आक्रोश स्वयं पर – Moral Story In Hindi

कुछ लोग ऐसे होते हैं कि सामने वाले से कुछ कह नहीं पाते। उनके मन में लाखों बातें ,हजारों विचार उमड़ घुमड़ रहे होते हैं पर वह तब भी चुप रहते हैं और सोच में डूबे रहते हैं लेकिन किसी से कुछ नहीं कहते। ऐसा ही था सुमित। कोई भी कष्ट हो परेशानी हो, स्वयं झेलता रहेगा पर किसी से कहेगा नहीं। 

बचपन से उसने अपने पिता को घर चलाने के लिए कड़ी मेहनत करते हुए देखा था और उसकी मां भी दूसरों के कपड़े सिल कर घर के लिए बहुत मेहनत करती थी। 

बड़े होने पर सुमित ने सोचा कि मैं  कुछ अच्छा करूंगा ताकि मैं अपने माता-पिता को सुख दे सकूं। उसने कानून की पढ़ाई शुरू की और काम सीखने लगा लेकिन लोगों ने उसका भरपूर फायदा उठाया किसी ने काम सिखाने की कोशिश नहीं की और उससे फ्री में मेहनत करवाते रहें। तब भी वह चुप ही रहा। 

फिर उसने जज बनने के लिए परीक्षा दी लेकिन वह उसमें सफल ना हो सका। उसने मोबाइल रिपेयरिंग भी सीखें, टीवी ठीक करना सीख, अकाउंट्स सीखें लेकिन हर तरफ से उसे निराशा हासिल हुई और वह सफल ना हो सका। तब उसने एक मोबाइल कंपनी के ऑफिस में जॉब ढूंढी। जॉब अच्छी थी। समय रहते सुमित की सगाई भी हो गई। सगाई के बाद अचानक पिता का देहांत हो जाने से सुमित अकेला हो गया और वह अंदर ही अंदर घुटने लगा। 

मां ने कई बार पूछने की कोशिश की पर उसने कुछ नहीं कहा। थोड़े समय बाद उसका विवाह हो गया और एक बेटा और कुछ समय बाद एक बेटी हुई। 

सुमित की नौकरी किसी कारणवश छूट गई थी अब वह समझ नहीं पा रहा था कि मैं कौन सा काम करूं। अपने बच्चों को पालने के लिए वह हर पल संघर्ष कर रहा था। फिलहाल मां को मिलने वाली पेंशन से गुजारा चल रहा था लेकिन ऐसा कब तक चलता क्योंकि बच्चे बड़े हो रहे थे और उनके पढ़ाई के खर्चे भी बड़े हो रहे थे। फिर उसने  सेकंड हैंड कैब लेकर चलानी शुरू कर दी लेकिन उसकी सरलता को देखते हुए कैब  बेचने वाले ने भी भरपूर फायदा उठाया और निहायत ही घटिया दर्जे की कैब उसे थमा दी। कैब के बारे में अधिक जानकारी ना होने के कारण सुमित को उसमें बहुत घाटा हुआ। हर जगह घाटा और असफलता का मुंह देख देख कर वह इस हद तक चिढ़ चुका था कि वह कभी-कभी सामने वाले इंसान का उसके साथ क्या रिश्ता है यह ध्यान ना देते हुए , उसके साथ गुस्से में बात करता था और बाद में पछताने लगता था। फिर वह अपने बच्चों के लिए कुछ ना कर पाने को लेकर खुद को दोषी मानने लगा और सारा आक्रोश स्वयं पर निकालने लगा। 




यह सब देखते देखते उसकी मां और पत्नी बहुत परेशान हो चुके थे। वह उसके मन की हालत अच्छी तरह समझ रहे थे। 

एक दिन उसकी मां ने उसे अपने पास बिठाया और कहा-“सुमित बेटा, ऐसी क्या बात तुम्हें खाए जा रही है कि तुम चुपचाप अकेले कमरे में पड़े रहते हो। ना तुम किसी से बात करते हो, ना अपने मन की बात कहते हो ,ना किसी की सुनते हो। ऐसा कब तक चलेगा जो तुम्हारे मन में है वह खुल कर कहो ताकि तुम्हारे मन की चिंता दूर हो जाए और तुम अपना तनाव दूर कर सको।” 

अपनी मां के प्यार भरे शब्द सुनकर सुमित फूट-फूटकर रो पड़ा और उसने कहा-“मां, मैं किसी पर भी नहीं सिर्फ अपने ऊपर ही क्रोधित हूं क्योंकि मैं अपने बच्चों का पालन ठीक से नहीं कर पा रहा हूं। मैं तुम्हें भी घर खर्च के लिए कुछ नहीं दे पा रहा हूं। मैं सारा आक्रोश स्वयं पर निकालना चाहता हूं क्योंकि सारी गलती मेरी है मैं किसी लायक नहीं हूं। मां, मेरे साथ ही हर बार गलत क्यों होता है, मेरा साथ भगवान क्यों नहीं देते?  सिर्फ मेरी ही किस्मत खराब क्यों है , मैं हर काम पूरा मन लगाकर मेहनत से करता हूं लेकिन मुझे पूरा फल नहीं मिलता, हर जगह मुझे नुकसान ही मिलता है। मां, मैं बहुत परेशान हो चुका हूं।” 

मां-“ऐसा नहीं सोचते बेटा, तुम ईमानदारी से अपना कर्म करते रहो, जितना मिलता है उसी में भगवान का शुक्रिया अदा करो, एक ना एक दिन तुम्हें ईश्वर इतने सुख देगा कि तुम संभालते संभालते थक जाओगे। मैं जानती हूं तुम पूरी मेहनत करते हो। खुद पर आक्रोश मत निकालो, खुद को दोषी मत कहो। अपने मन से यह बात निकाल दो कि तुम बच्चों के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हो। भगवान की दया से दोनों बच्चे समझदार हैं। वह तुमसे सिर्फ प्यार ही चाहते हैं। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा अब तुम बिल्कुल टेंशन मत लो और सब अच्छा अच्छा सोचो। अच्छा सोचने से अच्छा ही होता है।” 

सुमित का तनाव कुछ हद तक कम हो चुका था और वह मां की गोद में सिर रखकर कुछ देर तक लेटा रहा, आज उसे बहुत सुकून मिल रहा था। 

स्वरचित अप्रकाशित 

गीता वाधवानी दिल्ली

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