आँसू और मुस्कान – ज्योति अप्रतिम

टेबल पर पड़ा हुआ टिफिन मुँह चिड़ा रहा था।पाँच मिनट देर हुई और उसे वहीं छोड़ कर सुदेश ऑफिस निकल गए।ऊपर से चार बातें और सुना दीं।

साढ़े पांच बजे से रोबोट की तरह काम करने के बावजूद ऐसी स्थिति !सोचते हुए रोना ही आ गया।एक बार आँसू निकल पड़े तो बन्द होने का नाम नहीं ले रहे थे तभी मोबाइल बज उठा ।

” माँ ” फ्लैश हो रहा था स्क्रीन पर ।जैसे तैसे अपने आपको संयत कर के बात की।

हेलो माँ !

माँ ने कहा ,हाँ बेटा , रतलाम जा रही थी । तुम्हारे

घर के पास से गुजर रही थी सोचा तुमसे मिलती चलूँ ।

हे भगवान ! माँ पूछेंगी !क्या हुआ? तरकीब लगा कर पूछा ,बहुत अच्छा माँ ,कितनी देर लगेगी पहुँचने में ?



एक डेढ़ घण्टा लगेगा ।माँ ने कहा ।मैंने राहत की साँस ली ।मूड ठीक करने के लिए समय है।

फोन रखते ही सोचने लगी , ” जब छोटे थे तब तक रोते रहते थे जब तक माँ देख न लें और जिस चीज की जिद है दिला न दें ।

आज रो रही हूँ तो सोचती हूँ ,माँ देख न लें ,वजह क्या बताऊँगी ? “

तभी देखा आधा घंटा बीत चुका था।फ़टाफ़ट उठ कर घर ठीक किया ।एक अच्छा सा सूट पहन कर  हल्का मेक अप  कर लिया ।

और फिर माँ का इंतज़ार ।

उनके सामने मुस्कुराना जो था !!

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