आंगन की दीवार : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  “देखिए शांति जी, मैं प्यार से समझ रही हूं सीधी तरह मान जाइए, वरना गुस्सा मुझे भी आता है।”कस्तूरी ने बड़ी मुश्किल से अपनी आवाज को कड़क करते हुए अपनी साथ वाली पड़ोसन शांति से कहा।  

दरअसल शांति अपने नाम के बिल्कुल विपरीत थी। हर किसी से ऊंचा बोलना, अपना रोब दिखाना और लड़ना उसके स्वभाव में शामिल था और कस्तूरी एक सीधी सादी, मेहनती औरत थी। वह सिलाई करके अपना गुजारा चलाती थी। उसके एक बेटा और दो बेटियां थी। पति की तबीयत जब ठीक होती थी तो रिक्शा चला लेता था वरना ज्यादातर बीमार ही रहता था। 

कस्तूरी ने बड़ी मुश्किल से अपनी मेहनत से पाई पाई जोड़कर एक कमरे वाले मकान के ऊपर एक कमरा, रसोई और टॉयलेट बना लिया था और उसे अब वह किराए पर देना चाहती थी ताकि कम से कम बच्चों की स्कूल की फीस का इंतजाम तो हो ही जाए और उसकी टेंशन कुछ कम हो जाए । 

उधर शांति अच्छी खासी पैसे वाली महिला थी। उसके भी तीन बच्चे थे। उसका पति बढ़िया प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था। 

शांति ने अभी कुछ समय पहले ही अपने घर में रंग रोगन करवाया और उससे पहले कस्तूरी के आंगन की तरफ से एक सीढ़ी बनवा ली, जो की पूरी तरह से गलत जगह घेर कर बनाई गई थी। उसे कस्तूरी ने बहुत मना किया पर वे लोग माने नहीं। उन्होंने चिल्ला चिल्ला कर कस्तूरी पर दबाव बनाकर उसे चुप करवा दिया, वैसे भी गरीबों की सुनता कौन है? 

अब जब कस्तूरी अपना ऊपर वाला कमरा किराए पर देना चाहती थी तो उसने सोचा कि पहले तो मैं छत पर कपड़े सुखा लेती थी अब कपड़े सुखाने का इंतजाम नीचे ही आंगन में कर लेती हूं। इसीलिए उसने अपने खुले आंगन की तीन तरफ से छोटी दीवार उठाकर एक हल्का सा गेट लगवा लिया। 

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दीवार उठाती देखकर और किराएदार की बात सुनकर शांति के सीने पर सांप लोट गए क्योंकि लोग अपने दुख से इतने दुखी नहीं होते हैं जितना कि दूसरों के सुख से दुखी होते हैं। 

शांति ने कस्तूरी से कहा-“पहले तो हमारी बनाई हुई सीढ़ी के बारे में बहुत बोल रही थी। अब क्यों तूने गली का थोड़ा सा हिस्सा घेर कर आंगन बनाकर गेट लगा लिया। अब तो मैं तेरी शिकायत दर्ज करवाऊंगी और तेरी यह दीवार तुड़वा दूंगी।” 

कस्तूरी-“आपकी सीधी गलत जगह पर बनी हुई है मेरी आंगन की दीवार की जगह गलत नहीं है। आप शिकायत करोगी तो मैं भी करूंगी। मैं भी आपकी सीढ़ी तुड़वा सकती हूं, इसीलिए शांति जी मैं आपको प्यार से समझ रही हूं मान जाइए, वरना गुस्सा मुझे भी आता है। और हमारे गली में कितने ही लोगों ने बहुत सारी जगह घेर कर अपने बड़े-बड़े आंगन बना रखे हैं। अगर मेरी आंगन की दीवार से जगह घिरी भी है तो केवल चार-पांच इंच।” 

शांति-“अरे जा जा, बड़ी आई गुस्से वाली, बहुत देखे हैं तेरे जैसे।” 

कस्तूरी चुपचाप अंदर चली गई और दोनों ने एक दूसरे की शिकायत दर्ज करवा दी। 

कुछ दिनों बाद एक आदमी शांति के घर जांच करने आया। उसने देखा कि उनकी सीधी वाकई गलत जगह पर बनी हुई है जबकि कस्तूरी के आंगन से कहीं ज्यादा लोगों ने जगह घेर कर अपने-अपने आंगन बना रखे हैं। 

वह आदमी शांति के घर गया और न जाने क्या बातचीत हुई, उनके सीढ़ी वहीं की वहीं थी। 

कुछ दिनों बाद एक दूसरा आदमी जांच करने के लिए कस्तूरी के घर आया। अंदर जाकर उसने कस्तूरी से कहा-“आपके आंगन की दीवार ने अधिक स्थान नहीं लिया है इसीलिए आपकी दीवार को कुछ नहीं होगा, फिर भी अगर आप कुछ चाय पानी का इंतजाम——-।” 

कस्तूरी समझ गई। वह तो पाई – पाई जोड़कर, कपड़े सिलचर पैसे कमाती थी। फिर भी उसने जैसे तैसे जोड़कर₹200 उसे आदमी को दिए और कहा-“भाई साहब आप मेरे घर की हालत तो देख ही रहे हैं, सारा दिन सिलाई करती हूं तब जाकर मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुट पाती है, पति अक्सर बीमार रहते हैं। अब तो कपड़े सिलते सिलते कमर भी टूटने लगी है इससे ज्यादा नहीं दे पाऊंगी, बेशक आप दीवार तोड़ दीजिए। जो होगा ,देखा जाएगा।” 

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उसका हाल उसे आदमी से छुपा हुआ नहीं था। वह वहां से रुपए लेकर चला गया और अगले दिन फिर वह सुबह-सुबह कस्तूरी के पास आया और बोला-“बहन , आपकी आंगन की दीवार को मैं कुछ नहीं होने दूंगा यह मेरा वादा है। और यह लो अपने ₹200 वापस। पैसे तो मैं ले गया, और सारी रात सो नहीं पाया। ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ है। मेरी आत्मा मुझे रात भर कचोटती रही। मुझे आत्मग्लानि हो रही थी कि मैंने मेहनत करके घर चलने वाली औरत से पैसे क्यों लिए। यह मैंने बिल्कुल अच्छा नहीं किया। मुझे भगवान कभी माफ नहीं करेंगे। मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही थी और मेरे ऊपर ₹200 का वजन बढ़ता जा रहा था। पूरी रात में सुबह होने का इंतजार करता रहा। यह रात मेरी इतनी मुश्किल से कटी है तो पूरा जीवन कैसे कटता। यह रात इतनी लंबी थी कि लग रहा था सुबह ही नहीं हो रही है। सच कह रहा हूं पैसे तो मैंने कई लोगों से लिए हैं, पर ऐसा मेरे साथ कभी नहीं हुआ। मुझे माफ कर दो बहन ताकि मैं अपनी आत्मग्लानि से बाहर आ सकूं। अब मैं चलता हूं, आप निश्चिंत रहें।” 

ऐसा कह कर वह आदमी चला गया और कस्तूरी पूरी बात सुनकर बहुत हैरान थी और अपने हाथ में रखें₹200 को देख रही थी। 

स्वरचित अप्रकाशित  गीता वाधवानी दिल्ली

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