“आखिरी फैसला” – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

मैं अब आपके साथ नहीं रहना चाहता मां मैं अब अपने पापा के साथ रहूंगा मैं बहुत सोच समझ कर ही यह बात बोल रहा हूं मेरा फैसला कोई नहीं बदल सकता आप भी नहीं, यही मेरा आखिरी फैसला है। क्या गलती थी आखिर उनकी जिन्हें आपने इतने बरस उनकी औलाद से भी दूर रखा और खुद भी उन्हें छोड़ कर चली गई

और मेरे मन में भी उनके खिलाफ नफरत का जहर भरती रही? कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो तुम आयुष क्या कह रहे हो तुम मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती तुम मेरे बेटे हो और तुम्हारे पापा भी अब राकेश जी ही है। लेकिन आयुष अपनी मां रागिनी की बात अनसुनी करके अपने कमरे में चला गया। और रागिनी वहीं सोफे पर बैठकर रोने लगी।

 अभी 10 दिन पहले की तो बात है जब आयुष ऋषिकेश में अपने पापा से मिला था। जबआयुष7 साल का था तभी से रागिनी अपने पहले पति दिनेश से अलग होकर रहने लगी थी और नन्हा आयुष भी अपनी मम्मी के साथ रागिनी के मायके में आ गया था

रागिनी ने कुछ ही दिनों बाद एक बड़े बिजनेसमैन राकेश के साथ शादी कर ली थी, जिनका अपनी पहली पत्नी से तलाक हो चुका

 था। राकेश और आयुष के बीच भी कभी बाप बेटे वाला संबंध नहीं बन पाया था। राकेश ने रागिनी से शादी तो कर दी थी लेकिन कभी आयुष को दिल से नहीं अपना पाया था। आयुष जब भी अपने पापा के बारे में अपनी मां से बात करता वो यही बताया करती थी तुम्हारे पापा मुझे बहुत मारते थे उन्होंने किसी और

औरत के साथ शादी करके मुझे और तुम्हें दोनों को घर से निकाल दिया था। नन्हे आयुष के मन में अपने पिता के खिलाफ विद्रोह उमड आया था। अब वो 18 साल का हो चुका था और दिल्ली में रहकर ही बीटेक इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। वह इस बीच में एक बार भी अपने पापा से नहीं मिला था।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

शिक्षा ही धन है – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 बस हल्की-हल्की छवि उसके दिमाग में जरूर बसी हुई थी। जो अब तक धूमिल नहीं हुई थी। इतना जरूर पता था किउसके पापा ऋषिकेश में रहते हैं और एक स्टेशनरी की दुकान चलाते हैं। वह जानना चाहता था कि आखिर कोई अपनी पत्नी और बेटे को इस तरह। कैसे छोड़ सकता है। जैसे-जैसे बड़ा होता गया

उसके मन में अपने पिता से मिलने की उत्कंठा और तेज होती गई। आखिर एक दिन उसकी यह इच्छा पूरी भी हो गई। अपनी मम्मी के कुछ पुराने डॉक्यूमेंटस में रखा हुआ उसे अपने पापा का एड्रेस मिल ही गया।

 कितने सालों में यह भी नहीं पता था कि वह वहीं रहते हैं या कहीं और चले गए लेकिन फिर भी एक दिन अपने दोस्त के भाई की शादी के बहाने से वह ऋषिकेश पहुंच ही गया। घंटी बजाई तो दरवाजा एक बूढी औरत ने खोला था, वह समझ गया था शायद यह उसकी दादी मां है, जो उसे नहीं पहचान पाई थी पहचानती थी कैसे कितना फर्क जो आ गया था?

 उसने बढ़कर उनके पैर छुए और बिना किसी भूमिका के अपना परिचय भी दे दिया। और अपने आने का कारण भी बता दिया कि मैं केवल अपने पापा से इतना ही जानना चाहता हूं उन्होंने दूसरी औरत के चक्कर।‍में मेरी मां के साथ इतना गलत व्यवहार क्यों किया? क्यों अपने औलाद के बारे में भी उन्होंने नहीं सोचा? दादी मां तो एकटक अपने पोते को देखे जा रही थी और आंखों से आंसू बहे जा रहे थे

दिनेश भी अपनी मां के पीछे पीछे दरवाजे तक आ गया था। किसी को अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं आ रहा था। कि उनका खून उनके सामने इतने समय बाद आकर खुद खड़ा हो गया, उन्होंने बढ़कर अपने पोते को गले लगाया और बताया तुम्हारे पापा ने तुम्हारी मां को कभी धोखा नहीं दिया बल्कि रागिनी ही अपनी मर्जी से उसे छोड़कर गई थी क्योंकि उसकी ख्वाहिशें बहुत ऊंची थी, वह बात-बात में तुम्हारे पापा को उनकी कमाई के लिए ताना दिया करती थी

 वो चाहती थी दिनेश उसके साथ अपने मां-बाप से भी अलग होकर रहे। और दिल्ली में ही उसके पापा के साथ बिजनेस करें।वो आए दिन अपने मायके में ही रहा करती थी। लेकिन फिर भी तुम्हारी वजह से उससे कभी तकरार नहीं करता था कि कहीं वह तुम्हें लेकर अपने मायके ना चली जाए। लेकिन एक दिन उसने एक बड़े बिजनेसमैन राकेश के साथ शादी करने का ऐलान कर दिया

जो अपनी पत्नी को तलाक देकर शादी करने के साथ-साथ तुम्हें भी अपनाने के लिए तैयार था। हम सब अंदर तक टूट चुके थे हमने बहुत समझाया लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ उसने तुम्हें भी हमें देने को साफ मना कर दिया। कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने की हमारी हैसियत नहीं थी और कानून भी तो औरतों का ही साथ देता है। हम जानते थे हर हाल में हमारा बेटा ही गलत ठहराया जाएगा। इसलिए तलाक भी तुरंत हो गया था।

उसके बाद आज तक मेरे बेटे ने पीछे मुड़कर नहीं देखा हां तुम्हारी याद बहुत आती थी। दादी मां ने उसे उसके बचपन की कितनी फोटो दिखाई थी। जो अबभी उनके कमरे में लगी हुई थी। तुम्हारे दादाजी इसी गम में बीमार रहने लगे थे और कुछ ही दिन बाद हृदय गति रुकने से उनकी मृत्यु हो गई थी। हमेशा औरत ही सही नहीं होती

इस कहानी को भी पढ़ें: 

हक खो दिया है – गीता वाधवानी  : Moral Stories in Hindi

सिक्के के दो पहलू होते हैं बेटा। तुम्हारे पापा का केवल यही कसूर था कि वह अपने मां बाप को छोड़कर नहीं जाना चाहता था हमने तो बहुत कोशिश भी की थी कि वह हमारी वजह से अपनी गृहस्थी खराब ना करें।लेकिन वह अपनी जिद परअडा रहा।

 उसकी जिंदगी में तुम्हारी मां के सिवा कभी दूसरी औरत नहीं आई। और अगर अभी तुम्हें हम पर यकीन ना हो तो अपनी मां से जाकर सब कुछ पूछ सकते हो अब तुम बड़े हो चुके हो सही गलतका अंदाज़ा लगा सकते हो। अपने पापाऔर दादी मां के आंसूओ से उसे इसबात की गवाही मिल गई थी कि वो सच बोल रहे हैं।

फिर भी वह एक बार अपनी मां से सब कुछ सच जानना चाहता था। उसने अपनी मां को बताया कि वह अपने पापा से मिलकर आ रहा है, गलत वो नहीं आप थी, जिन बातों को रागिनी ने आज तक छुपा कर रखा था वे सभी बातें उसके बेटे के सामने खुल चुकी थी उसके पास किसी बात का कोई जवाब नहीं था। वह अपराधी थी

अपने बेटे की जिसे उसने बिना गलती की भी अपने बाप से दूर रखा। लेकिन उसके लाख रोकने के बाद भी आयुष उसे घर में नहीं रूका लेकिन अपनी मां से इतना वादा जरुर किया कि वह उनके प्रति अपने सारे फर्ज हमेशा निभाएगा और मिलने भी आता जाता रहेगा लेकिन वह अब अपने पापा के साथही रहेगा। रागिनी भी उसके रास्ते में रुकावट नहीं बन पाई और वह अपनी मां के देखते देखते वहाँ से चला गया।

 रागिनी भरी आंखों से उसे जब तक निहारती रही जब तक आयुष उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गया। आखिर वो कर भी क्या सकती थी सिवाय रोने के

 पूजा शर्मा स्वरचित।।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!