जैसे जैसे मानसीके बेटे राघव की शादी कादिन नजदीक आ रहा था,उसकी आंखों से नींद गायब होती जारही थी।एक तो अकेली जान तिस पर हर तीसरे दिन गांव से सासू मां का फरमान,उपर से शादी के ढेर सारे काम।
हर तीसरे दिन गांव से उसकी सास हीरा देबीका फोन आजाता कि जहां तक हो सके, शादी व्याह के सारे कामों से तुम दूर ही रहना, समझ रही हो न कि यह सब हमकयों कह रहे हैं।हम एक दो दिन में शहर पहुंच करसब कुछ संभाल लेंगे,कयोंकि हमारे साथ , तुम्हारी चाची सास व ताई सास व बुआ भी आरही हैं राघव की शादी में शामिल होने।
जानते हैं कि हमारे बेटे सतीश के कोबिड के चपेट में आने के बाद तुम एकदम अकेली रह गई थी और राघव भीउस समय पढ़ाई ही कर रहा था ,ऐसे में तुमने अकेलेही अपने दम पर रात दिन लोगों के कपडे सिल करउसकी फीसके पैसे जुटाये थे।और तुम्हारी मेहनत का ही नतीजा है कि राघव आज इतनी अच्छी नौकरीकर रहा है।
बेटे के पालन पोषण कीतो जिम्मेदारी उठाना तुम्हारा फर्ज था जो तुमने बखूबी पूरा किया।लेकिन शादी व्याह के मामले में शुभ अशुभ काबहुत ध्यान रखना पड़ता है,जानतीहूं कि राघव आधुनिक पीढ़ी काबच्चा है
शुभ अशुभ नहीं मानता लेकिन तुम तो समझदार हो न ।ऐसे शुभ समय में शादी के किसी भी रीति-रिवाज से तुम्हें दूर ही रहना है।
मानसी अपनी सास की बातों को सुन कर चुप लगा जाती,अपने मन कोतो कैसे भी समझा ही लेगी ,लेकिन बेटेको कैसे समझाए कि शादी के किसी भी रीति-रिवाज में उसे शामिल होने कीउसकी दादी मां ने सख्त मनाही कीहै।मन में कितने अरमान सजाएहैे बेटे की शादी के।
शादी की शॉपिंग करते समय राघव ने अपनी मां मानसी के लिए गुलाबी रंग की शिफॉन की साड़ीखरीदी जिसपर जरी की छोटी छोटी बूटियां बनी हुई थी। राघव ने कहा मां मेरी शादी के दिन तुम यहीं साड़ी पहन कर मुझे तिलक लगाना।
मानसी लाख मना करती रही कि बेटे इस तरह के चमक दमक बारे कपड़े मैं नही पहन सकती, तुम्हारी दादी व अन्य बड़े लोगोंको यह ठीक नहीं लगेगा,उनके हिसाब से मुझे हल्के रंग के साधारण कपड़े ही पहनने चाहिए। मैं उन सब को,कैसे भी करके मनाही लूंगा तुम इसकी चिंता मत करो।
मैं कुछ नही जानता जब में घोड़ी पर बैठूंगा तो तुम्हारे हाथ से ही तिलक करवा के आगे बढूंगा ये मेरा #आखिरी फैसला #है।मानसी बेटे की जिद के आगे नतमस्तक हो जाती हैं।दिल तो उसका भी यही कह रहा है कि जब राघब बरात लेकर व्याह करने जाए तो वही उसके माथे पर शगुन का तिलक लगाएं।
जानती है राघवभीअपने पापा सतीश कीतरह ही जिद्दी है ।
मानसी का मन अतीत में चला जाता है कि जब सतीशके साथ गांव जाती थी तो सतीश पहले से ही कह देते थे किवहां जाकर घूंघट में मुखड़ा छिपा घर मतबैठ जाना । सतीश की इस हरकत पर अम्माजी बहुत नाराज़ होती।शहर में तुम लोग जो चाहे करो,लेकिन यहां गांव में तो हमारे हिसाब से ही चलना पड़ेगा नहीं तो समाज में जगहंसाई होगी कि देखो फलां की बहू कैसे खुले मुंह रहती है।
देखते-देखते शादी का दिन आ पहुंचा बराती तैयार , दूल्हा भी तैयार,लेकिन राघव ने जिद पकड़ ली किजबतक उसकी मां उसके माथे पर शगुन का तिलक नहीं लगाएगी वहएक इंच भी आगे नहीं बढ़ेगा।उधर अपने कमरे में चुपचाप बैठी मानसी ईश्वर से प्रार्थना कर रही है कि किसी तरह राघव अपनी जिद छोड़ते और अपनी बुआ या दादा से तिलक करवा कर आगे बढ़े।
दादी व अन्य बड़े लोगों ने बहुत समझाया कि शादी व्याह के मामले में शुभ अशुभ का ध्यान रखना पड़ता है,तुमने चार किताबें क्या पढ़ ली ,हमसे बहस करने लगे। तुम क्या जानें शुभ व अशुभ क्या होता है।
नहीं दादी मां आप पहले मुझे यह समझाइए कि कोई भी मां अपने बच्चे के लिए अशुभ कैसे हो सकती है।मां ने मेरी हरेक परीक्षा में दही शक्कर खिला कर तिलक लगा कर बाहर भेजा है, उनके आशीर्वाद से ही मैं आज यहां तक पहुंचा हूं। चाहे कुछ भी होजायमां के हाथ से तिलक करवा करही में आगे जाऊंगा। यह मेरा#आखिरी फैसला है#
जिद्दी बाप का जिद्दी बेटा,कह कर बड़बड़ाते हुए दादी मां ने कहा मानसी बहू आकर अपने बेटे को तिलक लगाओ ,जिससे समय पर बरात आगे रवाना हो।मानसी तो तैयार ही बैठी थी,जानती थी अपने बेटे के #आिखिरी फैसले को
दोस्तों यह सब पुराने समय व ग्रामीण परिवेश की,बातें हैं।आज इस तरह की कुरीतियों को कम ही लोगमानतेहैं। परिवर्तन हर युग में होता रहा है।
स्वरचित व मौलिक
माधुरी गुप्ता
सरिता विहार
नई दिल्ली