“दो बच्चे और पत्नी धनिया” को सोता छोड़ एक रात हीरा गांव छोड़कर कहीं चला गया। सुबह जब धनिया सो कर उठी, तो पति को न पाकर उसे ढूंढते खेत चली गई । सबसे पूछा पर हीरा को किसी ने नहीं देखा ।
मुंह लटका कर धनिया घर लौट आई सुबह से शाम हो गई थी पर हीरा का कोई पता नहीं चला अब धनिया को पक्का विश्वास हो गया था कि– जो खेत उसने महाजन के यहां गिरवी छोड़ी है उसके पैसों का इंतजाम के लिए शहर चला गया । नहीं- नहीं ऐसा कैसे हो सकता है– मुझे बताएं बिना कैसे जा सकता हैं वो– ?”मैं अकेली दोनों बच्चों को—! दिल जानता था कि वह शहर ही गया होगा पर “मन फिर भी जाने क्यों उसका बेचैन था –!
“कल रात ही तो उसने मुझसे खेत छुड़वाने का जिक्र किया था– बोला धन्नो–ये खेत मेरी जिंदगी की आखिरी जमा पूंजी हैं और मेरे मां-बाप की आखिरी निशानी अब गिरवी है तो मुझे इसे छुड़वाने के लिए शहर जाना ही पड़ेगा–!
मैंने उससे बहुत विनती की कि, वो कहीं नहीं जाए, हम यही कोई ना कोई काम कर, खेत छुड़ा ही लेंगे—-! “अरे यह सब तो बोलने वाली बात है “हम कितना भी यहां काम कर लें इस जन्म में तो क्या अगले 7 जन्म में भी इसे नहीं छुड़ा पाएंगे–।सुना है–‘ शहर में पैसे ज्यादा मिलते हैं इसलिए मुझे वहां जाने दे मैं तुझे वादा करता हूं पैसे कमाकर मैं जल्द ही लौट आऊंगा– और अपना खेत भी छुड़वा लूंगा–! मेरे से चिकनी-चुपड़ी बातें कर के मुझे बहला-फुसलाकर बिना बताए, घर से निकल गया—। सोच सोच कर धनिया पागल हुई जा रही थी पिछले रात की बात से–।
अभी उसके जहन में दोनों बच्चों की परवरिश और जिंदगी चलाने के लिए– पैसों का इंतजाम यह सब भी चल रहा था।
अब सब कुछ उसे ही करना था ।
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इतना वह जानती थी कि अगर हीरा उससे मिलकर जाता तो वह उसे कतई नहीं जाने देती इसलिए सब को सोता छोड़ चला गया–। “एक दिन जमींदार धनिया को हवेली बुलाया और पूछा– क्यों री–धनिया !”तूने हीरा को रोका नहीं–। “मालिक” मैंने कितना मना किया कि– गांव वालों के चक्कर में फंसकर इतनी बड़ी भोज का आयोजन मत कर पर उसने मेरी एक ना सुनी। धनिया पल्लू थोड़ा नीचे की तरफ सरकाते हुए बोली।
अभी 6 महीने पहले ही हीरा की माता जी का देहांत हुआ गांव के सभी लोग हीरा को बृहत भोज करवाने का दबाव डालने लगे–। “अरे हीरा–‘ तू बड़ा खुश नसीब है रे-“-! तेरी मां ने अपनी जिंदगी के 100 साल पूरे कर लिए– अब तुझे तो पूरे गांव को खिलाना चाहिए इस दबाव में आकर उसने महाजन के पास बिना सोचे समझे अपनी खेत उसके पास, गिरवी रख दी ।
“देख जब तक हीरा नहीं आ जाता– तब तक तू इस हवेली में खाना बनाने का काम किया कर– तेरी मालकिन को भी आराम मिल जाएगा– और तुझे भी रोजी-रोटी मिलती रहेगी–। धनिया ने भी हामी भर दी सोचा– इधर-उधर भटकने से तो अच्छा है कि इस हवेली में ही इज्जत से काम करूंगी
इधर दिन से महीना बीत गया– लेकिन– अब भी धनिया को अपने पति के आने का इंतजार रहता उसे विश्वास था कि वह जल्द ही लौट आएगा।
“धनिया जमींदार की हवेली में खाना बनाने के साथ-साथ एक- दो घर और खाने का काम पकड़ ली– ताकि, बच्चों की पढ़ाई- लिखाई भी अच्छी तरह से चलती रहे।
अब धनिया बच्चों को स्कूल भी भेजा करती । सोचती–वह (हीरा) नहीं है तो क्या, मैं बच्चों का स्कूल नहीं छुड़वा सकती।
धीरे-धीरे महीने साल में गुजर गए
एक दिन:-
बच्चों को स्कूल भेज धनिया कम पर निकलने ही वाली थी कि– किसी ने जोर से उसका दरवाजा पीटा। जल्दी से धनिया ने दरवाजा खोला तो देखा कि–
जमींदार का नौकर “बिरजू सामने खड़ा था अरे– क्या बात है भाई–? मैं तो काम पर आने ही वाली थी!
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“मलिक ने तुझे अभी जल्दी बुलाया है–।
” हां तू चल मैं नहा-धोकर कर खाना खा कर आती हूं–!
“नहीं नहीं तुम्हें मेरे साथ ही बोला है आने को–!
क्या बात हो गई–? धनिया घबराते हुई पूछी ।
तू चल बस—।
“यह क्या–? इतनी भीड़ क्यों लगी है वहां—? धनिया ने बिरजू से पूछा बिरजू बिना कुछ बोले धनिया को लेकर आगे चल पड़ा जैसे-जैसे धनिया भीड़ के पास नजदीक आई रही थी वैसे-वैसे उसका दिल जोर से धड़कते जा रहा था ।
मन में कितनी ही आशंकाएं के साथ जब वह वहां पहुंची तो, उसे अपने आंखों पर विश्वास नहीं हुआ–बिल्कुल “सुन्य “।
“कैसे हुआ ये सब—? वह सिर्फ इतना ही बोल पाई थी कि– गांव की कुछ औरतों ने उसे संभाल लिया। धनिया का रो-रो कर बुरा हाल हुआ पड़ा था।
तभी भीड़ से एक बुजुर्ग आदमी बाहर आए उन्होंने धनिया को सांत्वना देते हुए बोले–“बेटा ‘मैं सेठ धनी लाल हूं “मेरे पास कपड़े की फैक्ट्री है। हीरा मेरे ही फैक्ट्री में काम करता था इसकी कड़ी मेहनत देखकर मैंने उसको अपने ही घर में रहने के लिए एक कमरा दे दिया। दिन -रात वह मेहनत करता उसे बस एक ही जुनून था कि इसकी जीवन की पूंजी “जमीन” छुड़वानी और “घर वापसी” करनी ।
मैंने उससे कई बार कहा कि तेरा महीना पूरा हो चुका है अपना मेहनताना ले ले और काम थोड़ा कम किया कर वरना सेहत खराब हो जाएगी । तब वह मुझसे कहता कि आप अभी इसको अपने पास ही रखो इसे मुझे मेरे “घर वापसी” पर ही देना मैं एक ही बार आपसे इकट्ठे पैसे लूंगा–! इसकी ईमानदारी तथा मेहनत देखकर, मैं इससे बहुत प्रभावित हुआ करता । धीरे-धीरे वो हमारे परिवार का सदस्य बन गया । मैं पूछता– कि तुझे गांव में अपने परिवार की याद नहीं आती कितने महीने हो गए तू घर भी नहीं जाता तब कहता जाऊंगा ना साहब ,जब पैसे इकट्ठे हो जाए–ताकी बच्चों की जिंदगी सवार सकूं ।
मेरे फैक्ट्री में रात में रंगने का काम चलता है– मेरे मना करने पर भी उसने रंगाई का काम यानी “नाइट शिफ्ट” भी ले ली।
अचानक– एक सुबह जब वह काम से लौटा तो बोला–” साहब आज मैं 10:00 बजे वाली ड्यूटी नहीं करूंगा मैं जी भर कर सोना चाहता हूं मुझे लगा कि शायद वह थक गया होगा इसलिए ऐसा बोल रहा है ।
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पर क्या पता था कि वो सुबह उसकी आखिरी सुबह होगी शाम के 4:00 बजे तक जब वह खुद बाहर नहीं आया तो मुझे घबराहट हुई कमरे में गया तो देखा, वह निढाल पड़ा हुआ है फिर डॉक्टर को बुलाया डॉक्टर ने उसे मृत्य घोषित कर दिया–। ” बेटी–
उसकी अमानत और उसके पूरे साल की मेहनत के पैसे हैं जो आज मैं तुम्हें सौपना चाहता हूं और हां जो जमीन हीरा ने साहूकार के पास गिरवी रखी थी वो भी मैंने अपनी तरफ से छुड़वाकर एक छोटी सी मदद करने की कोशिश की है मैं उसको लौटा तो नहीं सकता पर एक छोटी मदद तो कर सकता हूं ना–!
अब इन पैसों– का मैं क्या करूंगी–? सेठ जी–! जब मेरा ही सब कुछ उजड़ गया धनिया छाती पीट-पीट कर रोने लगी।
ना बेटी ना, हीरा की आखिरी इच्छा थी कि उसके बच्चे खूब पढ़े लिखे तुम्हें उनके लिए सोचना होगा–! हीरा की अंतिम विदाई करने के बाद सेठ धनीराम धनिया को पैसे देते हुए चले गए।
उस रात अगर मैं सोती नहीं तो वह जाते नहीं अगर जाते नहीं तो मुझे यह दिन देखने को नहीं मिलते–।
हर दिन मैं उनके “घर वापसी “की बाट जोहती रही– लेकिन ऐसी वापसी होगी ये मैंने सोचा भी नहीं था–। अब उनकी “आखिरी ख्वाहिश” मुझे पूरी करनी होगी बच्चों के लिए मुझे जीना होगा– इनको खूब पढ़ाऊंगी और इस लाइक बनाऊंगी कि इन्हें कभी परिवार को छोड़कर जाने की नौबत ना पड़े–!
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धन्यवाद ।
मनीषा सिंह
#घर वापसी