझे दिया जो आज भी अपने परिवार में इसी वजह से सम्मान पाती रही है…. अब जब तुम्हारे साथ भी ऐसी परिस्थिति आएगी तो मेरी ये सीख याद रखना… जहाँ ज़रूरी ना हो व्यर्थ बात बढ़ा कर कोई बात या रिश्ते मत बिगड़ने देना… परिवार… रिश्ते … दोस्ती ये सब बहुत नाज़ुक होते हैं जरा सी बात पर चटक जाते उन्हें अपनी चुप्पी से बचाकर रखना।” माँ ने समझाते हुए कहा
“ पर माँ ताई जी कभी सुधरने वाली नहीं लगती … पर वो आई क्यों थी?” दीया ने पूछा
“ बेटा वो तेरे लिए ख़ुशी में मिठाई लेकर आई थी कह रही थी वाह रे रति हमारी दीया ने तो कमाल कर दिया…नीट की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है अब हमारे घर में भी एक डॉक्टर हो जाएगी… पहली बच्ची होगी हमारे ख़ानदान की जो डॉक्टर बनेगी… बेटा वो आक्रोश में कुछ भी कह जाती …मुझे भी बुरा लगता है …पर सोचती हूँ वो बड़ी है मुँह लगाकर उनका मान क्यों कम करूँ….इसलिए चुप रह जाती हूँ देख तभी तो खबर मिलते बधाई के साथ मिठाई का डिब्बा लेकर आई… हो सके तो एक बार उनके घर जाकर उनसे आशीर्वाद ले लेना…।“ रति ने आक्रोश में भरी दीया को समझाते हुए कहा
दीया माँ की बात मान ताई जी से मिलने चली गई… सबने उसकी बहुत तारीफ़ की और ताईजी के घर कुछ मेहमान भी आए हुए थे उनसे बड़े गर्व से बताते हुए कह रही थी ये हमारे छोटे की बेटी है डॉक्टर बनेगी हमारा नाम रौशन करेंगी… कहते वक्त उनके चेहरे पर जो अपनापन था ये सब देख दीया को लग रहा था सही कहती हैं माँ आक्रोश में अगर दोनों पक्ष बात करें तो बात सुधरने की जगह बिगड़ती ही है जहाँ ज़रूरी ना हो चुप रहो तो रिश्ते अपने आप सामान्य हो जाते हैं ।
“ हाँ माँ तुम्हारी ये सीख सदा याद रखूँगी रिश्ते बिगड़ने लगे तो चुप हो जाया करूँगी ।” दीया घर आकर माँ के गले लग बोली
दोस्तों बहुत बार हम ऐसी ही पारिवारिक परिस्थितियों से जूझ जाते है सामने वाला आक्रोश में बोलता जाता और हम भी उसी लहजे मेंबोलने लगते तब बात तिल का ताड़ बन रिश्ते कटु कर देती यदि उस वक्त अगर समझदारी से काम लिया जाए तो रिश्ते बिगड़ने से बचसकते हैं ।
आपकी सोच इस कहानी से भिन्न हो सकती है… ऐसी परिस्थितियों में आप क्या करते हैं??
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
मौलिक रचना
#आक्रोश