मेरा नाम गीतिका है,छोटे से कस्बे की शर्मीली और पढ़ाकू लड़की कब विनोद से शादी करके ससुराल चली
आई और उसकी पत्नी बन गई,पता ही नहीं चला।दिल में कितने अरमान थे कि पढ़ाई करके ये करूंगी,वो
करूंगी पर शादी के बाद कुछ याद ही नहीं रहा सिवाय इसके कि सुबह अलार्म बजते ही उठ जाना है,घर के
सारे कार्य करने हैं,सास ससुर की सेवा सुश्रुषा, नन्द देवर की ख्वाहिशें पूरी करते और अपने पति विनोद की
आज्ञा मानते मैं कब दो प्यारे बच्चों की मां बन गई और उन्हें बड़ा करने, पढ़ाने और उनके कैरियर बनाने में प्रौढ़
हो गई।
सास ससुर की उम्मीदों पर खरा उतरना आसान काम नहीं था,बड़ा चुनौतीपूर्ण सफर रहा मेरा..विनोद भी बहुत
गंभीर प्रवृति के रहे शुरू से,उनकी हर बात सिर झुका कर मानी तो शायद पत्नी तो मैं अच्छी बन ही गई थी
लेकिन मेरी अपनी पहचान इन सबमें कहीं खो सी गई थी।काफी छटपटाहट होती काफी खाली होती तो…मैं
खुद क्या बनना चाहती थी,वो तो भूल ही गई थी इस सब आपाधापी में।
फिर मेरे दोनों बच्चों की शादी जो गई,लड़की अपनी ससुराल चली गई और बेटा, बहू ले आया।ननद देवर
हम दोस्त बनकर रहेंगे – बिंदेश्वरी त्यागी : Moral Stories in Hindi
पहले से ही अपने घरों में खुशहाल जिंदगी जी रहे थे।
अब मुझपर काफी वक्त होता खुद के लिए लेकिन शुरू से जो आदतें अपने जीवन में शुमार कर ली थीं अब
उन्हीं में दिल लगता।फलस्वरूप मैं अपनी सासू मां की खूब सेवा करती।उनके सिर में तेल मालिश कर चोटी
बनाना,उनके पूजा के बर्तन चमकाना और इनसे ढेर सारी गप्पे मारना मुझे बहुत अच्छा लगता।
वो मुंह भर भर के मुझे आशीर्वाद देती…तुझे कभी समझा नहीं मैंने बेटी!लेकिन जिस तरह मेरी सेवा करती है
तू,ऐसे तो मेरी बेटियों ने भी नहीं की।वो मुझे बेटियों सा लाड करती और आशीर्वचन देती।
फिर मेरी बहु शीना आ गई,आजकल की लड़कियां काम करने में बहुत कंजूसी करती हैं लेकिन मैंने अपनी
बहु को कभी पराई न माना,अपनी बेटी की तरह ही उसके सब काम करती रही,थोड़े ही दिनों में हम दोनो
घनिष्ठ दोस्त बन गई।अब हालत ये हैं कि वो मुझसे बिना पूछे,सलाह लिए एक कदम नहीं बढ़ाती।जैसा
व्यवहार मैंने अपनी सासू संग किया,वैसा अब वो मेरे साथ करने लगी है।
मोहल्ले की औरते मेरी तकदीर से रश्क करती हैं..गीतिका!क्या जादू किया है तुमने अपनी बहु पर जो वो
तुम्हारी बेटी से बढ़कर तुम्हारा ध्यान रखती है..
मैं बस मुस्करा के सब सुन लेती हूं,क्योंकि इसका राज तो सिर्फ मैं ही जानती हूं।
मेरी नन्द जब कभी कुछ दिनों को मायके आती है,उसे उसकी मां की कमी कभी नहीं खलने देती मैं..सासू मां
का पिछले समय देहावसान हो गया था।वो भाभी!भाभी!कहकर मेरा पल्लू पकड़े घूमती है उस उम्र में मानो उसे
मां ही मिल गई हो।
आज मौसम बहुत सुहावना था,हालांकि गर्मी का महीना है ,दो मई को काफी गर्मी पड़ने लगती है लेकिन कल
रात की बारिश ने मौसम मस्त बना दिया है।
मैं विनोद के साथ बैठी बाल्कनी में चाय पकौड़े का आनंद उठा रही थी जो मेरी ननद और बहु मिलकर बना रहे
हैं,कई बार मैंने चाहा कि उठकर उनकी हेल्प करूं लेकिन दोनों ही आग्रह से मुझे बैठाए हुए हैं।
भाभी! कभी आप भी तो एंजॉय करो।मेरी नन्द कह रही है और मेरी बहु ,वो तो बिल्कुल मेरी ही फोटो कॉपी
बन गई है।सारे दिन मम्मी..मम्मी कहकर मेरी सेवा टहल करती है…आजकल के ज़माने में ऐसी प्यारी बहू।
आज लगता है कि एक साथ मुझे बहुत सारे उपलब्धियां मिल गई…पहले मेरी सासू मां ने मुझे अपनी बेटी
बनाया,फिर मेरी नन्द ,देवर ने अपनी प्यारी भाभी मां और मेरी बहु को मुझमें अपनी ही मां दिखने लगी है।
लगता है आज मैंने अपने सारे स्वरूप का गौरव एकसाथ प्राप्त कर लिया है।कभी विनोद की पत्नी ही थी मैं
लेकिन आज मां, बेटी, भाभी , बहू सबका खिताब पाकर मुझे अपनी पहचान सार्थक होती दिखती है।
“सासू माँ की प्रेरणा” – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi
दोस्तों!किसी भी चीज को पाना इतना मुश्किल नहीं होता,हर काम बलिदान मांगता है…आप पहले दूसरों के
लिए करिए निस्वार्थ भाव से फिर वो ही सब आपके पास खुले ह्रदय आयेगा इतना कि आप सम्भाल भी नहीं
पाओगे।
समाप्त
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
#पत्नी तो कब की बन गई लेकिन बहु,बेटी भाभी आज बनी हूं।