आंसू – रेखा जैन : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : “पापा आज मेरे लिए चॉकलेट ले कर आना और हां मेरी गुड़िया पूरी फट गई है तो आप नई गुड़िया भी ले कर आना, और मेरी नई चप्पल भी।” नन्हीं सी मुन्नी की फरमाइशों की लिस्ट बढ़ती ही जा रही थी जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

राकेश ने उसे गोद में उठाया और उसके नरम नरम गालों पर पप्पी कर के कहा, “जरूर लाऊंगा,,,मेरी रानी बिटिया के लिए सब चीजे लाऊंगा।” बोलते हुए उसका गला रूंध गया।

उसकी पत्नी ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो उसने मुड़ कर अपनी पत्नी को देखा और कहा,”लीला…मैं कितना बदनसीब बाप हुं कि अपनी बेटी की छोटी छोटी इच्छाएं भी पूरी नहीं कर सकता हुं। ये क्या महामारी आई है…लोग तो बेचारे इस बीमारी से मर ही रहे है लेकिन हम जैसे रोज कमाने वाले लोग बिना बीमारी के भी तिल तिल कर मर रहे है। मेरी सब्जियां अब कोई नहीं खरीदता,,लोग वो क्या कहते है …मोबाइल से (ऑनलाइन) मंगाते है तो बाजार में कोई सब्जी खरीदने ही नहीं आता।”

राकेश सब्जी का ठेला लगाता है। इतने सालों से वो कई मोहल्ले में फेरी लगाता था। उसके बंधे हुए ग्राहक थे जो रोज उसी से ही सब्जी खरीदते थे।

उसका अच्छा खासा सब्जी का धंधा चल रहा था। छोटा सा परिवार है तो गुजर बसर भी अच्छे से हो जाती थी।

लेकिन जब से ये कोरॉना महामारी आई तो पहले तो लॉक डाउन लग गया। जिसकी वजह से सभी को 2 महीना घर मे ही रहना पड़ा। सब काम धंधा बंद हो गया। जो कुछ घर में इतने सालों से बचा कर रखा था उससे दो महीना घर का खर्चा चलाया।

लॉक डाउन हटा तो वो अपना सब्जी का ठेला ले कर सब्जी बेचने निकल गया। वो उसके रोजमर्रा के बंधे हुए मोहल्लों में गया लेकिन बहुत कम लोगो ने उससे सब्जी खरीदी।

सभी लोग corona से डरे हुए है। सभी को लगता है कि सब्ज़ी वाले और उसके आस पास खड़े ग्राहकों के संपर्क में आने से उनको भी corona हो जाएगा। हालांकि राकेश मास्क लगाता है,,,ग्राहक भी मास्क लगाते है लेकिन डर भी अपनी जगह है।

वो दिन भर सब्जी का ठेला ले कर मोहल्ले मोहल्ले घुमा लेकिन उसकी बिक्री नहीं हुई।

लोग बाग अब ऑनलाइन सब्जियां खरीदने लगे थे तो राकेश से सब्जी नहीं लेते थे। राकेश जैसे कई सब्जी वाले थे जिनका घर सब्जियां बेच कर चलता था,,,,सभी का धंधा बंद हो गया था।

वो देर तक शाम को बाजार में भी अपना ठेला ले कर खड़ा रहा। लेकिन उसकी सब्जियां नहीं बिकी। गिने चुने लोगो ने ही बाजार से सब्जियां खरीदी थी।

पहले तो दोपहर तक उसकी सारी सब्जियां बिक जाती थी लेकिन अब वो देर शाम तक ठेला लगा कर खड़ा रहा फिर भी उसकी सब्जियां नहीं बिकी।

वो थकाहरा हताश हो कर शाम को घर लौटा।

वो जान बुझ कर उस समय घर आया जब उसकी मुन्नी सो गई थी क्योंकि मुन्नी की आशा भरी निगाहों का सामना करने की उसकी हिम्मत नहीं है।

“लीला क्या करूं मैं??…कुछ समझ नहीं आ रहा है। ऐसे कैसे चलेगा। ऐसा ही चलता रहा तो भूखे मरने की नौबत आ जाएगी।आज तो मेरे ठेले की कई सब्जियां सड़ भी गई थी जिनको मैं फेंक कर आया। कमाई की जगह नुकसान ज्यादा हो गया।”

“ए जी!! आप चिंता ना करो, सब ठीक हो जाएगा। समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है। ये समय भी निकल जाएगा और सब कुछ वापस पहले जैसा हो जाएगा। ये महामारी भी चली जाएगी और सब कुछ जैसा पहले था वैसा हो जाएगा।” लीला ने सांत्वना दी।

” लेकिन तब तक मैं क्या करूं?? कैसे घर चलाऊं?? हम गरीबों के पास तो इतने पैसे भी नहीं होते कि 6 महीना या साल भर बिना कमाए निकल जाए! कुछ तो काम धंधा करना ही पड़ेगा वरना एक दिन भूखा रहना पड़ेगा,,,भीख मांगनी पड़ जाएगी।”

” जब तक हमारा सब्जियों का धंधा फिर से पहले जैसा नहीं हो जाता तब तक आप दिहाड़ी मजदूर का काम कर लो। खाली हाथ से तो अच्छा है कुछ तो मिले।” लीला ने सुझाव दिया।

“मैने ये भी कोशिश कर ली है। लेकिन अभी कई निर्माणाधीन साइट बंद है। कही भी निर्माण कार्य नहीं चल रहा है इसलिए दिहाड़ी का काम भी नहीं मिला। क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा।” राकेश और लीला चिंता में डूब गए लेकिन रास्ता कुछ नजर नहीं आ रहा था।

अगले दिन सुबह लीला घर के बाहर झाड़ू लगा रही थी तब उसने अपनी पड़ोसन को जल्दी जल्दी जाते देखा तो उससे पूछा कि कहां जा रही है।

पड़ोसन ने जवाब दिया, “लीला मैने ये पड़ोस की सोसायटी में कुछ घरों में झाड़ू पोछा और बर्तन का काम बांध लिया है। क्योंकि अभी इनका सब्जी बेचने का धंधा तो ठप्प पड़ा है, कमाई कुछ है नहीं। जितना बचाया था वो लॉक डाउन में खत्म हो गया।हम भूखे रह जाए लेकिन बच्चों को कैसे भूखा रखे और हम भी कितने दिन भूखे रह सकते है। इसलिए मैने झाड़ू पोछा और बर्तन का काम पकड़ लिया है। घर में कुछ तो कमाई होगी।”

लीला का पति और पड़ोसन का पति दोनों ही सब्जी का ठेला लगाते है और दोनो का ही धंधा बंद होने की कगार पर है।

पड़ोसन की बात सुन कर लीला ने पूछा, “क्या मैं भी ये काम कर सकती हुं?”

पड़ोसन ने जवाब दिया,”क्यों नहीं कर सकती है? तु कहे तो मैं तुझे 2 – 4 घरों के काम दिलवा दूं क्योंकि उन घरों की बाई ये महामारी के कारण काम छोड़ कर गांव चली गई है इसलिए उनको काम वाली की जरूरत भी है। बस तू अपना corona की जांच करवा लेना अगर जांच में तुझे corona नहीं आया तो काम मिल जाएगा और मास्क बराबर लगा कर आना।”

लीला ने कहा, “मैं पहले मुन्नी के बापू से पूछ लूं फिर तुझे बताती हुं।” और वो घर के अंदर आ गई।

राकेश उस वक्त घर पर तैयार हो कर ठेला ले कर निकलने की तैयारी में था।

“सुनिए! एक बात कहनी है।” और लीला ने पड़ोसन से हुई सारी बातें राकेश को बताई।

“जब तक आपका धंधा नहीं जम जाता तब तक मैं भी ये काम कर लेती हुं। कब तक हम मुन्नी को छोटी छोटी चीजों के लिए तरसाएंगे!! और अब तो घर में राशन भी ज्यादा दिन का नहीं बचा है।”

“लेकिन लीला..!” राकेश ने कुछ कहना चाहा लेकिन लीला ने उसकी बात काट कर कहा,

“मुझे पता है,,मेरा काम करना आपको पसंद नहीं है और मुन्नी भी अभी छोटी है लेकिन आप ठेला ले कर सुबह 9 बजे घर से निकलते हो,,तब तक मैं सुबह 7 बजे जा कर दो घर का काम कर के आ जाऊंगी। फिर आप दोपहर में दो घंटा घर आते हो जब मैं दो घंटा काम कर आऊंगी,,,तब तक मुन्नी को आप संभाल लेना। हम दोनो मिल कर इन परिस्थितियों का सामना करेंगे तो ये बुरा समय भी जल्दी निकल जाएगा। पति पत्नी दोनों ही गृहस्थी के दो पहिए है और दोनों मिल कर चलेंगे तो गाड़ी अच्छे से चलेगी।”

लीला की बात सुन कर राकेश ने बुझे मन से लीला को काम करने की अनुमति दे दी।

लीला ने राकेश के साथ जा कर अपना रैपिड टेस्ट करवाया और रिपोर्ट ले कर पड़ोसन के साथ काम के लिए निकल पड़ी। उसे4 – 5 घरों में काम भी मिल गया।

दो दिन बाद, “मुन्नी ये ले तेरी नई गुड़िया और चॉकलेट!” लीला ने एक चॉकलेट और एक गुड़िया मुन्नी को दी।

“मां!! ये नई गुड़िया तो कुछ पुरानी सी लग रही है लेकिन बहुत सुंदर है,,मेरी पुरानी गुड़िया जैसी फटी हुई नहीं है।” मुन्नी नई गुड़िया को पा कर बहुत खुश हो गई और नाचने लग गई।

लीला जिन घरों में काम करती थी उनमें से एक घर में मेम साब की बच्ची का जन्मदिन था और वो बच्ची मुन्नी की ही हमउम्र है।

उसी के लिए लीला को चॉकलेट दी थी और उस बच्ची को गिफ्ट में एक नई और महंगी गुड़िया मिली थी। उसकी मम्मी उसकी पुरानी गुड़िया फेंकने जा रही थी तब लीला ने उनसे पूछ कर वो पुरानी गुड़िया अपनी मुन्नी के लिए रख ली और अब मुन्नी को वो गुड़िया दे दी।

मुन्नी को खुश देख कर लीला की आंखों में आंसु झिलमिलाने लगे,,अपनी बेटी को खुश देख कर खुशी के आंसु और उसे पुरानी गुड़िया को नई बताने के अपनी लाचारगी के आंसु,,अपनी मजबूरी के आंसु,, अपनी गरीबी के आंसु।

धन्यवाद

रेखा जैन, अहमदाबाद

#आँसू

 

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