फूफा जी को एयरपोर्ट पर लेने जा रही ट्रैफिक में फंसी रुचि यही सोच रही थी कैसे साल दर साल वक्त गुजरता गया और वह अपने आप को परिवार के सदस्यों की कसौटी पर सिद्ध करती रही।
सिर्फ और सिर्फ सुमित ही तो था जो उसको समझता था पूरे परिवार के विरुद्ध जाकर सुमित ने रुचि से शादी की थी और उसके बाद शुरू हो गया था परिवार के सदस्यों के साथ रिश्तेदारों का भी रुचि को परखने का सिलसिला।
आखिर ऐसा क्यों होता है ससुराल में ना तो अपनी पसंद की लाई हुई बहू को लोग मन से स्वीकार करते हैं और ना ही बेटे की पसंद से लाई बहू!
अच्छी तरह से याद है उसे वह दिन जब उसने ससुराल में पहली रसोई बनाई और फूफा जी को परोसने गई थी बगैर रुचि की भावनाओं की कद्र करते हुए कह रहे थे छोटी बहू के हाथ में वह स्वाद नहीं है जो बड़ी बहू और भाभी के हाथों में यानी रुचि की सासू मां तन्वी जी के हाथों में है!
रुचि को समझ में नहीं आ रहा था कि उसके हाथों में स्वाद नहीं है या फिर फूफा जी को स्वाद की परख नहीं क्योंकि इतने रिश्तेदारों में शायद ही किसी ने मीनमेख निकाली हो!
एक दिन तो उसने फूफा जी को यह भी कहते सुना था कि भाभी जी सुमित पढ़ी लिखी , नौकरी करने वाली बहू ब्याह कर लाया है देखना जरा संभल कर रहना नहीं तो तुम्हारे सर पर नाच करेगी अभी से लगाम कस के रखना!
लगाम कस के रखना क्या होता है? क्या वह कोई जानवर है? जो लगाम कस के रखी जाए!
मन ही मन फूफा जी की छवि रुचि की नजरों में खराब हो चुकी थी सचमुच कभी कभी तो ऐसा लगता है, कि परिवार वाले अगर मिल जुल कर रहना चाहे तो रिश्तेदार अपने विष बुझे तीरों से पूरा माहौल विषाक्त कर देते हैं।
उनके इस तरह से व्यवहार करने पर उनको बुरा ना लगे इसीलिए मधुर स्वर में सासू मां ने भी कह दिया था नंदोई जी आप फिकर मत कीजिए वह कहा गया है ना कि तुलसी इह संसार में भांति भांति के लोग सब सों हिल मिल चालिए नदी नाव संजोग! बस ऐसे ही एक दूसरे के साथ निभते निभाते हमारे परिवार की गाड़ी चल ही जायेगी।
कितना संतोष हुआ था रुचि को सासू मां के शब्दों से सच ही तो है अगर एक ही जैसी प्रवृत्ति के लोग हो जाएं तो जिंदगी में तो कुछ रोमांच ही ना रहे!
ट्रैफिक की भीड़ छंट चुकी थी रुचि अपनी खोई हुई तंद्रा से वापस आई और पूरे उत्साह के साथ फूफा जी को लेने के लिए एयरपोर्ट चल पड़ी
अरे बहू! तुम क्यों आई हो ? सुमित कहां रह गया! आश्चर्यचकित होकर फूफा जी बोले!
सुमित की आज बहुत जरूरी मीटिंग थी इसीलिए वह ना आ सके जेठ जी को छुट्टी नहीं मिली और पापा जी की तबीयत थोड़ा नरम गरम है इसीलिए मैं आपको लेने आई हूं!
मुंह बनाते हुए फूफा जी चुपचाप गाड़ी में बैठ गए।
घर पहुंचते फटाफट रुचि फूफा जी के लिए शरबत और नाश्ता ले आई!
फूफा जी की व्याकुलता देखकर रुचि मन ही मन हंस रही थी उनके हाव-भाव तो यही बता रहे थे कि कब मौका मिले और वह अपने मन का गुबार सासू मां के सामने उड़ेल सकें।
अपने ऑफिस का जरूरी काम निपटाने का बहाना कर रुचि अपने कमरे में आ गई थी।
रुचि के पीठ फेरते ही फूफा जी ने रुचि बुराई पुराण फिर से खोल लिया क्या भाभी! अब तो आपने घर के पुरुषों के काम भी बहू के जिम्मे कर दिए? सारी मर्यादा ताक पर रख दी है आपकी बहू नें ! मैं आपको कहे देता हूं देख लेना अगर आप अब नहीं संभले तो बहुत जल्द पूरे घर को अपने इशारों पर नचायेगी तुम्हारी बहू!
अच्छा तो है नंदोई जी अगर इशारों पर नचायेगी तो क्या बुरा हो जाएगा तन्वी जी ने भी तल्खी से जवाब दिया!
मैं तो कहती हूं अगर आप अपना जीवन सुख से व्यतीत करना चाहते हैं तो लोगों में अच्छाई ढूंढने की कोशिश करें बजाय कमियां निकालने के! अपने ऑफिस का काम छोड़कर एक तो वह आपको लेने एयरपोर्ट तक गई और आप उसकी प्रशंसा करने की जगह इस तरह से बात कर रहे हैं ?इस उम्र में बहुओं के लिए ऐसा बोलना आपको शोभा नहीं देता।
आप अपनी मर्यादा मत भूलिए नंदोई जी कहीं ऐसा ना हो जाने अनजाने आप सभी की नजरों में अपना सम्मान खो बैठे!
मेरी दोनों बहुएं हीरा है हीरा!
एक अगर घर का काम संभालती है ,तो दूसरी घर के साथ-साथ बाहर की भी जिम्मेदारी।
आप अपनी इस सोच के दायरे से बाहर निकलिए कि यह काम पुरुष के हैं और वह काम स्त्री के! किसी भी काम के ऊपर किसी का नाम नहीं लिखा होता इंसान का जन्म लिया है तो हर काम करने के लिए हर इंसान को सक्षम होना चाहिए। वह तो छोटी सोच के लोगों का परिणाम है जो स्त्रियों के जिम्मे सिर्फ घर का काम ही सौंपने की सोच रखते हैं वरना चौका चूल्हा संभालने के साथ-साथ हम स्त्रियां चांद को भी छूने की क्षमता रखती हैं।
जो लोग अनावश्यक दूसरों की बुराई करते हैं बहुत ही जल्द वह अपना सम्मान भी खो बैठते हैं!
तन्वी जी के इस तरह से कहने पर फूफा जी बगले झांकने लगे और रुचि अपने भाग्य पर इतरा रही थी जो उसे इतनी खुली सोच वाला परिवार मिला।
धन्यवाद 🙏
कामिनी सजल सोनी ✍️
#मर्यादा