hindi stories with moral :
रजनी बड़ी तेजी से सीढ़ियों पर चढी जा रही थी | सोच रही थी,आज आफिस में उसका पहला दिन था और कहीं आज ही देर न हो जाये |लिफ्ट उपर गया हुआ था और आफिस पहली मंजिल पर ही है, यह सोचकर रजनी फटाफट उपर आ गई |आफिस में वह जैसे ही अपनी सीट पर बैठी, चपरासी ने आकर बताया कि साहब उसे बुला रहे हैं | वह झट से उठी और साहब के केबिन की ओर चल दी |
“मे आई कम इन सर” उसने पूछा |
“यस, कम इन ” सुनकर वह अंदर आ गई |
” रोहण तुम , तुम रोहण ही हो ना|”साहब को देखकर वह आश्चर्य चकित रह गई |
” रजनी “रोहण भी चकित हो गया| ” तुमने ठीक पहचाना | मैं रोहण ही हूँ | बैठो |” रजनी बैठ गई, पर उसका मन अतीत की ओर दौड पडा़ |
सोलह वर्ष पहले की बात थी |वह आठ वर्ष की थी और उसका भाई राजेश दस साल का |रोहण उसका पडोसी था और उसके भाई के साथ पढ़ता था | रोहण के पिता बैंक मैनेजर थे और उसके पिता सरकारी कर्मचारी | रोहण अपने माता- पिता की इकलौती संतान था | दोनों परिवार में काफी मेलजोल था |तीनों बच्चों में भी काफी दोस्ती थी और वे हरदम साथ -साथ खेलते थे |
” आओ आज एक नया खेल खेलते हैं |”रोहण एक दिन रजनी से बोला |
“कौन सा खेल? ” रजनी ने पूछा |
“आंखें चार करने का खेल ” रोहण तुरंत बोला |
“यह कैसा खेल है? ” रजनी उत्सुकता से पूछी |
“तुम मेरी आँखों में देखो, मैं तुम्हारी आंखों में देखूंगा |” रोहण बोला |
“इसका क्या मतलब है |” रजनी ने प्रश्न किया |
” मैम ने बताया है कि आंखें चार होना, इस मुहावरे का मतलब है, प्यार होना |एक दूसरे को पसंद करना |मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ, इसीलिए तुमसे आंखें चार करना चाहता हूँ |”रोहण ने समझाया |
“पसंद तो मैं भी तुम्हें बहुत करती हूँ |” रजनी बोली |
“ठीक है फिर, आंखें चार करो |मैं तुम्हें जीवन भर पसंद करूँगा|” रोहण बोला|
“मैं भी |” रजनी ने कहा और दोनों की आंखें चार हो गई |
“क्या सोच रही हो? ” रोहण की आवाज से रजनी की विचारधारा भंग हुई |
“तुम अचानक से कहाँ गायब हो गये थे? ‘रजनी ने पूछा |
” मेरे पापा की बदली दूसरी जगह हो गई थी और तुम उस समय अपनी माँ के साथ नानी के घर गई हुई, इसी से अचानक जाना पडा |मैं जब कालेज पढने गया, तब तुमसे मिलने तुम्हारे घर गया था, पर तुम्हारे पापा की भी दूसरी जगह बदली हो गई थी और तुमलोग वहाँ से जा चुके थे |मैं आगे मैनेजमेंट की पढाई के लिए विदेश चला गया |अभी छ माह पहले ही लौटा हूँ और इस कंपनी में ज्वाइन किया हूँ |”रोहण इतना बोलकर रूका और फिर बोला -“तुम अपनी बताओ |”
“मैंने भी एक माह पूर्व ही अपनी मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी की है |भैया इंजिनियरिंग की पढ़ाई कर दिल्ली में नौकरी कर रहा है |पापा रिटायर हो चुके हैं और इसी शहर में घर खरीदें हैं | ” रजनी बताई |
“तब तो मैं रविवार को तुम्हारे घर अपने मम्मी-पापा के साथ तुम्हारे मम्मी-पापा से मिलने आता हूँ |” रोहण झट से बोला |
“इतनी जल्दी, किसलिए? “
“अपने बचपन के खेल ” आंखें चार होना ” अपने प्यार को पूरा करने, तुम्हारा हाथ, साथ मांगने|” रोहण ने पूछा -“तुम सहमत हो ना “
“यस सर” रजनी ने शर्माते हुए सर झुकाकर धीरे से कहा |
” तो फिर, हसते हुए मेरी तरफ देखो|”रोहण उसका सिर उठाते हुए हंसने लगा |रजनी भी हंस पडी |
# आंखें चार होना
स्वलिखित और अप्रकाशित
सुभद्रा प्रसाद