सवा नौ बज गए हैं ….अभी तक तुम्हारा टिफिन पैक नहीं हुआ….?? मैं चला…. शांतनु ने देर होने से मानसी पर गुस्सा होते हुए कहा…
अरे शांतनु रुको तो…. एक मिनट बस हो ही गया है ….मानसी ने अपने काम की स्पीड बढ़ा दी….! जल्दी-जल्दी टिफिन पैक किया और दौड़ कर बाहर गई… तुरंत ही शांतनु स्कूटी स्टार्ट कर ऑफिस के लिए निकल चुका था……शांतनु …..आवाज देती मानसी ….इससे पहले ही वो आंखों से ओझल हो गया….।
टिफिन हाथ में पकड़े मानसी की आंखों में आंसू आ गए… । इतनी मेहनत से पनीर पराठा बनाया था ….ये ना स्पेशल बनाने के चक्कर में ही सब गड़बड़ हो जाता है …मुझे भी सुबह और जल्दी उठना चाहिए था खुद को दोषी मानती हुई मानसी जैसे अंदर आई …
सासू माँ रुपाली को समझते देर न लगी कि ….आज बहू का मूड ऑफ है…. और हो भी क्यों ना पतिदेव जो बिना टिफिन लिए गुस्सा करके चले गए हैं….! रूपाली ने मानसी को पास बुलाया और प्यार से समझाया….
देखो बहू कभी कभी ऐसा हो जाता है पर इसके लिए सिर्फ तुम जिम्मेदार हो ऐसा नहीं है …रात में देर से सोना और सवेरे जल्दी ना उठना ये सब बातें भी तो जिम्मेदारी का कारण है…..। फिर
हमेशा खुद को दोषी ठहराना ठीक नहीं होता बेटा….!
वो क्या है ना मानसी…कभी-कभी हम औरतें अपनी परिस्थितियों के लिए …खुद को ही जिम्मेदार मान लेते हैं ….अब तुम दिन भर यही सोचती रहोगी…. शांतनु क्या खाएंगे… मैं जल्दी क्यों नहीं उठी …..वगैरह-वगैरह….।
अब जो हो गया वो हो गया शाम को.. अच्छा था.. उसके पसंद का …नाश्ता बना कर रखना… देखना कैसे खुश हो जाएगा शांतनु…. और हां वो आज ऑफिस वालों के साथ मैनेज कर लेगा….. सब आपस में मिल बांटकर ही तो टिफिन खाते हैं… रूपाली ने मानसी का मूड ठीक करने की कोशिश में तमाम बातें कह डाली….।
फिर अंत में मुस्कुराते हुए ये भी कहा ….उसके गाड़ी के डिक्की में मैंने कुछ स्नैक्स रख दिए हैं …तुम चिंता ना करो…. मैं माँ हूं उसकी ….! मैंने देखा तुम दोनों आनन-फानन में काम बिगाड़ रहे हो तो मैंने धीरे से डिब्बे में स्नैक्स भरकर रख दिया….।
थैंक गॉड मम्मी ….आप कितनी अच्छी हैं …कहते हुए मानसी ने कृतार्थ भरी नजरों से रूपाली की ओर देखा…।
मानसी सोच रही थी कितनी अच्छी है सासू माँ ….कम से कम मेरी भावनाएं तो समझती है ….और गुस्सा होने की बजाए …काम कैसे सुधारा जाए या काम बनाया जाए इस ओर प्रयासरत रहती हैं …..।
शांतनु भी तो एक बार बोल सकते थे ना कि कोई बात नहीं देर हो गई तो…. मैं मैनेज कर लूंगा ….पर नहीं वो तो सिर्फ ताव दिखा कर चले गए….. सच में सासु माँ ने तो मेरा मूड ही ठीक कर दिया…।
आज मानसी के मन में अपनी माँ की अपेक्षा सासू माँ ज्यादा समझदार लग रही थी . . .माँ तो बचपन से हमेशा कहती आई थीं….
ये सीख जाओ नहीं तो सास बताएगी …ससुराल में पता चलेगा… ठीक से रहा करो ससुराल जाना है…. पता नहीं क्यों बचपन से ही ससुराल.. सास ननंद के बारे में हमारे मन में इतनी फिजूल की बातें और खौफ भर दी जाती है.. कि ना चाहते हुए भी अच्छाइयों को यकीन करने में समय लग जाता है….।
और कहीं ना कहीं अनजाने में खुद माँ ही बातों ही बातों में बेटियों को अपने ही घर में पराएपन का एहसास करा देती है ….!
समझदार व गुणवान बनाना आवश्यक है….. पर समझाने की प्रक्रिया में भी समझदारी होना और भी आवश्यक है …!
हमेशा …ससुराल जाना है या दूसरों के घर जाना है ये एहसास दिलाना आवश्यक नहीं होता …. सच्चाई या वास्तविकता बताने की भी कला होनी चाहिए..।
स्त्री पहले माँ बनती है बाद में ही वो सास बन पाती है…. तो कहीं ना कहीं सास में भी माँ का दिल तो होता ही है…. हर परिस्थिति में सर्वत्र सास….सास की ही भूमिका में हो ऐसा कदापि नहीं होता ….!
मानसी बार-बार सोच रही थी कि किसी किसी मामले में तो माँ से भी ज्यादा समझदार व धैर्यवान सासू माँ है….।
शाम को मानसी शांतनु का मनपसंद नाश्ता .. “ढोकला ” बना कर इंतजार कर रही थी …डाइनिंग टेबल पर शाम के नाश्ते के लिए सब बैठे रूपाली ने मानसी से कहा… आज तुमने काफी मेहनत की है …मैं जानती हूं …मेरे समझाने के बाद भी तुमने अनावश्यक शांतनु की चिंता की है… आज तुम रात का खाना नहीं बनाओगी… ।
शांतनु काफी दिन हो गए हैं …आज कहीं बाहर डिनर पर चलें… या घर पर ही ऑर्डर कर लो… ये सब तुम और मानसी आपस में तय कर लो ….रूपाली ने शांतनु से अपनी बनाई हुई प्लानिंग बताई….।
वाह मम्मी वाह ….आप कैसी सास हैं….?? आपको मानसी की पड़ी है और मेरी बिल्कुल चिंता नहीं है… उसकी तो बिल्कुल गलती आपको नहीं दिखती …..क्या जादू कर दिया है उसने आप पर ….?? शांतनु ने मुंह बनाते हुए मम्मी से कहा….।
देखो बेटा…. आज मैं भी कुछ बातें तुम सबके सामने स्पष्ट रूप से कहना चाहती हूं …..हर परिवार में ये सब समस्याएं या इससे भी बड़ी समस्याएं ……. आते ..जाते …रहती है …पर हम उन्हें दिल से लगा कर बैठेंगे तो अपनी खुशी स्वयं ही खत्म करने के जिम्मेदार होंगे….।
मैं नहीं चाहती… जिंदगी में जो गलती मैंने की है …वही मेरी बहू भी करें ….आश्चर्य से शांतनु और उसके पापा वेद प्रकाश जी रूपाली का मुंह देखने लगे….।
हां मैं बिल्कुल ठीक कह रही हूं.. मैंने तो अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ…. परवाह करने …प्यार करने…. तुम सब की जरूरतें पूरा करने …यहां तक कि तुम सब की एक एक खुशी का ध्यान रखने में ही …..बिता दिया …मैंने तो अपने बारे में कभी सोचा ही नहीं कि मुझे क्या चाहिए …? मेरी खुशी के मायने क्या है …? मैंने तो इन सभी चीजों को अपना कर्म अपनी किस्मत यही सब कुछ मान लिया….।
ये भी सच है कि तुम सब की खुशी में ही मेरी खुशी है…. पर…. काश….! ऐसा तुम सब भी सोच पाते….!!
” मैंने तो अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ काटी है जिंदगी जिया तो है ही नहीं “….!
और मैं चाहती हूं…. मेरी बहू जिंदगी काटे नहीं खुलकर जिए….।
देखो क्या है ना बेटा …खुशियां हमारे चारों ओर बाहें फैलाए हुए हमारा इंतजार करती रहती हैं …हमें उन्हें लेना आना भी चाहिए…! हमें उन खुशियों को दरकिनार नहीं बल्कि आगोश में भर लेना चाहिए… ये रोजमर्रा की छोटी-छोटी खुशी होती है ना ये ही हमारे लिए बहुत मायने रखती है..! कहीं ऐसा ना हो मिथ्या ही हम किसी बड़े खुशी के लिए इन छोटे-छोटे खुशनुमा माहौल से खुद को दूर करते रहें..!
तुम्हारी मम्मी बिल्कुल ठीक कह रही हैं शांतनु ….शायद मैं भी तुम्हारी तरह ही था ….कभी रूपाली की चाहत के बारे में सोचना जरूरी नहीं समझा था ….! अब मम्मी ने अपने जीवन के बीते अनुभव हम सबके सामने साँझा कर दिया है….!
अब तुम दोनों की मर्जी …..हमारे जीवन से कुछ सीखना चाहते हो या वही जिंदगी दुहराना चाहते हो….!
शांतनु तुमने मम्मी जी पूछा था ना… कि ” आप कैसी सास हो माँ “…..?? तो मैं बताती हूं ….. ” सासु माँ ने सास की परिभाषा ही बदल दी है ” …..!
एक ऐसी सास जो जिंदगी के तजुर्बे , हालातों और परिस्थितियों के समक्ष अनुकूल मनः स्थिति और विचारों पर नियंत्रण रखकर परिवार में खुशनुमा माहौल बनाने की भरपूर कोशिश करती हैं …मानसी ने खुश होते हुए कहा….।
अब चलें बाहर खाना खाने… शांतनु के ये कहते ही माहौल हल्का एवं खुशनुमा हो गया….!
दोस्तों मेरे विचार पर आपके प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा….
( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिक कर सुरक्षित रचना )
श्रीमती संध्या त्रिपाठी