जया और मैं अपनी अपनी बेटी को लेकर.. रोज पार्क जाते एक नियत समय पर!
दोनों बच्चियां खेलती रहतीं और हम लोग भी क्वालिटी टाइम स्पेंड करते!
इधर तीन-चार दिनों से जया की मां का लगातार फोन आ रहा था.. उनकी तबीयत ठीक नहीं थी.. तो जया से मिलने आने को कहती रहतीं.. पर वह कोई ना कोई बहाना बनाकर टालती देती!
अपनी बीमारी का वास्ता देकर.. आज तो बहुत जिद ही करने लगी.. लेकिन जया ने बिल्कुल निर्ममता से मना कर दिया.. यह कहते हुए.. मेरा घर परिवार नहीं है क्या मां.. अभी तीन-चार महीने पहले ही तो आई थी.. अब इतनी जल्दी आना संभव नहीं!
उसका इस तरीके से मना करना मुझे खल गया.. चूंकि हमारी दोस्ती बहुत पुरानी नहीं थी इसलिए पर्सनल मैटर में दखल देना उचित नहीं लगा तो चुप ही रही!
फिर इधर-उधर की काफी बातें हुईं.. पर मेरा मन अभी भी भारी था.. जैसे कोई बोझ हो.. सीने पर!
पर अब घर जाने का समय हो गया था.. इसलिए बच्चों को बुलाने चले गए.. इशिता तो सामने खेल रही थी पर नैना नजर नहीं आई.. कहीं आसपास!
जया ने घबराकर पूछा.. इशिता नैना कहां है.. आंटी यहीं तो अभी खेल रही थी!
वह नैना नैना चिल्लाते हुए.. बदहवास होकर ढूंढने लगी!
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जया सब्र से काम लो.. समझदार बच्ची है.. यहीं कहीं होगी.. मैं उस तरफ देख कर आ रही हूं!
अभी चार कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई थी कि वह आते हुए दिखी!
नैना बेटा कहां चले गए थे.. मम्मा आपको कितना ढूंढ रही हैं!
वह आंटी.. एक बदमाश बच्चे ने स्लाइड करते वक्त.. ऊपर से मेरा चप्पल फेंक दिया.. दूर जा गिरा था.. बस उसी को लेने गई थी!
अच्छा अच्छा कहते हुए.. मैं तुरंत जया के पास ले आई उसको.. लो पकड़ो अपनी बच्ची.. तुम भी ना बहुत जल्दी बेचैन हो जाती हो.. फिर सारी बात बताई!
क्या करूं.. अगर यह पांच मिनट के लिए भी मेरी आंखों से ओझल हो जाए तो मेरी जान निकल जाती है!
पता नहीं! मैं इसको अपने से कभी दूर भी कर पाऊंगी कि नहीं.. सोच कर भी डर लगता है.. इस बात से!
अब रहा नहीं गया.. बोझ हल्का करने की बारी आ गई थी!
जया.. नैना का दो मिनट भी नैनों से ओझल होना बर्दाश्त नहीं तुम्हें.. इतना लगाव है!
फिर भी अपनी मां का प्यार और मजबूरी समझ में नहीं आ रही है.. जो उनको इतनी बेरहमी से डांट दिया!
अगर औलाद होकर उनका दुख समझ नहीं पा रही.. तो एक मां के नजरिए से देखो!
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कितनी मुश्किल से विदा किया होगा.. यह दिन देखने के लिए!
आज तुम्हारे पास टाइम नहीं है.. तो कल नैना के पास भी कहां होगा तुम्हारे लिए!
कुछ चीजें पीढ़ी दर पीढ़ी पास होती रहती हैं!
मौलिक व स्वरचित
चांदनी खटवानी