रति और सीमा चचेरी बहने थी। रति की मां का देहांत हो गया था तो वो अपने चाचा के घर रहने आ गई क्योंकि उसके पिता बाहर नौकरी करते थे। रति सभी कार्यों में कुशल थी
इसलिए वो उसकी चाची शांति की आंखों में रति हमेशा खटकती थी।दोनो लड़कियां सयानी हो गई थी।शांति और रामपाल लड़के देख रहे थे। नंदकिशोर जी अपने परिवार के साथ रामपाल के घर आए।
उनका बेटा अमित एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर था।रति ने सब बनाया पर शांति ने सीमा को दिखाया और बोली सब सीमा ने बनाया है
हर चीज जो रति करती थी वो सीमा का नाम लेकर बोली।दोनो तरफ से बात पक्की हो गई पर ना जाने अमित को कुछ खटक रहा था शादी की तारीख निकल गई
और शादी का दिन आ गया। रति और सीमा पार्लर गई।सीमा वही से ही अपने बॉयफ्रेंड के साथ भाग गई।रति ने फोन कर घर बताया चाचा चाची सर पकड़ कर बैठे थे।
शांति अभी भी रति को कोस रही थी।चाचा बोले अब कैसे अपनी इज्जत बचाए।चाचा ने रति के आगे हाथ जोड़ दिए बेटा हमारी इज्ज़त बचालो और रति को मंडप में बिठा दिया
और हाथ जोड़ कर नंदकिशोर को सारी बात बताई अमित से पूछा गया अमित ने कहा मुझे कोई एतराज नहीं क्योंकि मैने पहले दिन ही रति को पसंद किया था पर उसे हमारे सामने लाया ही नहीं गया।
आज रति और अमित की शादी सम्पन्न हुई । रामपाल ने शांति से कहा जो तुम्हारी आंखों में खटकती थी उसी ने आज तुम्हारी इज्जत बचा ली वरना तुम्हारी बेटी ने तो हमारे मुंह पर कालिख पोत दी थी।
शांति अपना सा मुंह लेकर खड़ी थी और रति विदा हो रही थी।
स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी